Edited By Shubham Anand,Updated: 13 Dec, 2025 05:12 PM

भारतीय रुपये में लगातार कमजोरी देखी जा रही है और शुक्रवार को यह 90.50 के स्तर को पार कर गया। अफगान अफ्गानी इस समय भारतीय रुपये के मुकाबले मजबूत है। इसकी वजह तालिबानी शासन के तहत विदेशी मुद्राओं पर रोक और व्यापार पर सख्त नियंत्रण है। हालांकि, इसका...
नेशनल डेस्क : भारतीय रुपये में इन दिनों लगातार कमजोरी देखी जा रही है। बीते शुक्रवार को भारतीय मुद्रा ने फिर एक बार रिकॉर्ड निम्न स्तर छूते हुए 90.50 के आंकड़े को पार कर लिया। रुपये की इस गिरावट के बीच अफगानिस्तान की मुद्रा की चर्चा भी तेजी से हो रही है, क्योंकि अफगानी करेंसी वर्तमान में भारत की मुद्रा के मुकाबले मजबूत नजर आ रही है। यह स्थिति सुनने में शायद आश्चर्यजनक लगे, लेकिन यही सच्चाई है।
अफगानिस्तान की मुद्रा, जिसे अफ्गान अफ्गानी कहा जाता है, वर्तमान में भारतीय रुपये के मुकाबले 1 रुपये 38 पैसे के बराबर है। इसका मतलब है कि यदि अफगानिस्तान में कोई व्यक्ति 1 लाख रुपये कमाता है, तो उसकी वैल्यू भारत आने पर 1 लाख 38 हजार रुपये के बराबर होगी। हालांकि, यह ध्यान रखना जरूरी है कि अफगानी करेंसी की मजबूती तालिबानी शासन के समय में आंशिक रूप से दिख रही है।
अफगान अफ्गानी क्यों मजबूत है
साल 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद अफगानिस्तान सरकार ने अमेरिकी डॉलर और पाकिस्तानी रुपये के उपयोग पर रोक लगा दी। विदेशी मुद्राओं की अनुपस्थिति के कारण उनकी मांग भी सीमित हो गई। सरकार ने लेन-देन को स्थानीय मुद्रा तक सीमित कर दिया और इंपोर्ट-एक्सपोर्ट पर सख्त नियंत्रण लागू किया। क्योंकि अंतरराष्ट्रीय व्यापार और निवेश बेहद सीमित हैं, इसलिए अफगानी मुद्रा पर बाहरी दबाव नहीं पड़ रहा।
देश की अर्थव्यवस्था फिलहाल छोटे और सीमित दायरे में सिमटी हुई है, जिसमें मुद्रा की मांग और आपूर्ति लगभग संतुलित है। यही कारण है कि अफगानी मुद्रा अभी स्थिर और मजबूत नजर आ रही है। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि अफगान अफ्गानी की मजबूती का मतलब यह कतई नहीं है कि वहां की अर्थव्यवस्था भारत से बेहतर है या जीडीपी अधिक मजबूत है। मुद्रा की स्थिरता का कारण विदेशी मुद्राओं के सीमित इस्तेमाल और व्यापार पर नियंत्रण है, न कि व्यापक आर्थिक विकास।