भारतीय लोग अपनी आदतों से बाज नहीं आएगें-शशि थरूर

Edited By ,Updated: 24 Jan, 2016 05:26 PM

indian people will not refrain from their practices shashi tharoor

पूर्व केन्द्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता शशि थरूर ने कहा है कि विदेशों में जाते ही भारतीय नागरिक सभी तरह के ...

जयपुर : पूर्व केन्द्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता शशि थरूर ने कहा है कि विदेशों में जाते ही भारतीय नागरिक सभी तरह के कायदे कानूनों का पालन करते हैं लेकिन भारत में आकर सड़कों पर गंदगी फैलाने और कूडा कचरा डालने की अपनी पुरानी आदतों से बाज नही आते। थरूर ने आज यहां जयपुर साहित्य उत्सव (जेएलएफ) के चौथे दिन ‘‘ स्वच्छ भारत - द इंडिया स्टोरी’’ में शिरकत करते हुए कहा कि मौजूदा नरेन्द्र मोदी सरकार पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार की नीतियों का नाम बदलकर वाह वाही लूटने का प्रयास कर रही है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी महात्मा गांधी की जयंती पर जिस तरह मीडिया के सामने झाडू लेकर सफाई करने का ढोंग करके फोटो खिंचवाते है वह कोई नया अभियान नहीं है बल्कि कांग्रेस सरकार ने वर्षो पहले निर्मल भारत के नाम से पूरे देश में यह अभियान शुरू किया था और उस समय उस अभियान का बजट मौजूदा स्वच्छ भारत अभियान से ज्यादा ही रखा गया था।  
 
उन्होंने सड़कों के किनारे खड़े होकर मूत्र करने वाले लोगों को रोकने का उपाय यह भी सुझाया कि राजनेताओं की सुरक्षा में जुड़े सुरक्षाकर्मियों को हटाकर ऐसे लोगों की धरपकड में लगाना चाहिए तथा इनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी जरूरी है ताकि लोगों को सफाई के प्रति जागरूक बनाया जा सके। उन्होंने कहा कि यह अब भारतीय नागरिकों की आदत बन चुका है कि जब तक वे सड़कों पर नहीं थूकेगें , कूड़ा कचरा नहीं डालेंगे उन्हें मानसिक सुकून नहीं मिलेगा जबकि यही लोग जब विदेशों में जाते है तो वहां जाकर एकदम संयम और शालीनता का ढोंग करते है क्योंकि वहां के कायदे कानून कड़े होते है। उन्होंने कहा कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने 2004 में निर्मल भारत अभियान चलाकर शौचालय बनवाने की मुहिम शुरू की थी और मौजूदा नरेन्द्र मोदी सरकार कांग्रेस की पुरानी योजनाओं को नए नामों से चलाकर वाह वाही लूट रही है।
 
इस दौरान यह तथ्य भी सामने आए कि देश में रोजाना साठ करोड़ लोग खुले में शौच करते है , छह करोड़ से अधिक बच्चे कुपोषण के शिकार है और छह हजार बच्चे उल्टी और दस्त के शिकार होकर दम तोड़ रहे है। इसके अलावा सात हजार से अधिक लोग अभी भी सिर पर मैला ढोने की अमानवीय प्रवृति का शिकार है। इस चर्चा में शामिल सामाजिक कार्यकर्ता अनुस्तुप नायक ने कहा कि हम लोग सिर्फ अपना घर साफ रखने में ध्यान देते है और घरों का पूरा कचरा सड़कों पर फैंक कर आ जाते है और यही सोच गंदगी बढऩे का कारण है। 
 
गंदगी के इस माहौल से निजात पाने के लिए हमें बच्चों को साफ सफाई के महत्व के बारे में शुरू से ही बताना चाहिए। उन्होंने बताया कि दक्षिण भारत में उनके संगठन ने दस हजार सरकारी स्कूलों में स्वच्छता संबंधी कार्यक्रम शुरू करवाए थे लेकिन उसका एक भी बेहतर परिणाम सामने नहीं आया और यही हाल रहा तो स्वच्छ भारत अभियान हर साल और हर सरकार के कार्यकाल में रिपीट होते रहेंगे। पंजाब के दलित ङ्क्षचतक और लेखक देशराज काली ने पंजाब में गंदगी के माहौल की चर्चा करते हुए कहा कि जालंधर जैसे बड़े शहर में 20 बडे स्लम है और इनमें अधिकतर अनुसूचित जातियों के लोग ही रहते है। 
 
उन्होंने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि आखिर एक खास वर्ग ही क्यों सफाई और मैला ढोने के काम को अंजाम दे रहा है , सरकार को इस दिशा में आकर पहल करनी चाहिए। उन्होंने पंजाब सरकार के शौचालय बनाने के कार्यक्रमों की पोल खोलते हुए कहा कि सरकार एक शौचालय बनाने के लिए तीन हजार रुपए की सहायता दे रही है और इसमें ठेकेदार भी कमीशन खाते है तो ऐसे में शौचालयों की गुणवत्ता क्या होगी यह हर कोई जानता है। काली ने कहा कि जब पांच पांच हजार रुपए में सफाई कर्मचारी रखे जा रहे है और इसमें से उन्हें कुछ हिस्सा ठेकेदारों को भी देना पड़ता है तो वे कैसे अच्छा काम कर सकेंगे। उनके पास गंदगी से बचने के लिए न तो दस्ताने है और न ही उन्हें मास्क उपलब्ध कराए गए है ऐसे में यह लोग शहरों को गंदगी एवं बीमारी से बचाने के प्रयास में खुद बीमार हो रहे है। 
 
उन्होंने आंकडों का हवाला देते हुए कहा कि सीवरेज प्रणाली में लगे कर्मचारी कभी भी सेवानिवृत नहीं होते है और अपनी नौकरी के दौरान सीवर की जहरीली गैसों की चपेट में आकर दम तोड़ जाते है। उन्होंने बताया कि पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के क्षेत्र में शौचालयों के बनवाने में भ्रष्टाचार पूरी तरह दिख रहा है और इसमें ब्यूरोक्रेसी भी जिम्मेदार है तो इस पर चुटकी लेते हुए थरूर ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से इस बारे में पूछना चाहिए जिन्होंने कहा था ‘‘न खाऊंगा , न खाने दूंगा’’ उनके वादे का क्या हुआ।

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