'आज चीन का नक्शा कुछ और होता...', पीएम मोदी ने चीन की विस्तारवादी नीति को लेकर कड़ा रुख अपनाया

Edited By Updated: 07 Sep, 2024 12:01 PM

pm modi took a tough stand on china s expansionist policy

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन की विस्तारवादी नीति पर एक बार फिर से अपने सख्त रुख को स्पष्ट किया है। ब्रुनेई के सुल्तान हाजी हसनल बोल्कैया के साथ बैठक के दौरान, पीएम मोदी ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि भारत विकास की नीति का समर्थन करता है, विस्तारवाद...

नेशनल डेस्क: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन की विस्तारवादी नीति पर एक बार फिर से अपने सख्त रुख को स्पष्ट किया है। ब्रुनेई के सुल्तान हाजी हसनल बोल्कैया के साथ बैठक के दौरान, पीएम मोदी ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि भारत विकास की नीति का समर्थन करता है, विस्तारवाद की नहीं। यह बयान चीन की क्षेत्रीय दावेदारी और विस्तारवादी दृष्टिकोण के खिलाफ एक सशक्त संकेत के रूप में देखा जा रहा है। 

विस्तारवाद को 18वीं सदी की मानसिकता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने हालिया बयान में विस्तारवाद की आलोचना की, जो कि चीन के वैश्विक विस्तारवादी प्रयासों को लेकर की गई उनकी पहली टिप्पणी नहीं है। जुलाई 2020 में, जब लद्दाख के दौरे पर पीएम मोदी थे, तब उन्होंने चीन को कड़ा संदेश देते हुए कहा था कि विस्तारवाद का समय समाप्त हो चुका है। उन्होंने यह भी कहा था कि जो ताकतें विस्तारवाद से प्रेरित होती हैं, वे या तो समाप्त हो जाती हैं या उन्हें पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ता है। फरवरी 2014 में भी पीएम मोदी ने चीन की विस्तारवादी नीति को लेकर कड़ी प्रतिक्रिया दी थी। उन्होंने कहा था कि चीन को अपनी विस्तारवादी नीति को छोड़ना चाहिए और भारत के साथ शांति, प्रगति और समृद्धि के लिए द्विपक्षीय संबंध स्थापित करने चाहिए। इसी तरह, 2014 में जापान के दौरे के दौरान, उन्होंने विस्तारवाद को 18वीं सदी की मानसिकता करार दिया था और कहा था कि 21वीं सदी में ऐसी प्रवृत्तियों से कोई लाभ नहीं होगा।

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चीन की विस्तारवादी नीति 
चीन की विस्तारवादी नीति की जड़ें काफी गहरी हैं। क्षेत्रीय दावों और विस्तारवादी दृष्टिकोण के चलते चीन ने पिछले कुछ दशकों में अपने प्रभाव क्षेत्र को काफी बढ़ा लिया है। आज, चीन दुनिया के तीसरे सबसे बड़े देश के रूप में उभरा है, जिसका कुल क्षेत्रफल लगभग 97 लाख वर्ग किलोमीटर है, जो भारत के क्षेत्रफल से तीन गुना बड़ा है। चीन की सीमा 14 देशों से मिलती है, ये देश हैं- अफगानिस्तान, भूटान, भारत, कजाखस्तान, उत्तर कोरिया, किर्गिस्तान, लाओस, मंगोलिया, म्यांमार, नेपाल, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और वियतनाम हैं, और इसके साथ लगभग सभी के साथ सीमा विवाद हैं। 

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चीन के क्षेत्रीय दावे और विवाद
चीन ने कई क्षेत्रों पर अपने दावे बढ़ाए हैं, जिनमें शामिल हैं:

- पूर्वी तुर्किस्तान (शिनजियांग): 1949 से चीन ने इस क्षेत्र पर कब्जा किया हुआ है। इसे चीन 'शिनजियांग प्रांत' के रूप में जानता है, जहां उइगर मुसलमानों और हान चीनी लोगों की मिश्रित आबादी है।
- तिब्बत: 1950 में, चीन ने तिब्बत पर आक्रमण कर उसे अपने नियंत्रण में ले लिया। तिब्बत को चीन 'शिजांग प्रांत' के रूप में जानता है।
- इनर मंगोलिया (दक्षिण मंगोलिया): 1947 में चीन ने इस क्षेत्र को स्वायत्त घोषित किया, जहां मंगोलियाई और चीनी लोग मिलकर रहते हैं।
ताइवान: 1949 से, जब चीन में गृहयुद्ध समाप्त हुआ और ताइवान पर कुओमिंतांग का नियंत्रण बना, ताइवान को चीन अपना हिस्सा मानता है, जबकि ताइवान स्वयं को स्वतंत्र राष्ट्र मानता है।
- हॉन्गकॉन्ग और मकाउ: इन दोनों क्षेत्रों को चीन ने क्रमशः 1997 और 1999 में अपने नियंत्रण में लिया, साथ ही 'वन कंट्री, टू सिस्टम' समझौते के तहत इन क्षेत्रों को 50 साल तक राजनीतिक स्वतंत्रता दी।

भारत और चीन के बीच सीमा विवाद
भारत और चीन की सीमा 3,488 किलोमीटर लंबी है। चीन ने अरुणाचल प्रदेश के 90 हजार वर्ग किलोमीटर के हिस्से पर अपना दावा किया है, जिसे भारत पूरी तरह से अपने क्षेत्र का मानता है। चीन इसे 'दक्षिणी तिब्बत' का हिस्सा मानता है और इसे 'जंगनान' के रूप में संदर्भित करता है। इसके अतिरिक्त, लद्दाख का लगभग 38 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र चीन के कब्जे में है। 1963 के समझौते के अनुसार, पाकिस्तान ने पीओके के 5,180 वर्ग किलोमीटर भूमि को चीन को सौंप दिया था, जिसे चीन अपने क्षेत्र के रूप में देखता है।

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दक्षिण चीन सागर में चीन की गतिविधियाँ
दक्षिण चीन सागर, जो कि इंडोनेशिया, चीन, फिलीपींस, ताइवान, वियतनाम, मलेशिया, और ब्रुनेई के बीच स्थित है, पर चीन ने अपनी दावेदारी को बढ़ाया है। चीन ने इस क्षेत्र में कृत्रिम द्वीपों का निर्माण कर लिए हैं और सैन्य अड्डे स्थापित किए हैं। दक्षिण चीन सागर की क्षेत्रीय दावेदारी को लेकर कई देश चीन के खिलाफ सामने आए हैं, और यह विवाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रमुख मुद्दा बन चुका है।

प्रधानमंत्री मोदी का हालिया बयान चीन की विस्तारवादी नीति के खिलाफ एक मजबूत और स्पष्ट संदेश के रूप में देखा जा रहा है। यह बयान भारतीय सरकार की नीतियों को स्पष्ट करता है, जो कि विकास और सहयोग को प्राथमिकता देती है, न कि विस्तारवाद को। इस तरह के बयान वैश्विक मंच पर चीन की विस्तारवादी नीतियों के खिलाफ एक सशक्त विरोध के संकेत हैं, जो अंतरराष्ट्रीय समुदाय में एक महत्वपूर्ण चर्चा का विषय बन सकता है।

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