Edited By rajesh kumar,Updated: 24 Aug, 2022 07:38 PM
उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को केंद्र सरकार से सवाल किया कि चुनाव के समय मतदाताओं को ‘मुफ्त उपहार' देने वाले वादों का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव की जांच के लिए वह एक सर्वदलीय बैठक बुलाने के साथ-साथ एक समिति क्यों नहीं बना सकती।
नेशनल डेस्क: उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को केंद्र सरकार से सवाल किया कि चुनाव के समय मतदाताओं को ‘मुफ्त उपहार' देने वाले वादों का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव की जांच के लिए वह एक सर्वदलीय बैठक बुलाने के साथ-साथ एक समिति क्यों नहीं बना सकती। मुख्य न्यायाधीश एन. वी. रमना और न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति सी. टी. रविकुमार ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय एवं अन्य की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से यह सवाल किया।
सरकार को बुलानी चाहिए सर्वदलीय बैठक- कोर्ट
न्यायमूर्ति रमना ने कहा कि केंद्र सरकार ने भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर उस जनहित याचिका का समर्थन किया था, जिसमें चुनाव आयोग को जांच करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई है। याचिका में मुफ्त उपहारों के देश की अर्थव्यवस्था के साथ ही स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों पर विपरीत प्रभाव की आशंका पर चिंता व्यक्त की गई है। पीठ ने कहा कि इस मामले में राजनीतिक दलों को साथ लेकर चलने और उनके बीच विचार-विमर्श और बहस की जानी चाहिए। केंद्र सरकार का पक्ष रख रहे मेहता ने अपनी ओर से कहा कि अंतत: मामला जांच के लिए अदालत के सामने ही आएगा।
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार इस मामले से जुड़ी सभी सूचनाएं और आंकड़े अदालत के समक्ष रखेगी। मेहता ने पीठ के समक्ष यह भी कहा कि आम आदमी पार्टी (आप) ने मामले में हस्तक्षेप करने की मांग करते हुए दावा किया है कि उसे संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार है। इस अधिकार में चुनावी भाषण और वादे भी शामिल हैं। याचिकाकर्ता उपाध्याय का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने सुझाव दिया कि मामले की जांच के लिए भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश आर. एम. लोढ़ा और पूर्व नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक विनोद राय की अध्यक्षता में एक समिति बनाई जा सकती है।
अगली सुनवाई के लिए तीन सदस्यीय पीठ का गठन
इस पर न्यायमूर्ति रमना ने कहा कि कहा, ‘‘जो व्यक्ति सेवानिवृत्त होता है या सेवानिवृत्त होने वाला है, उसका इस देश में कोई मूल्य नहीं है।'' न्यायमूर्ति रमना 26 अगस्त को सेवानिवृत्त होने वाले हैं। सिंह ने पीठ के समक्ष दलील देते हुए कहा कि ‘सुब्रमण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु सरकार' में शीर्ष अदालत के 2013 के फैसले पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। इस फैसले में शीर्ष अदालत ने माना था कि चुनावी घोषणा पत्र में राजनीतिक दलों द्वारा किए गए वादे लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 123 के अनुसार ‘भ्रष्ट आचरण' नहीं होंगे। न्यायमूर्ति रमना ने मामले की अगली सुनवाई के लिए न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय पीठ का गठन किया।