Gold Rate: सितंबर में सोने-चांदी की कीमतों ने तोड़े रिकॉर्ड, क्या अक्टूबर में आएगी गिरावट?

Edited By Updated: 01 Oct, 2025 08:34 PM

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बिना किसी बड़े त्योहार के, सितंबर 2025 में सोने और चांदी की कीमतों ने ऐतिहासिक ऊंचाइयों को छू लिया। पहली बार जीएसटी समेत सोने का भाव ₹1.20 लाख प्रति 10 ग्राम के पार पहुंच गया, जबकि चांदी की कीमत ₹1.50 लाख प्रति किलो के करीब दर्ज की गई। बीते महीने...

नेशनल डेस्कः बिना किसी बड़े त्योहार के, सितंबर 2025 में सोने और चांदी की कीमतों ने ऐतिहासिक ऊंचाइयों को छू लिया। पहली बार जीएसटी समेत सोने का भाव ₹1.20 लाख प्रति 10 ग्राम के पार पहुंच गया, जबकि चांदी की कीमत ₹1.50 लाख प्रति किलो के करीब दर्ज की गई। बीते महीने चांदी की रफ्तार सोने की तुलना में लगभग दोगुनी रही।

सितंबर में कितना बढ़ा सोना-चांदी का भाव?
सितंबर 2025 में सोना ₹12,961 प्रति 10 ग्राम महंगा हुआ, वहीं चांदी की कीमत में ₹24,862 प्रति किलो का उछाल देखा गया। इंडियन बुलियन एंड ज्वैलर्स एसोसिएशन (IBJA) के मुताबिक, अगस्त के आखिरी कारोबारी दिन सोना ₹1,02,388 प्रति 10 ग्राम और चांदी ₹1,17,572 प्रति किलो के स्तर पर बंद हुई थी। अगर पूरे साल की बात करें तो जनवरी से सितंबर 2025 तक सोना ₹39,609 प्रति 10 ग्राम और चांदी ₹56,417 प्रति किलो महंगी हो चुकी है।

क्या अक्टूबर में जारी रहेगी तेजी?
केडिया एडवाइजरी की रिपोर्ट के अनुसार, सितंबर में सोने में करीब 10% की तेजी दर्ज की गई है। पिछले छह में से पांच वर्षों में सितंबर के महीने में सोने की कीमतें बढ़त के साथ बंद हुई हैं, जिससे यह साबित होता है कि यह महीना आमतौर पर सोने के लिए फायदेमंद रहा है। इतना ही नहीं, आंकड़े बताते हैं कि पिछले 5–6 वर्षों में अक्टूबर के महीने में सोने की कीमतों में कभी गिरावट दर्ज नहीं की गई है। इस दौरान औसतन 2.58% का इजाफा देखने को मिला है। जानकारों का मानना है कि त्योहारों की बढ़ती मांग और वैश्विक स्तर पर हेजिंग फ्लो की वजह से सोने की कीमतों को सपोर्ट मिलता है।

तकनीकी विश्लेषण के मुताबिक, सोना अभी भी मजबूत स्थिति में है, हालांकि कुछ संकेत सावधानी बरतने की सलाह देते हैं। सोना अपने दीर्घकालिक औसत ट्रेंड से काफी ऊपर ट्रेड कर रहा है, जिससे यह संकेत मिलता है कि तेजी अब ज्यादा लंबी खिंच चुकी है। इसके बावजूद, ज्यादातर विश्लेषकों का मानना है कि सोना अभी भी एक मजबूत बुल मार्केट में है, न कि बुलबुले में। उनका तर्क है कि बुलबुले में उतार-चढ़ाव और अनिश्चितता ज्यादा होती है, जो फिलहाल बाजार में नहीं दिख रही। हालांकि, अगर बाजार में सट्टा बढ़ता है और जरूरत से ज्यादा पैसा आ जाता है, तो अचानक गिरावट का खतरा भी बढ़ सकता है।

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