20 साल पहले J&K में शहीद हुए थे पिता, अब बेटी देश सेवा को तैयार...गर्व से सीना चौड़ा कर देगी इनायत की कहानी

Edited By Seema Sharma,Updated: 06 Feb, 2023 03:54 PM

country proud of on inayat vats

इनायत वत्स की उम्र तीन साल की भी नहीं थी जब उनके सिर से पिता का साया उठ गया था। इनायत वत्स के पिता मेजर नवनीत वत्स देश की सुरक्षा के लिए कश्मीर में शहीद हो गए थे।

नेशनल डेस्क: इनायत वत्स की उम्र तीन साल की भी नहीं थी जब उनके सिर से पिता का साया उठ गया था। इनायत वत्स के पिता मेजर नवनीत वत्स देश की सुरक्षा के लिए कश्मीर में शहीद हो गए थे। इनायत वत्स जब बड़ी हुई तो उसे पता चला के देश की सुरक्षा करते हुए  उनके पिता ने शहादत को गले लगाया और फिर ठान लिया कि वह भी अपने पिता के नक्शे-कदम पर चलेगी और राष्ट्र सेवा करेगी। अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए इनायत वत्स ने जी-तोड़ मेहनत की और अब पिता की शहीदी के 20 साल बाद इनायत भी देशसेवा के लिए तैयार है। इनायत सेना में भर्ती होने जा रही है। इनायत के नाना भी आर्मी में कर्नल थे। इनायत अपनी तीसरी पीढ़ी के तौर पर सेना में सेवा देने जा रही हैं।

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साल 2003 में शहीद हुए थे मेजर नवनीत वत्स

 मेजर नवनीत वत्स साल 2003 में आतंकियों के खिलाफ एक ऑपरेशन के दौरान शहीद हो गए थे। उस समय इनायत की उम्र 2.5 (अढ़ाई) साल थी। श्रीनगर की एक इमारत में आतंकियों से लड़ते हुए मेजर नवनीत वत्स शहीद हो गए थे। उन्हें मरणोपरांत सेना मेडल से सम्मानित किया गया था। पंचकूला की रहने वाली इनायत अपने मां-बाप की इकलौती बेटी हैं। अप्रैल में इनायत ऑफिसर्स ट्रेनिंग अकैडमी (ओटीए) चेन्नई जाएंगी। इनायत ने दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज से ग्रैजुएशन पूरा किया। इसके बाद वह दिल्ली के हिंदू कॉलेज में राजनीतिशास्त्र से मास्टर्स कर रही हैं। इनायत को हरियाणा सरकार की तरफ से भी गजटेड ऑफिसर बनाने का ऑफर दिया गया था।

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हरियाणा सरकार की शहीदों के परिवार को दी जाने वाली सुविधा के नियम के मुताबिक उन्हें यह ऑफर मिला था। हालांकि इनायत अपने पिता के कदमों पर चलना चाहती थीं। उनका लक्ष्य सेना में जाना ही था। इनायत की मां शिवानी को अपनी बैटी पर गर्व है कि उसने देश सेवा की राह चुनी। इनायत की मां शिवानी ने अपनी बेटी को तमाम मुश्किलों के बावजूद बहादुर बनाया और उसे राष्ट्र सेवा के लिए समर्पित किया। इनायत की मां शिवानी तब 27 ही साल की थीं जब मेजर नवनीत शहीद हुए थे, फिर भी उनका हौसला डगमगाया नहीं और अपनी बैटी को ओटीए भेजने का फैसला किया।

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