दिल्ली दंगा: विरोधाभासी बयानों पर अदालत ने कहा, शपथ लेकर झूठी गवाही दे रहे पुलिस गवाह

Edited By rajesh kumar,Updated: 06 Oct, 2021 04:55 PM

police witnesses giving false testimony by taking oath

दिल्ली की एक अदालत ने महानगर के उत्तर-पूर्वी हिस्से में हुए दंगों से जुड़े एक मामले में कहा कि पुलिस गवाहों में से एक शपथ लेकर गलत बयान दे रहा है।। इससे पहले एक पुलिसकर्मी ने तीन कथित दंगाइयों की पहचान की लेकिन एक अन्य अधिकारी ने कहा कि जांच के...

नेशनल डेस्क: दिल्ली की एक अदालत ने महानगर के उत्तर-पूर्वी हिस्से में हुए दंगों से जुड़े एक मामले में कहा कि पुलिस गवाहों में से एक शपथ लेकर गलत बयान दे रहा है।। इससे पहले एक पुलिसकर्मी ने तीन कथित दंगाइयों की पहचान की लेकिन एक अन्य अधिकारी ने कहा कि जांच के दौरान आरोपियों की पहचान नहीं हो सकी। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने कहा कि यह बहुत ही अफसोसजनक स्थिति है। इसके साथ ही उन्होंने पुलिस उपायुक्त (पूर्वोत्तर) को रिपोर्ट देने का निर्देश दिया। अदालत ने फरवरी 2020 के दंगों से संबंधित एक मामले में अभियोजन पक्ष के चार गवाहों की गवाही के बाद यह टिप्पणी की।

उन दंगों में 53 लोगों की मौत हो गयी थी जबकि 700 से अधिक लोग घायल हुए थे। एक हेड कांस्टेबल ने अपनी गवाही में न्यायाधीश से कहा कि उन्होंने दंगाइयों - विकास कश्यप, गोलू कश्यप और रिंकू सब्जीवाला की पहचान की थी। वह अभियोजन पक्ष के गवाहों में से एक है। उन्होंने कहा, ‘‘मैं साल 2019 से संबंधित क्षेत्र का बीट अधिकारी था। मैं सभी चार आरोपियों और विकास कश्यप, गोलू कश्यप तथा रिंकू सब्जीवाला को घटना के पहले से ही नाम और हुलिया से जानता था।" अदालत ने कहा कि पुलिसकर्मी ने दंगों के समय मौके पर उनकी उपस्थिति के बारे में "स्पष्ट रूप से जोर दिया" तथा उन्हें उनके नाम के साथ ही उनके पेशे से भी पहचाना।

इसके विपरीत, अभियोजन की ओर से एक अन्य गवाह- एक सहायक उप-निरीक्षक ने कहा कि उन तीन आरोपियों की जांच के दौरान पहचान नहीं हो सकी जिनके नाम हेड कांस्टेबल ने लिए थे। उन्होंने अदालत से कहा, "मैंने शेष तीन आरोपियों की तलाश की, लेकिन उनका पता नहीं चल सका।" इस बीच, मामले के जांच अधिकारी (आईओ) ने कहा कि इस बात की पुष्टि करने के लिए रिकॉर्ड में कोई दस्तावेज नहीं है कि तीनों आरोपियों के नाम रिकॉर्ड में होने के बावजूद उनकी कभी जांच की गई थी। इस पर अदालत ने कहा, "इसके विपरीत, कहा गया है कि जांच के दौरान इन आरोपियों की पहचान स्थापित नहीं हो सकी। रिकार्ड में ऐसी कोई सामग्री नहीं है कि उक्त आरोपियों को पकड़ने के लिए जांच अधिकारी द्वारा कभी प्रयास किए गए थे। प्रथम दृष्टया, पुलिस गवाहों में से एक शपथ लेने के बाद भी झूठ बोल रहा है जो भादंसं की धारा 193 के तहत दंडनीय है।''

 

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