सांच को आंच क्या: जांच हो तो रहस्य खुले

Edited By Updated: 03 Nov, 2019 10:21 AM

if the investigation is revealed then the secret

भारतीय नेताओं, पत्रकारों, वकीलों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की जासूसी करने के लिए इजरायली कंपनी एनएसओ ग्रुप की भारतीय कानून के अनुसार जांच होनी चाहिए। हालांकि मामला सामने आने के बाद सरकार का ध्यान अभी तक सिर्फ व्हाट्सएप से सवाल जवाब तक सीमित है...

नई दिल्ली (विशेष) : भारतीय नेताओं, पत्रकारों, वकीलों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की जासूसी करने के लिए इजरायली कंपनी एनएसओ ग्रुप की भारतीय कानून के अनुसार जांच होनी चाहिए। हालांकि मामला सामने आने के बाद सरकार का ध्यान अभी तक सिर्फ व्हाट्सएप से सवाल जवाब तक सीमित है। देश की अदालतें भी इस मामले को संज्ञान में लेते हुए जांच के आदेश दे सकती हैं। संसद में सूचना एवं तकनीक पर स्टैंडिंग कमेटी इस बात की जांच के लिए कह सकती है कि नागरिकों की निजता में कैसे सेंध लगाई गई। विशेषज्ञों के अनुसार इजरायली कंपनी पर कानूनी कार्रवाई करने के लिए राजनीतिक दृढ़ इच्छाशक्ति की जरूरत होगी। इसमें इजरायल से मुधर होते संबंधों को बाधक नहीं बनने देना चाहिए। 

 

जासूसी कराने वाला भी हो बेनकाब
सबसे बड़ा सवाल यह है कि इजरायली एनएसओ ग्रुप को मोटा भुगतान कर भारतीयों की जासूसी कौन करवा रहा था, इससे पर्दा हटाया जाए। वे लोग कौन हैं, उनके इरादे क्या हैं? इसका पता लगाना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि यह मामला देश की आंतरिक सुरक्षा का है। विपक्ष लगातार सरकार से इस तरह के सवाल कर रहा है।

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पेगासस नाम कहां से आया
व्हाट्सएप के जरिए जासूसी करने वाले स्पाईवेयर पेगासस को यह नाम ग्रीक दंतकथाओं से मिला है। ग्रीक कथाओं में पेगासस पंखों वाले सफेद घोड़े का नाम है। वह समुद्र के देवता पोसेइडोन का बेटा है।

 

व्हाट्सएप वाला रास्ता 
फेसबुक के स्वामित्व वाले व्हाट्स ने एक अमरीकी अदालत में एनएसओ ग्रुप के खिलाफ कानूनी वाद दायर कर दिया है। इसमें व्हाट्सएप की प्रतिष्ठा को क्षति पहुंचाने और उसे आर्थिक नुकसान पहुंचाने का आरोप एनएसओ पर लगाया गया है। भारत सरकार की ओर से भी उसके नागरिकों की जासूसी के मामले में वाद दायर किया जाना चाहिए। देश की अदालत में यह मामला चलना चाहिए और एनएसओ कटघरे में होना चाहिए।

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एनएसओ ग्रुप ने तेजी से की तरक्की 
एनएसओ ग्रुप की स्थापना 2010 में इजरायली सेना की खुफिया संस्था यूनिट 8200 के तीन पूर्व अधिकारियों निव चार्मी, ओमरी लेवी और शालेव हुलियो ने मिलकर की थी। इसमें कुल 500 कर्मचारी हैं और इसका मुख्यालय तेल अवीव के निक हरज्लिया में है। 2013 में इसका सालाना राजस्व 4 करोड़ डालर था। उसके बाद इसने तेजी से तरक्की की और 2015 में यह 15 करोड़ डॉलर और 2017 में एक अरब डॉलर की कंपनी बन गई। कंपनी के अनुसार ग्रुप आतंकवाद के खिलाफ सरकारों को तकनीकी मदद मुहैया कराता है मगर अब सामने आया है कि यह ग्रुप पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की ही जासूसी करता था। 

 

ये सरकारें बनीं क्लाइंट
2012 में मैक्सिको सरकार ने एनएसओ के साथ 2 करोड़ डॉलर के करार की घोषणा की थी। 2015 में एनएसओ ग्रुप ने यह स्वीकार किया था कि वह पनामा सरकार को सर्विलांस तकनीक दे रहा है। अप्रैल 2019 में ऐसे आरोप लगने पर कि पत्रकार जमाल खशोगी की ट्रेकिंग के लिए एनएसओ का सॉफ्टवेयर ही इस्तेमाल किया गया था कंपनी ने साऊदी अरब से डील ठंडे बस्ते में डाल दी थी। 

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4 सवाल कांग्रेस के 

1. भारत सरकार में किसने अवैध स्पाईवेयर की खरीद की और इसका इस्तेमाल किया? 
2. प्रधानमंत्री या एनएसए, इस खरीद की अनुमति किसने दी? 
3. अगर फेसबुक की ओर से सरकार को मई 2019 में ही इस बारे में जानकारी दे दी गई थी तो सरकार इस पर चुप्पी क्यों साधे रही? 
4. दोषियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की जा रही है?

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