Election Diary: 2 बार देश के एक्सीडैंटल प्राइम मिनिस्टर बने गुलजारी लाल नंदा

Edited By Anil dev,Updated: 16 Mar, 2019 10:33 AM

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हाल ही में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लेकर आई फिल्म ‘द एक्सीडैंटल प्राइम मिनिस्टर’ काफी चर्चा में रही लेकिन बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि देश के पहले एक्सीडैंटल प्राइम मिनिस्टर गुलजारी लाल नंदा थे

जालंधर(नरेश कुमार): हाल ही में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लेकर आई फिल्म ‘द एक्सीडैंटल प्राइम मिनिस्टर’ काफी चर्चा में रही लेकिन बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि देश के पहले एक्सीडैंटल प्राइम मिनिस्टर गुलजारी लाल नंदा थे जो संयोग से एक बार नहीं बल्कि 2-2 बार प्राइम मिनिस्टर बने। हालांकि दोनों बार बतौर अंतरिम प्रधानमंत्री उनका कार्यकाल 13-13 दिन का रहा और इन कार्यकालों के दौरान नंदा ने कोई बड़ा फैसला नहीं लिया। गुलजारी लाल नंदा 27 मई 1964 को पहली बार तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु के बाद प्रधानमंत्री बने और 9 जून 1964 तक इस पद पर रहे। 

लाल बहादुर शास्त्री की मौत के बाद फिर मिला पीएम बनने का मौका
इसके बाद 11 जनवरी 1966 को ताशकंद में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की अचानक मृत्यु के बाद उन्हें एक बार फिर प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला। इस बार वह 11 जनवरी 1966 से 24 जनवरी 1966 तक देश के प्रधानमंत्री रहे। हालांकि जिस समय गुलजारी लाल नंदा देश के प्रधानमंत्री बने उस समय देश के हालात ङ्क्षचताजनक थे और चीन व पाकिस्तान के साथ जंग व दो-दो प्रधानमंत्रियों के निधन के पश्चात देश उनके फैसलों पर ही निर्भर था। उनके 13 दिन के पहले कार्यकाल के बाद कांग्रेस कार्य समिति ने लाल बहादुर शास्त्री को देश का प्रधानमंत्री चुना जबकि लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद जब वह दोबारा अंतरिम प्रधानमंत्री बने तो कांग्रेस कार्यसमिति ने इंदिरा गांधी के नाम पर सहमति बनाई। 

कौन थे गुलजारी लाल नंदा
4 जनवरी 1898 को सियालकोट (अब पाकिस्तान) में जन्मे गुलजारी लाल नंदा ने लाहौर, आगरा व इलाहाबाद से शिक्षा हासिल की और कामगारों को आने वाली परेशानियों को लेकर शोध भी किए। 1921 में वह बॉम्बे के नैशनल कालेज में अर्थशास्त्र के प्रोफैसर रहे। 1937 में वह बॉम्बे की विधानसभा के लिए चुने गए और 1937 से 1939 तक लेबर व एक्साइज विभाग के संसदीय सचिव रहे और 1946 से 50 तक बॉम्बे सरकार में लेबर मंत्री बने। इसी दौरान 1947 में जिनेवा में हुई इंटरनैशनल लेबर कांफ्रैंस में हिस्सा लेने के लिए वह भारत की तरफ प्रतिनिधि के तौर पर गए और लेबर के मामलों को लेकर उन्होंने फ्रांस, स्विट्जरलैंड, बैल्जियम और यू.के. में दौरे करके स्थानीय स्तर पर लेबर के सुधार के लिए हो रहे प्रयासों का अध्ययन किया। 1950 में उन्हें प्लानिंग कमीशन का वाइस चेयरमैन बनाया गया। 1957 में उन्होंने लोकसभा का चुनाव लड़ा और चुनाव जीत कर केंद्रीय लेबर व रोजगार मंत्री बने। 1962 में वह एक बार फिर गुजरात की साबर कांठा लोकसभा सीट से चुने गए और एक बार फिर केंद्र में लेबर मंत्री बने। 1997 में उन्हें देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न दिया गया।

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