‘3 सालों से चला आ रहा रिश्ता एक रात में कैसे टूटा?’ SC की सुनवाई में राज्यपाल के रोल पर CJI ने पूछा

Edited By Yaspal,Updated: 15 Mar, 2023 08:07 PM

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सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को टिप्पणी की कि सत्तारूढ़ दल में विधायकों के बीच केवल मतभेद के आधार पर बहुमत साबित करने को कहने से एक निर्वाचित सरकार पदच्युत हो सकती है

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को टिप्पणी की कि सत्तारूढ़ दल में विधायकों के बीच केवल मतभेद के आधार पर बहुमत साबित करने को कहने से एक निर्वाचित सरकार पदच्युत हो सकती है। अदालत ने साथ ही कहा कि राज्य का राज्यपाल अपने कार्यालय का इस्तेमाल इस नतीजे के लिए नहीं होने दे सकता। प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा, ‘‘यह लोकतंत्र के लिए एक शर्मनाक तमाशा होगा।'' पीठ ने यह टिप्पणी पिछले साल महाराष्ट्र में अविभाजित शिवसेना में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में हुई बगावत के बाद जून 2022 में महाराष्ट्र में पैदा हुए राजनीतिक संकट को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करने के दौरान की।

शिंदे गुट के विधायक तीन साल तक मंत्रीपद का आनंद उठाते रहे और अचानक 34 विधायकों ने राज्यपाल को अचानक पत्र क्यों लिख दिया? राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने इस पत्र के आधार पर बहुमत परीक्षण करवाने का फैसला कर लिया? उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वे ठाकरे सरकार को गिराना चाहते थे। इन शब्दों में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सीजेआई ने महाराष्ट्र में शिंदे-ठाकरे विवाद पर राज्यपाल की भूमिका पर सवाल उठा दिए।

पीठ ने यह टिप्पणी महाराष्ट्र के राज्यपाल की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता के उपस्थित होने के बाद की। मेहता ने घटना का सिलसिलेवार उल्लेख किया और कहा कि उस समय राज्यपाल के पास कई सामग्री थी जिनमें शिवसेना के 34 विधायकों के हस्ताक्षर वाला पत्र , निर्दलीय विधायकों का तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे नीत सरकार से समर्थन वापस लेने का पत्र शामिल है और नेता प्रतिपक्ष ने सदन में बहुमत साबित करने की मांग की थी। महाराष्ट्र के तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने तब ठाकरे को सदन में बहुमत साबित करने को कहा था। हालांकि, ठाकरे ने सदन में बहुमत प्रस्ताव पर मतदान होने से पहले ही इस्तीफा दे दिया जिससे शिंदे के नए मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेने का रास्ता साफ हुआ।

अदालत ने कहा,‘‘पार्टी के विधायकों के बीच मत का आधार कुछ भी हो सकता है जैसे विकास कोष का भुगतान, पार्टी का आदर्शों से हटना लेकिन क्या यह आधार राज्यपाल द्वारा सदन में बहुमत साबित करने को कहने के लिए पर्याप्त हो सकता है? राज्यपाल को अपने कार्यालय का इस्तेमाल खास नतीजे के लिए नहीं करने देना चाहिए। बहुमत साबित करने को कहने से निर्वाचित सरकार पदच्युत हो सकती है।'' इस पीठ में न्यायमूर्ति एम आर शाह, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा शामिल हैं।

पीठ ने कहा कि इस मामले में नेता प्रतिपक्ष का पत्र मायने नहीं रखता क्योंकि वह हमेशा कहेंगे कि सरकार ने बहुमत खो दिया या विधायक नाराज हैं। इस मामले में विधायकों द्वारा जान को खतरा बताए जाने वाले पत्र भी प्रासंगिक नहीं है। अदालत ने कहा, ‘‘केवल एक चीज 34 विधायकों का प्रस्ताव है जो बताता है कि पार्टी के काडर और विधायकों में अंसतोष है... क्या यह बहुत साबित करने को कहने के लिए पर्याप्त है? हालांकि, हम कह सकते हैं कि उद्धव ठाकरे संख्याबल में हार गए थे।''

 

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