अब धरती की प्यास बुझाएंगे हैंडपंप, गिरते भूजल स्तर पर लगेगी लगाम

Edited By Ravi Pratap Singh,Updated: 19 Jul, 2019 01:03 PM

throw the earth s thirst the handpump the bridle at ground level

जल संकट से आज देश ही नहीं बल्कि पूरा विश्व जूझ रहा है। भारत में हर दिन बितने के साथ यह समस्या विकराल रूप धारण करती जा रही है। गिरता भूजल स्तर सरकार के लिए एक बड़ी समस्या बन गया है।

भोपालः जल संकट से आज देश ही नहीं बल्कि पूरा विश्व जूझ रहा है। भारत में हर दिन बितने के साथ यह समस्या विकराल रूप धारण करती जा रही है। गिरता भूजल स्तर सरकार के लिए एक बड़ी समस्या बन गया है। सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाएं अपनी-अपनी क्षमता योग्यता के अनुसार इस संबंध में जनता को जागरूक कर रही हैं। यह प्रयास ऊंट के मूंह में जीरे के समान है। लेकिन इस कड़ी में एक उम्मीद की किरण नजर आई है। मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले में जर्मन तकनीक ने इस समस्या का हल खोज निकाला है। इस नई तकनीक से हैंडपंप धरती की प्यास बुझाएंगे।

PunjabKesari

दरअसल अब तक हम अपनी जरूरत के अनुसार धरती की कोक में हैंडपंप लगा कर पानी निकालते आए हैं। अब उन्हीं सूख चुके हैंडपंप का इस्तेमाल कर भूजल को सुधारने में करेंगे। इसे इंजेक्शन पद्धति कहते हैं। इसका जीवंत उदाहरण हैं मध्य प्रदेश का श्योपुर जिला। जिले के आदिवासी विकास खंड कराहल के चार गांवों डाबली, अजनोई, झरेर और बनार में चमत्कारिक रूप से भूजल सूधारने में मदद मिली है। इन गांवों के 11 सूख चुके हैंडपंप और दो कुएं का इस्तेमाल बारिश और उपयोग के बाद निकले दूषित पानी को फिल्टर कर जमीन के अंदर पहुंचाने में किया जा रहा है।  परिणास्वरूप क्षेत्र के भूजल में भारी सूधार हुआ है और दस सालों से सूख चुके हैंडपंप और कुओं ने पानी देना शुरू कर दिया है।

PunjabKesari

क्यों चुना इन गांवों को

आदिवासी बहुल ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिए काम करने वाली गांधी सेवा आश्रम ने जर्मनी की संस्था जीआइजेड और हैदराबाद की एफप्रो के साथ मिलकर इस नई तकनीक का इस्तेमाल वर्ष 2016 में श्योपुर जिले के इन गांवों में किया था। क्योंकि यहां के अधिकांश हैंडपंप सूख चुके थे। इन गांवों में अंधाधुंध तरीके से बोर हुए थे। दो बीघा खेत में करीब आधा दर्जन तक बोर थे।  

कैसे करती है नई पद्धति काम

इसमें सूख चुके हैंडपंप के चारों ओर 10 फीट गहरा गड्ढा खोदा जाता है। हैंडपंप के पाइप में एक से डेढ़ इंच बड़े 1200 से 1500 छेद किए जाते हैं। इसी पाइप के जरिए पानी को जमीन में भेजा जाता है। पाइप के चारों ओर जालीदार फिल्टर भी लगाई जाती है। पानी जमीन में भेजने से पहले गड्ढे में फिल्टर प्लांट भी बनाया जाता है। इसमें बोल्डर, गिट्टी, रेत और कोयले जैसी चीजों की परत बनाई जाती हैं। इससे छनकर ही पानी जमीन में जाता है। यह रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम की बेहद कारगर तकनीक है। जर्मनी की संस्था ने श्योपुर से पहले इसका सफल प्रयोग गुजरात और राजस्थान के सूखे इलाकों में भी किया है।

कितना पानी लौटाता है एक हैंडपंप

एक सूखा हैंडपंप करीब 4 लाख लीटर पानी धरती में लौटा रहा है। इस रीचार्ज यूनिट को लगाने में 45 हजार रूपये का खर्च आता है। लेकिन इसका फायदा अनमोल है। एक रिपोर्ट के मुताबिक एक सामान्य हैंडपंप से साल में 3 लाख 60 हजार लीटर तक पानी निकाला जाता है।  

PunjabKesari

Related Story

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!