Edited By Mahima,Updated: 29 Mar, 2024 01:04 PM
केंद्रीय ट्रांसपोर्ट मंत्री नितिन गडकरी द्वारा बुधवार को एक घोषना की गई है। इस घोषना में उन्होंने FASTag के बारे में बात की है। दरअसल, FASTag को इस लिए लॉन्च किया गया था ताकि टोल प्लाजा पर कम से कम समय लगे।
नेशनल डेस्क: केंद्रीय ट्रांसपोर्ट मंत्री नितिन गडकरी द्वारा बुधवार को एक घोषना की गई है। इस घोषना में उन्होंने FASTag के बारे में बात की है। दरअसल, FASTag को इस लिए लॉन्च किया गया था ताकि टोल प्लाजा पर कम से कम समय लगे। लेकिन अब केंद्रीय मंत्री ने कहा कि जल्द ही वो इस व्यवस्था को हटाकर नई सर्विस को लेकर आ रहे हैं। ये नई व्यवस्था सैटेलाइट बेस्ड होगी। यानी सैटेलाइट से ही आपके पैसे कट जाएंगे। इसके साथ ही उन्होंने दावा किया ये सर्विस फास्टैग से भी ज्यादा तेज होगी। हालांकि, इसे कब तक लॉन्च किया जाएगा, इसकी जानकारी फिलहाल जारी नहीं दी गई है।
क्या है Satellite Based Toll System?
सरकार की माने तो वो इस नई टेक्नोलॉजी के जरिए फिजिकल टोल को हमेशा के लिए रिमूव करना चाहती है। इसका फायदा एक्सप्रेस-वे पर ट्रैवल कर रहे लोगों के होगा, इसकी मदद से वे बिना रुके एक शानदार एक्सपीरियंस को पा सकेंगे। इसके लिए सरकार GNSS बेस्ड टोलिंग सिस्टम का इस्तेमाल करेगी, जो मौजूदा इलेक्ट्रॉनिक टोल कलेक्शन सिस्टम को रिप्लेस करेगा। मौजूदा सिस्टम RFID टैग्स पर काम करता है, जो ऑटोमेटिक टोल कलेक्ट करता है। वहीं दूसरी तरफ GNSS बेस्ड टोलिंग सिस्टम में वर्चुअल टोल होंगे। यानी टोल मौजूद होंगे, लेकिन आपको नजर नहीं आएंगे।
इसके लिए वर्चुअल गैन्ट्रीज़ इंस्टॉल किए जाएंगे, जो GNSS इनेबल वीइकल से कनेक्ट होंगे और टोल टैक्स कट जाएगा। इसका मतलब है कि जैसे ही कोई कार इन वर्चुअल टोल से गुजरेगी, तो यूजर के अकाउंट से खुद ही पैसे कट जाएंगे। भारत के पास अपने नेविगेशन सिस्टम- GAGAN और NavIC हैं। इनकी मदद से वीइकल्स को ट्रैक करना ज्यादा आसान हो जाएगा। साथ ही इससे यूजर्स का डेटा भी सिक्योर रहेगा। हालांकि, इसके बाद भी कुछ चुनौतियां का सामना करना पढ़ेंगा। बता दें कि जर्मनी, रूस और कई दूसरे देशों में ये सर्विस पहले से उपलब्ध है।
क्या है इसके फायदा और नुकसान?
क्या है इसके फायदे? इस सिस्टम के आने से लोगों के लिए सफर आसान हो जाएगा। यानी अब आपको टोल के लिए रुकना नहीं पड़ेगा। हालांकि इससे पहले भी FASTag ने टोल पर लगने वाले वक्त को कम किया है, लेकिन इसमें अभी भी वक्त लगता है। साथ ही इस टेक्नोलॉजी के आने से इंफ्रास्ट्रक्चर कॉस्ट भी कम हो जाएगी जिससे यूजर्स का एक्सपीरियंस और भी बेहतर होगा।
वहीं नुकसान की बात करें, तो इस सिस्टम के आने के बाद प्राइवेसी एक बड़ा मुद्दा बन सकता है। कई यूजर्स को शायद ये नई टेक्नोलॉजी पसंद नहीं आएगी। इसके अलावा चूंकि ये सैटेलाइड बेस्ड सर्विस होगी, तो कुछ इलाकों में चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। लोगों को इसके बारे में जागरूक करना भी एक बड़ा मुद्दा होगा।