Edited By Anu Malhotra,Updated: 18 Aug, 2025 04:19 PM

केरल के कोझिकोड जिले में हाल ही में एक दिल दहला देने वाला मामला सामने आया है, जिसने आम लोगों से लेकर स्वास्थ्य विभाग तक को सतर्क कर दिया है। यहां 9 साल की एक बच्ची की दुर्लभ और बेहद घातक बीमारी अमीबिक इंसेफेलाइटिस के चलते मौत हो गई है। यह बीमारी...
नेशनल डेस्क: केरल के कोझिकोड जिले में हाल ही में एक दिल दहला देने वाला मामला सामने आया है, जिसने आम लोगों से लेकर स्वास्थ्य विभाग तक को सतर्क कर दिया है। यहां 9 साल की एक बच्ची की दुर्लभ और बेहद घातक बीमारी अमीबिक इंसेफेलाइटिस के चलते मौत हो गई है। यह बीमारी आमतौर पर गर्म और मीठे पानी के प्राकृतिक स्रोतों-जैसे नदियों, झीलों और झरनों-में पाए जाने वाले एक सूक्ष्म जीव "ब्रेन ईटिंग अमीबा" के कारण होती है।
बच्ची की हालत बिगड़ी और फिर मौत
जानकारी के अनुसार, बच्ची को 13 अगस्त को तेज बुखार और सिरदर्द की शिकायत के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था। हालत में सुधार न होने पर अगले ही दिन उसे कोझिकोड मेडिकल कॉलेज रेफर किया गया, जहां उसकी हालत और गंभीर हो गई। दुर्भाग्यवश 14 अगस्त को बच्ची की जान नहीं बचाई जा सकी। मेडिकल रिपोर्ट में पुष्टि हुई कि उसकी मौत अमीबिक इंसेफेलाइटिस के कारण हुई।
क्या होता है अमीबिक इंसेफेलाइटिस?
यह संक्रमण एक अत्यंत दुर्लभ लेकिन घातक ब्रेन डिजीज है, जिसे वैज्ञानिक भाषा में प्राइमरी अमीबिक मेनिंगोएन्सेफलाइटिस (PAM) कहा जाता है। यह Naegleria fowleri नामक एककोशकीय अमीबा के कारण होता है, जो गर्म और दूषित मीठे पानी में पनपता है।
कैसे करता है यह हमला?
यह अमीबा इंसान के शरीर में नाक के रास्ते प्रवेश करता है, खासकर तैराकी, गोता लगाने या दूषित पानी से नाक धोने के दौरान। एक बार जब यह नाक के जरिये मस्तिष्क तक पहुंचता है, तो ब्रेन टिशू को तेजी से नष्ट करने लगता है। यह प्रक्रिया इतनी तेजी से होती है कि संक्रमित व्यक्ति की जान कुछ ही दिनों में जा सकती है।
केरल में पहले भी आ चुके हैं मामले
यह पहला मामला नहीं है। केरल में इससे पहले भी ब्रेन ईटिंग अमीबा के केस सामने आ चुके हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यह अमीबा 46 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान में भी जीवित रह सकता है और इससे भी ज्यादा गर्मी झेल सकता है। गर्मियों में इसका खतरा और भी बढ़ जाता है।
कैसे बचा जा सकता है?
- गर्म पानी के स्रोतों में तैराकी से बचें, खासकर जहां पानी साफ न हो।
- नाक में पानी जाने से रोकें, खासकर बच्चों के लिए विशेष सतर्कता रखें।
- धार्मिक या घरेलू कारणों से नाक धोते समय साफ, उबला हुआ या फिल्टर किया हुआ पानी ही इस्तेमाल करें।
- संक्रमण के लक्षण जैसे सिरदर्द, बुखार, उल्टी, मतली या गंध का अनुभव न होना—को नजरअंदाज न करें।