निमोनिया के कहर से अपने बच्चों को इस तरह बचाए

Edited By Updated: 22 Dec, 2015 04:42 PM

this way your children saved from the fury of pneumonia

Nimoniya In Hindi : सर्दियों का मौसम शुरु होने के साथ-साथ ही बीमारियो का आना-जाना शुरु हो जाता है। इस मौसम मे नवजात को भी कई तरह की परेशानियां होने लगती है। इसीलिए नवजात को सर्दियों में खास देखभाल की जरूरत होती है....

Nimoniya In Hindi : सर्दियों का मौसम शुरु होने के साथ-साथ ही बीमारियो का आना-जाना शुरु हो जाता है। इस मौसम मे नवजात को भी कई तरह की परेशानियां होने लगती है। इसीलिए नवजात को सर्दियों में खास देखभाल की जरूरत होती है। 

निमोनिया क्या है  

निमोनिया एक ऐसी बीमारी है जो नवजात को खासा परेशान करती हैं। नवजात में निमोनिया ना हो इसके लिए आपको नवजात का खास ध्यान रखना होता है। निमोनिया बैक्टीरिया, वायरस और फंगस से फेफड़ों में होने वाला एक किस्म का संक्रमण होता है, जो फेफड़ों में एक तरल पदार्थ जमा करके खून और ऑक्सीजन के बहाव में रुकावट पैदा कर देता है।

अापके लिए यह जानना बहुत जरूरी है कि बच्चों को निमोनिया से कैसे बचाए। आइए जानें बच्चो में निमोनिया के बारे में कुछ बातें।

बच्चों में निमोनिया के लक्षण और उपाय (Nimoniya Ke Lakshan Or Upay) 

-अगर बच्चों को सर्दियों में ठीक तरह से कपड़े ना पहनाए जाएं या फिर अधिक देर ठंडी हवा में रखा जाए तो नवजात को निमोनिया हो सकता है। कई बार नवजात में पोषण की कमी के कारण भी निमोनिया के बैक्टीरिया बच्चे‍ को अपनी चपेट में ले लेते हैं।

-निमोनिया के लक्षण बच्चों की उम्र के अनुसार अलग-अलग होते हैं। जैसे कि बुखार, ठंड लगना, खांसी आना, नाक में परेशानी होना, शिशु की सांस तेजी से चलना, सांस छोड़ते समय घबघराहट की आवाज आना, होठ व त्वचा पर नीलापन दिखाई देना, उल्टी करना, सीने में दर्द होना, पेट में दर्द होना, भूख न लगना (बड़े बच्चों में) तथा दूध न पीना।

-छोटे बच्चों में निमोनिया के लक्षणों को आसानी से पहचाना जा सकता है। जब नवजात शिशु की तेजी से सांसे चलने लगे, पतले दस्त, हो जाएं, बच्चे को बुखार आ जाए या फिर बच्चे  की नाक बंद हो जाए तो इसका अर्थ है आपका शिशु निमोनिया की चपेट में आ गया है।

-सर्दियों के मौसम में‍ बच्चों को पूरी तरह से ढक कर रखना चाहिए ताकि ठंडी हवा ना लग सकें। बच्चो में निमोनिया होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए न कि इसका उपचार घर में करना चाहिए। बच्चे को पैदा होने के शुरूआती छह महीने तक मां का ही दूध दें। नवजात को सभी जरूरी टीके लगावाएं।

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