NCERT ने बदली कक्षा 7 गणित की किताब, बच्चे पढ़ेंगे ज्यामिति में प्राचीन भारत की उपलब्धियां

Edited By Updated: 08 Nov, 2025 10:19 PM

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राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने कक्षा 7 की गणित की पुस्तक में बड़े बदलाव किए हैं। नई संशोधित किताब में यह बताया गया है कि गणित के कई महत्वपूर्ण सिद्धांतों और अवधारणाओं—विशेषकर बीजगणित और ज्यामिति—का उद्भव भारत में हुआ था और...

नेशनल डेस्कः राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने कक्षा 7 की गणित की पुस्तक में बड़े बदलाव किए हैं। नई संशोधित किताब में यह बताया गया है कि गणित के कई महत्वपूर्ण सिद्धांतों और अवधारणाओं, विशेषकर बीजगणित और ज्यामिति का उद्भव भारत में हुआ था और प्राचीन भारतीय गणितज्ञों ने इन विचारों को सबसे पहले विकसित किया था।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, नई किताब में भारतीय गणित की परंपरा, संस्कृत ग्रंथों के उदाहरण, ऐतिहासिक गणितीय समस्याएं और शुरुआती भारतीय ज्यामिति पर विशेष अध्याय शामिल किए गए हैं।

यह किताब NCERT की ‘गणित – प्रकाश सीरीज’ (भाग 2) है। इसका पहला भाग इस वर्ष की शुरुआत में जारी हुआ था, जिसमें भी भारतीय गणितीय विरासत पर ज़ोर दिया गया था। अब जारी भाग–2 में भारत की प्राचीन गणित परंपराओं को और विस्तार दिया गया है।

ब्रह्मगुप्त को दिया विशेष स्थान

किताब के पहले अध्याय में पूर्णांक, यानी धनात्मक और ऋणात्मक संख्याओं की व्याख्या दी गई है। इसमें 7वीं सदी के महान भारतीय गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त और उनके प्रसिद्ध ग्रंथ ब्रह्मास्फुटसिद्धांत का विस्तृत उल्लेख है। नई पुस्तक बताती है कि धनात्मक और ऋणात्मक संख्याओं के गुणा और भाग के नियमों की पहली स्पष्ट प्रस्तुति ब्रह्मगुप्त ने दी थी। यह गणित के इतिहास में एक बड़ी क्रांतिकारी उपलब्धि थी। इन नियमों ने आधुनिक अंकगणित और बीजगणित की नींव को आकार दिया। किताब में ब्रह्मगुप्त के नियमों पर आधारित अभ्यास प्रश्न भी जोड़े गए हैं।

बीजगणित पर भारत की अग्रणी भूमिका

किताब के बीजगणित वाले खंड में बताया गया है कि ‘बीजगणित’ शब्द ‘बीज’ और ‘गणित’ से बना है, जिसका अर्थ समस्या के ‘बीज’ या अज्ञात संख्या को ढूंढना होता है। प्राचीन भारतीय गणितज्ञ प्रतीकों और अक्षरों का उपयोग करके समीकरण बनाते और हल करते थे।ब्रह्मगुप्त अज्ञात राशियों को दर्शाने के लिए अक्षर उपयोग में लाते थे—यह बीजगणितीय चिन्तन के शुरुआती उदाहरणों में से एक है। इसके अलावा, पुस्तक में भास्कराचार्य (12वीं सदी) की रचना बीजगणित’ से एक ऐतिहासिक समस्या भी शामिल की गई है।

भारत से अरब और यूरोप तक गणित कैसे पहुंचा?

नई किताब में भारतीय गणित के वैश्विक प्रभाव को विस्तार से समझाया गया है। 8वीं सदी में भारतीय गणितीय सिद्धांतों का अरबी भाषा में अनुवाद हुआ। इन सिद्धांतों ने मध्य-पूर्व के गणितज्ञ अल-ख्वारिज़्मी को प्रभावित किया। लगभग 825 ईस्वी में उन्होंने प्रसिद्ध पुस्तक ‘हिसाब अल-जबर वल-मुकाबला’ लिखी। इसी ‘अल-जबर’ शब्द से आधुनिक अंग्रेज़ी का Algebra (अलजेब्रा) शब्द उत्पन्न हुआ। बाद में इन ग्रंथों का अनुवाद लैटिन में हुआ और यह ज्ञान यूरोप पहुंचा। किताब में ब्रह्मगुप्त के समय उपयोग में लाए जाने वाले गणितीय प्रतीकों की सूची भी शामिल है।

ज्यामिति और सुल्ब-सूत्र

पुस्तक का एक पूरा अध्याय “निर्माण और टाइलिंग” प्राचीन भारतीय ज्यामिति और सुल्ब-सूत्रों को समर्पित है।

सुल्ब-सूत्र, रस्सियों की मदद से लंब रेखा, समद्विभाजक और आकृतियों के निर्माण का तरीका बताते हैं। प्राचीन यज्ञ-वेधियों के निर्माण में इनका उपयोग किया जाता था। यह बताता है कि भारत सहित विश्व की कई सभ्यताएँ लंब और समद्विभाजक खींचने की सटीक तकनीक जानती थीं।

पहली बार कक्षा 7 की किताब में प्राचीन भारतीय विद्वानों का विस्तृत उल्लेख

पूर्व की कक्षा 7 गणित पुस्तकों में भारतीय गणितज्ञों को समुचित स्थान नहीं था। अब NCERT ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 और राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा के अनुरूप पाठ्यपुस्तकों में बड़े बदलाव किए हैं। इनका उद्देश्य भारतीय ज्ञान प्रणालियों (IKS) का स्कूली शिक्षा में समावेश और भारत की वैज्ञानिक, गणितीय और दार्शनिक विरासत को विद्यार्थियों तक पहुंचाना है। नई किताब इस दिशा में एक महत्वपूर्ण अकादमिक सुधार है।

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