नरक में भी मिलता है ऐसा जीवन

Edited By ,Updated: 04 Oct, 2015 01:15 PM

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हाय! मेरी प्राण प्रिया मुझे ही अपना इष्ट मानती थी। आज वह मुझे सूने घर में छोड़कर हमारे निश्चल बच्चों के साथ काल के मुंह में जा रही है।

हाय! मेरी प्राण प्रिया मुझे ही अपना इष्ट मानती थी। आज वह मुझे सूने घर में छोड़कर हमारे निश्चल बच्चों के साथ काल के मुंह में जा रही है। मेरा अब संसार में क्या काम है? मेरा यह विधुर जीवन,बिना गृहणी का जीवन, जलन का व व्यवस्था का ही जीवन है। अब मैं सूने घर में किसलिए जाऊं। इस प्रकार विलाप करता हुआ वे कबूतर भी स्वयं जाल में कूद पडा। कुछ समय पश्चात क्रूर बहेलिया रुपी काल आया और बड़ी प्रसन्नता के साथ उन्हें ले गया।

संसार में भी देखा जाता है कि किसी की पत्नी अनुकूल न होने से घर में क्लेश रहता है, तो किसी के बच्चे कहना नहीं मानते। माना किसी को अपने पिछले अच्छे कर्मों के 
अनुसार पत्नी व बच्चे अनुकूल मिल भी गए हों और उसने सुंदर दुर्लभ मनुष्य जीवन केवल इन्हीं के माया-मोह में कबूतर-कबूतरी की तरह सुख-दु:ख व विरह के साथ बिता भी दिया तो कौन सा महान काम कर लिया?
 
हमारे सभी शास्त्रों नें इस दुर्लभ मनुष्य जीवन को भगवद प्राप्ति करने के लिए साधन करने का एकमात्र स्वर्ण अवसर बताया है। जबकि खाना-पीना, सोना, बच्चे पैदा करना, उनका पालन-पोषण करना तो सभी योनियों में मिलता ही है, यहां तक कि नरक में मिलता है। तो केवल इन्हीं के लिए आत्महत्या करने के समान है। 

तुलसी दास जी भी कहते हैं-
बड़े भाग मानुष तन पावा। सुर दुर्लभ सद ग्रन्थहि गावा।।
साधन धाम मोक्ष कर द्वारा। पाइ न जेहि परलोक संवारा।।
ते परत्र दु:ख पावहि सिर धुनि-धुनि पछिताई।
कालाहि कर्महि ईक्षरहिं मिथ्या दोष लगाई।।
जो न तरे भव सागर नर समाज अस पायी।
सो कृत निन्दक मन्दमति आतम हन गति जायी।।
 
श्री बी.एस.निष्किंचन जी महाराज

 

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