Farmers protest: कृषि कानूनों के वापस लेने के बाद भी जारी रहा किसान आंदोलन तो ये होगा सरकार का प्लान 'बी'!

Edited By Anil dev,Updated: 29 Nov, 2021 02:46 PM

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कृषि कानून वापसी बिल लोकसभा के बाद अब राज्यसभा से पारित हो गया है। पहले लोकसभा और फिर राज्यसभा से कृषि कानून वापसी बिल पास होने के बाद अब इसपर हस्ताक्षर के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा।

नेशनल डेस्क: कृषि कानून वापसी बिल लोकसभा के बाद अब राज्यसभा से पारित हो गया है। पहले लोकसभा और फिर राज्यसभा से कृषि कानून वापसी बिल पास होने के बाद अब इसपर हस्ताक्षर के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के तीनों कृषि कानून निरस्त हो जाएंगे। वहीं अब बड़ा सवाल यह है कि क्या बिल वापसी के बाद किसानों का आंदोलन खत्म हो जाएगा? दरअसल, यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऐलान के बावजूद किसान अभी भी आंदोलन में डटे हुए हैं। हालांकि इसके लिए सरकार ने प्लान बी तैयार कर लिया है। 

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ये है सरकार का प्लान 'बी'
कृषि कानूनों को वापस लेने की औपचारिकता पूरी होने के बावजूद भी अगर किसान आंदोलन जारी रहता है तो सरकार के लिए यह मुसीबत का सबब बन सकता है। सूत्रों के मुताबिक संसद से औपचारिकताएं पूरी कर लेने के बाद सरकार किसान नेताओं के साथ बातचीत एक बार फिर से शुरू कर सकती है। इस साल 22 जनवरी तक 11 दौर की बातचीत सरकार और किसानों के बीच हुई थी। लेकिन 26 जनवरी को हुई हिंसा के बाद बातचीत का दरवाजा लगभग बंद हो गया। लेकिन अब सरकार का मानना है कि बातचीत शुरू होने के साथ ही किसानों से समझौता हो सकता है। किसान नेताओं की ओर से भी बातचीत की मांग लगातार की जा रही है। सूत्र यह बता रहे हैं कि सरकार जल्द ही किसान नेताओं को बातचीत का बुलावा भेज सकती है ताकि ये आंदोलन जल्द से जल्द खत्म हो सके। 

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कृषि कानून वापसी बिल लोकसभा के बाद अब राज्यसभा से भी हुआ पारित
संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों में तीनों कृषि कानून वापसी बिल पास हो गया। दोपहर करीब 12.30 बजे पहले लोकसभा में बिल पास हुआ और उसके बाद दोपहर 2.10 पर राज्यसभा में कृषि कानून निरसन विधेयक-2021 को मंजूरी दे दी गई। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने राज्यसभा में बिल वापसी पर बोलते हुए कहा कि यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बड़प्पन है कि उन्होंने किसानों की जिद्द का मान रखा। विपक्ष चर्चा करने की मांग पर अड़ा था, लेकिन सूत्रों ने बताया कि सरकार इस पर चर्चा के लिए इसलिए तैयार नहीं हुआ क्योंकि उसका कहना था कि जब प्रधानमंत्री मोदी खुद माफी मांग चुके हैं तो फिर चर्चा का सवाल नहीं उठता। 

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किसानों के आगे झुकी मोदी सरकार
आपको बतां दे कि सिखों के प्रथम गुरु नानक देव जी के 552वें प्रकाश पर्व के मौके पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक साल से अधिक समय से आंदोलनरत किसानों से क्षमायाचना करते हुए तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को वापस लेने की आज घोषणा करते हुए आंदोलनरत किसानों से घर लौटने का आह्वान किया था। मोदी ने राष्ट्र के नाम संदेश में कहा था कि ‘‘मैं आज देशवासियों से क्षमा मांगते हुए सच्चे मन से और पवित्र हृदय से कहना चाहता हूं कि शायद हमारी तपस्या में ही कोई कमी रही होगी जिसके कारण दिए के प्रकाश जैसा सत्य खुद किसान भाइयों को हम समझा नहीं पाए। आज गुरु नानक देव जी का पवित्र प्रकाश पर्व है। ये समय किसी को भी दोष देने का नहीं है। आज मैं आपको, पूरे देश को, ये बताने आया हूं कि हमने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का निर्णय लिया है।  उन्होंने आंदोलनरत किसानों से आग्रह किया कि वे गुरु परब के मौके पर आंदोलन को समाप्त करके अपने घर परिवार के साथ पर्व मनायें और खेतों में काम शुरू करें। उन्होंने कहा, ‘‘मैं आज अपने सभी आंदोलनरत किसान साथियों से आग्रह कर रहा हूं, आज गुरु पर्व का पवित्र दिन है। अब आप अपने-अपने घर लौटें, अपने खेत में लौटें, अपने परिवार के बीच लौटें। आइए एक नई शुरूआत करते हैं। नए सिरे से आगे बढ़ते हैं।''   

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भाजपा में पंजाब में सिखों की नाराजगी खत्म होने की जगी उम्मीद
पांच राज्यों के आगामी विधानसभा चुनाव से पहले तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा से सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को लगता है कि इससे उसकी चुनावी संभावनाएं मजबूत होंगी और उसके प्रचार अभियान को एक नयी ऊर्जा मिलेगी । ज्ञात हो कि पिछले साल सितंबर महीने में केंद्र सरकार विपक्षी दलों के भारी विरोध के बावजूद कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) कानून, कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार कानून और आवश्यक वस्तु संशोधन कानून, 2020 लेकर आई थी। इसके बाद से ही देश के विभिन्न हिस्सों, खासकर पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इन कानूनों का भारी विरोध आरंभ हो गया और इन राज्यों के किसान दिल्ली की अलग-अलग सीमाओं पर आकर डट गए। इन तीनों राज्यों में किसानों की नाराजगी और लगभग साल भर से चल रहा आंदोलन भाजपा के लिए मुसीबत का सबब बन गए थे। बहरहाल, तीनों कानूनों को निरस्त करने से भाजपा नेताओं में अब उम्मीद जगी है कि वह इस फैसले से पंजाब में सिखों की नाराजगी खत्म कर जहां एक नयी शुरुआत करेगी, वहीं जाट बहुल पश्चिमी उत्तर प्रदेश में वह अपना जनाधार वापस पाने मे सफल होगी। 

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कृषि कानून: सिंधू बॉर्डर के पास स्थानीय लोगों, व्यापारियों ने ली राहत की सांस 
सिंधू बॉर्डर के आसपास रहने वाले स्थानीय लोगों और व्यापारियों ने सरकार द्वारा कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा के बाद राहत की सांस ली है। एक साल से अधिक समय से आंदोलन कर रहे किसानों द्वारा सड़क जाम किए जाने के कारण वे प्रभावित हुए हैं। विभिन्न किसान संघों के तत्वावधान में पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के हजारों किसान पिछले साल 26 नवंबर से राष्ट्रीय राजधानी की सीमाओं पर तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे थे। सिंधू बार्डर पर निर्माण कार्य संबंधी दुकान चलाने वाले संदीप लोचन ने बताया कि कारोबार 10 प्रतिशत तक गिर गया है। उन्होंने कहा, ‘‘पहले कोरोना वायरस ने कारोबार को प्रभावित किया। पिछले एक साल से, किसानों के विरोध के कारण मेरे व्यवसाय को और नुकसान हुआ है। पहले के मुकाबले व्यापार 10 प्रतिशत तक गिर गया है। कारोबार को पटरी पर आने में लगभग छह महीने से एक साल तक का समय लगेगा।'' सिंधू बॉर्डर के पास खटकड़ गांव के जयपाल शर्मा ने कहा कि अंदरूनी इलाकों में यातायात बढ़ने से सड़कें क्षतिग्रस्त हो गई हैं। दिल्ली परिवहन निगम के सेवानिवृत्त कर्मचारी शर्मा ने कहा कि कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा के बाद, हमें उम्मीद है कि हमारा जीवन जल्द ही पटरी पर आ जाएगा। सीमा के पास कई दुकानें बंद हैं, उनके शटर पर धूल की मोटी परत जम गई है। कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा के तुरंत बाद सिंधू बॉर्डर के विरोध स्थल पर जश्न शुरू हो गया, लेकिन कुछ किसानों ने कहा कि संसद द्वारा विधेयकों को रद्द करने और सरकार के उनकी अन्य मांगों को मानने तक आंदोलन जारी रहेगा। 

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