जानिए, राजीव गांधी के राजनीतिक सफर से लेकर उनकी हत्या तक की कहानी

Edited By Updated: 20 Aug, 2019 10:39 AM

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देश के पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न स्वर्गीय राजीव गांधी की आज 75वीं जयंती है। राजीव गांधी महज 40 साल की उम्र में प्रधानमंत्री बन गए थे। उनका जन्म 20 अगस्त 1944 को मुंबई में हुआ था और 1991 में चुनाव प्रचार के दौरान एक बम विस्फोट में उनकी हत्या हो...

नेशनल डेस्क: देश के पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न स्वर्गीय राजीव गांधी की आज 75वीं जयंती है। राजीव गांधी महज 40 साल की उम्र में प्रधानमंत्री बन गए थे। उनका जन्म 20 अगस्त 1944 को मुंबई में हुआ था और 1991 में चुनाव प्रचार के दौरान एक बम विस्फोट में उनकी हत्या हो गई थी। राजीव गांधी दुनिया के उन युवा राजनेताओं में से एक हैं जिन्होंने सरकार का नेतृत्व किया है। पढ़िए उनकी राजनीति से जुड़े कुछ खास तथ्य:-
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इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी की 1980 में प्लेन क्रैश में मौत हो जाने के बाद राजीव गांधी को राजनीति में लाने की मांग उठी। खुद इंदिरा भी चाहती थी कि उनका बड़ा बेटा अब पार्टी की कमान संभालें लेकिन राजीव गांधी की राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं थी। वह राजनीति को अच्छा नहीं मानते थे। 

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इंदिरा गांधी ने राजीव को काफी समझाया लेकिन वे नहीं मानें। पूर्व पीएम ने राजीव को मनाने की जिम्मेदारी धर्मगुरु ओशो के सेक्रेटरी लक्ष्मी को सौंपी। इस बात का दावा राशिद मैक्सवेल की किताब द ओनली लाइफ, ओशो लक्ष्मी एंड द व‌र्ल्ड इन क्राइसिस में किया गया है। किताब में ओशो की सचिव को लेकर तमाम पहलुओं के बारे में लिखा गया जिनमें से एक राजीव गांधी के ऊपर भी है। दरअसल राजीब तब पायलट थे और वह इस करियर को छोड़ना नहीं चाहते थे लेकिन काफी लंबी चर्चा के बाद आखिर वे मान गए और उन्होंने राजनीति में आने के लिए एयरफोर्स की नौकरी से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने राजनीति में आकर एक नए युग का आगाज किया। संजय गांधी की मौत के बाद रिक्त अमेठी संसदीय सीट पर जून 1981 में उपचुनाव हुए। उपचुनाव में राजीव गांधी कांग्रेस के उम्मीदवार बने और लोकदल के शरद यादव को हराकर लोकसभा में पहुंच गए।

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इसके बाद उन्हें कांग्रेस का महासचिव बना दिया गया। लेकिन गांधी परिवार मुसीबतों से गुजर रहा था, भाई संजय की मौत के जख्म अभी भरे नहीं थे कि 31 अक्टूबर 1984 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की निजी सुरक्षा गार्डों ने गोली मारकर हत्या कर दी। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव को उसी दिन प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई गई। इंदिरा की हत्या के ठीक दो माह बाद यानि दिसम्बर, 1984 में लोकसभा चुनाव हुए जिसमें कांग्रेस को 542 में से 415 सीटों पर जीत मिली थी। राजीव गांधी फिर प्रधानमंत्री बने। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान तमाम कार्य किए। संचार क्रांति को बढावा दिया।
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वर्ष 1987 में श्रीलंका में राजीव गांधी पर हमला किया गया था। यह हमला उस वक्त किया गया था जब पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी शांति बहाली के लिए प्रयास के तहत श्रीलंका दौरे पर गए। यहां गार्ड ऑफ ऑनर के दौरान श्रीलंकाई सैनिक विजिथा रोहन विजेमुनी ने राजीव गांधी पर हमला कर दिया था। हालांकि सुरक्षाकर्मी की सजगता से वह इस हमले में बाल-बाल बच गए थे। 1989 में  राजीव ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया, लेकिन वह कांग्रेस पार्टी के नेता पद पर बने रहे।

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राजीव गांधी ने अपने प्रधानमंत्री काल में श्रीलंका में शांति प्रयासों के लिए भारतीय सैन्य टुकड़ियों को भी वहां भेजा, लेकिन इसके नतीजे में वे खुद लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ऐलम लिट्टे के निशाने पर आ गए। 21 मई 1991 की रात तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में राजीव गांधी जैसे ही चुनावी रैली को संबोधित करने पहुंचे तो मंच की ओर बढ़ते हुए एक महिला आत्मघाती हमलावर धनु ने उन्हें माला पहनानी चाही, तो सब इंस्पेक्टर अनुसुइया ने उसे रोक दिया। हालांकि राजीव गांधी के कहने पर उसे माला पहनाने के लिए आने दिया गया। धनु ने उन्हें माला पहनाई और जैसे ही वो उनके पैर छूने के लिए नीचे झुकी, उसने अपने कमर से बंधे बम का बटन दबा दिया। इस धमाके ने राजीव गांधी की जान ले ली।

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