Chaitra Navratri 2021: आरंभ हुए भक्ति और शक्ति के प्रतीक ‘नवरात्र’

Edited By Jyoti,Updated: 14 Apr, 2021 01:02 PM

chaitra navratri 2021

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से जहां नववर्ष का प्रारंभ होता है वहीं इसी दिन से भक्ति एवं शक्ति के प्रतीक नवरात्र पर्व की शुरूआत होती है। मां भगवती जगत जननी मां जगदम्बा

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चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से जहां नववर्ष का प्रारंभ होता है वहीं इसी दिन से भक्ति एवं शक्ति के प्रतीक नवरात्र पर्व की शुरूआत होती है। मां भगवती जगत जननी मां जगदम्बा, जिन्हें आदि शक्ति भी कहते हैं, की कृपा प्राप्त करने के लिए भक्तजन सात्विक एवं पवित्र भाव से नौ दिन शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी तथा सिद्धिदात्री के रूप में आदि शक्ति के नौ स्वरूपों की पूजा करते हैं जिन्हें नवदुर्गा कहा जाता है।

सम्पूर्ण जगत् उन्हीं का रूप है तथा उन्होंने समस्त विश्व को व्याप्त कर रखा है, तथापि उनका प्राकट्य अनेक प्रकार से होता है। यद्यपि वे नित्य और अजन्मा हैं, तथापि वे आदि शक्ति मां भगवती देवताओं का कार्य सिद्ध करने के लिए प्रकट होती हैं।

मेधा ऋषि ने दुर्गा सप्तशती के 13 अध्यायों में भगवती जगतजननी मां दुर्गा जी के पावन चरित्र का वर्णन किया है, जिनका नवरात्र के दिनों में पाठ कर भक्तजन मां जगदम्बा की विशेष कृपा प्राप्त करते हैं।

चतुर्दश विद्याएं, षटशास्त्र और चारों वेद मां जगदम्बा के प्रकाश से प्रकाशित हैं। प्रत्येक मनुष्य को भक्तिपूर्वक दुर्गा सप्तशती में वर्णित मां भगवती दुर्गा जी के कल्याणकारक महात्म्य को सदा पढ़ना और सुनना चाहिए।

यह सब पापों को दूर कर आरोग्य प्रदान करता है। मां भगवती के प्रादुर्भाव का कीर्तन दुष्ट प्राणियों से रक्षा करने तथा युद्ध में विजय प्राप्त करवाने वाला है। इसके सुनने से मनुष्य को शत्रुओं का भय नहीं रहता।

देवी ने जब पराक्रमी दुरात्मा महिषासुर को मार गिराया और असुरों की सेना को मार दिया तब इन्द्र आदि समस्त देवता अपने सिर तथा शरीर को झुकाकर भगवती की स्तुति करने लगे।

यस्या: प्रभावमतुलं भगवाननन्तो
ब्रह्मा हरश्च न हि वक्तुमलं बलं च।
सा चंडिकाखिलजगत्परिपालनाय
नाशाय चाशुभभयस्य मङ्क्षत करोतु॥

जिस अतुल प्रभाव और बल का वर्णन भगवान विष्णु, शंकर और ब्रह्मा जी भी नहीं कर सके, वही चंडिका देवी इस संपूर्ण जगत का पालन करें और अशुभ भय का नाश करें। लक्ष्मी रूप से विष्णु भगवान के हृदय में निवास करने वाली और भगवान महादेव द्वारा सम्मानित गौरी देवी तुम ही हो। हे नारायणी! तुम ब्रह्माणी का रूप धारण करके हंसों से जुते हुए विमान पर बैठती हो। हे मां दुर्गे! तुम स्मरण करने पर सम्पूर्ण जीवों के भय नष्ट कर देती हो और स्थिर चित्त वालों द्वारा चिन्तन करने पर उन्हें अत्यंत मंगल देती हो।

मां भगवती दुर्गा ने देवताओं की स्तुति से प्रसन्न होकर मनुष्य जाति को यह वर दिया कि मधुकैटभ के नाश, महिषासुर के वध और शुंभ तथा निशुंभ के वध की जो मनुष्य कथा कहेंगे और जो मेरे महात्म्य को एकाग्रचित्त हो भक्तिपूर्वक सुनेंगे, उनको कभी कोई पाप न रहेगा।

पाप से उत्पन्न हुई विपत्ति भी उनको नहीं सताएगी। जिस स्थान पर मेरा यह दुर्गा सप्तशती रूपी महात्म्य विधिपूर्वक पढ़ा जाता है, उस स्थान का मैं कभी भी त्याग नहीं करती और वहां सदा मेरा निवास रहता है। किसी भी प्रकार की पीड़ा से पीड़ित, घोर बाधाओं से दुखी हुआ मनुष्य, मेरे इस चरित्र को स्मरण करने से संकट से मुक्त हो जाता है।

देवी बोलीं, ‘‘हे देवताओ, तुमने मेरी जो स्तुति की है अथवा ब्रह्मा जी ने मेरी जो स्तुति की है, वह मनुष्यों को कल्याणमयी बुद्धि प्रदान करने वाली है।’’

साक्षात आदि शक्ति महामाया ही शिवा स्वरूपी, शिव अर्धांगिनी पार्वती एवं सती हैं। परन्तु उनका भयंकर रूप केवल दुष्टों हेतु ही भय उत्पन्न करने वाला तथा विनाशकारी है।

श्री शिव महापुराण में देवता सिंहवाहिनी श्री दुर्गा जी की स्तुति में कहते हैं :
जय  दुर्गे महेशानि ज्यात्मीयजनप्रिये।
त्रैलोक्यत्राणकारिण्यै शिवायै ते नमो नम:॥
नमो वेदान्तवेद्यायै नमस्ते परमात्मने।
अनन्तकोटिब्रह्मांडनायिकायै नमो नम:॥

महेश्वरी दुर्गे! आपकी जय हो। अपने भक्तजनों का प्रिय करने वाली देवी! आपकी जय हो। आप तीनों लोकों की रक्षा करने वाली शिवा हैं। आप ही मोक्ष प्रदान करने वाली परा अम्बा हैं। आप ही समस्त संसार की उत्पत्ति स्थिति तथा संहार करने वाली हैं।

आपको बारम्बार नमस्कार है। वेदांत के द्वारा आपके स्वरूप का ही बोध होता है। आप परमात्मा हैं। अनंत कोटि ब्रह्मांडों का संचालन करने वाली आप जगदम्बा को बारम्बार नमस्कार है।  

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