Edited By Radhika,Updated: 17 Jan, 2024 01:17 PM
न खाट पर सोना और चिकन से भी परहेज ढूंढने पर भी ऐसा कोई स्थान मिलना काफी मुश्किल है, लेकिन हाल ही में ऐसा एक उदाहरण सामने आया है। यह मैलारिलिंगय्या मल्लय्या नाम का पवित्र धाम है, जो बेंगलुरु से करीब 520 किमी और यादगीर जिला मुख्यालय से करीब 20 किमी...
नेशनल डेस्क: न खाट पर सोना और चिकन से भी परहेज ढूंढने पर भी ऐसा कोई स्थान मिलना काफी मुश्किल है, लेकिन हाल ही में ऐसा एक उदाहरण सामने आया है। यह मैलारिलिंगय्या मल्लय्या नाम का पवित्र धाम है, जो बेंगलुरु से करीब 520 किमी और यादगीर जिला मुख्यालय से करीब 20 किमी दूर स्थित है। इस गांव में तरकरीबन 3000 लोगों की आबादी है।
इस गांव ने एक ऐसी मिसाल कायम की है, जो शायद आपको ढ़ूढने पर भी नही मिलने वाली है। इस गांव के स्थानीय देवताओं की नींद में कोई रुकावट न आए इसलिए विशेष रुल्स फॉलो किए जाते हैं। इस धार्मिक गांव को लेकर कहा जा रहा है कि देवताओं की नींद में कोई खलल न पड़े इसलिए दूर-दूर तक कोई भी वासी मुर्गी पालन व्यवसाय नहीं किया। कहा जाता है कि लोगों की इस भगवान में काफी आस्था है। ये मान्यताएं पीढी दर पीढी चली आ रही हैं। ये गांव अपनी इस खासियत के लिए मशहूर है, लेकिन बहुत से लोगों को इसके बारे में जानकारी नही है।
ये है मुख्य व्यवसाय-
इस गांव में मुख्य रूप से कपास, अरहर, मिर्च और गन्ने की खेती की जाती है। इसके अलावा यहां के लोग मुर्गी पालन व्यवसाय भी नही करते है और न ही कोई व्यक्ति चारपाई पर सोता है।
न खाट पर सोना और न मुर्गा पालन, जानें क्या है वजह-
मैलारिलिंगय्या मल्लय्या जिन्हें भगवान शिव का अवतार कहा जाता है। ये गांव के लोगों के इष्ट हैं। इनके बारे में कहा जाता है कि ये ऐसे देवता हैं जिन्हें विशेष रूप से नींद के दौरान किसी तरह का व्यवधान बर्दाश्त नहीं हैं। ऐसी मान्यता है कि यदि भगवान की नींद में बाधा होती है, तो गांव के लोगों को भगवान के श्राप का सामना करना पड़ेगा।
इसके अलावा चारपाई पर सोना इसलिए प्रतिबंधित है, क्योंकि यहां पर ये भी मान्यता है कि मल्लय्या और उनकी पत्नी, देवी तुरंगा देवी, खाट पर विराजते हैं। वो भक्तों को आशीर्वाद देते हैं। उनके सम्मान में सभी लोग यहां तक कि देवी के गुस्से से बचने के लिए फर्श पर सोना पसंद करते हैं।