भाजपा के ‘राजनीतिक षड्यंत्र’ का शिकार बने नीतीश

Edited By Punjab Kesari,Updated: 23 Aug, 2017 10:31 PM

nitish became victim of bjps political conspiracy

अब कोई अस्पष्टता नहीं रही। यह एक संयोग ही था कि अत्यंत गोपनीय समाचार बाहर आ गया कि नीतीश ने...

अब कोई अस्पष्टता नहीं रही। यह एक संयोग ही था कि अत्यंत गोपनीय समाचार बाहर आ गया कि नीतीश ने महागठबंधन तोड़कर भाजपा के खेमे में जाने का फैसला कर लिया है। ये केवल उपमुख्यमंत्री तेजस्वी के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप ही नहीं थे जिसने नीतीश को धर्मनिरपेक्ष ताकतों का महागठबंधन कुचलने को बाध्य किया, बल्कि यह भाजपा का राजनीतिक षड्यंत्र था जिसने उन्हें लालू यादव का साथ छोडऩे को मजबूर कर दिया। 

गत कुछ महीनों से राजनीतिक गलियारों तथा राजनीतिक तौर पर सजग बिहार के लोगों में यह चर्चा चल रही थी कि नीतीश कुमार अपने किसी समय बड़े भाई कहलाते लालू यादव तथा महागठबंधन के साथ संबंध तोडऩे की योजना बना रहे हैं। जहां नीतीश ने सरकार तथा महागठबंधन को छोडऩे के निर्णय के लिए लालू यादव और उनकी कार्यप्रणाली को असल विलेन बताया, वहीं बिहार के लोग अब उनके रास्ता अलग करने के पीछे असल कारण को जान गए हैं। एक चतुर राजनीतिज्ञ नीतीश कुमार धौंस की राजनीति के शिकार बन गए और महागठबंधन को छोडऩा वह कीमत थी जो अंतत: उन्हें चुकानी पड़ी।

यद्यपि राजनीति के साथ-साथ कानूनी गलियारों में यह फुसफुसाहट थी कि नीतीश कुमार का नाम एक हत्या के मामले में एक महत्वपूर्ण आरोपी के तौर पर लिया जा रहा है जो कुछ वर्ष पूर्व उनके गृह क्षेत्र में हुई थी। इसका खुलासा नीतीश कुमार के इस्तीफा देने के कुछ समय पहले ही हुआ। इस मामले में उन पर आई.पी.सी. की धारा 302 लगाई गई। हालांकि कुछ समय से यह मामला अपना सिर उठाता रहा। इस स्थिति से डरे हुए नीतीश के पास केन्द्रीय सरकार की उदारतापूर्ण सहायता के अलावा कोई अन्य रास्ता नहीं था। 

यद्यपि सी.बी.आई. ने तेजस्वी के खिलाफ एक एफ.आई.आर. दर्ज की है, यह निश्चित तौर पर इतना गम्भीर घटनाक्रम नहीं था कि जद(यू) नेता उनसे उपमुख्यमंत्री के तौर पर इस्तीफे की मांग करते। मगर बिहार में एक ऐसा प्रभाव बनाया गया कि यह सरकार की सुगम कार्यप्रणाली के रास्ते में एक प्रमुख रुकावट थी। तेजस्वी द्वारा अपने दस्तावेज सामने लाने के बाद ही स्थिति में सुधार होगा और यह सामान्य बनेगी। इस पूरे विवाद में जो हैरानीजनक बात थी वह यह कि नीतीश ने कभी भी तेजस्वी का इस्तीफा नहीं मांगा। इसकी बजाय जद(यू) के अन्य नेताओं तथा प्रवक्ताओं ने माहौल को गर्म कर दिया। 

हालांकि यदि नीतीश तेजस्वी तथा लालू को विलेन्स के रंग में नहीं रंग पाए तो वह अपने अभियान में सफल नहीं होंगे। जिस तत्परता से नीतीश ने कार्रवाई की उससे यह बिल्कुल स्पष्ट हो गया कि वह भाजपा नेतृत्व द्वारा लिखी स्क्रिप्ट के अनुसार काम कर रहे हैं। वह केवल रामनाथ कोविंद द्वारा राष्ट्रपति पद सम्भालने की प्रतीक्षा में थे। इस बात के कयास लगाए जा रहे थे कि उनके पूर्ववर्ती प्रणव मुखर्जी सम्भवत: ऐसा नहीं होने देते। दरअसल भाजपा अपनी कार्ययोजना के साथ तैयार थी। उसने मौका झपटने में एक भी पल नहीं गंवाया। जैसे ही नीतीश पटना स्थित राजभवन में अपना इस्तीफा सौंप कर बाहर निकले, भाजपा संसदीय बोर्ड ने बैठक की और नीतीश के अन्तर्गत नई सरकार में शामिल होने का निर्णय ले लिया। 

वरिष्ठ भाजपा नेता जे.पी. नड्डा ने बैठक के बाद बाहर आकर बताया कि पार्टी बिहार में मध्यावधि चुनावों के पक्ष में नहीं है। नीतीश कुमार के इस्तीफे के कुछ ही पलों बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उनके समर्थन में आ गए और ट्वीट करके कहा कि ‘‘नीतीश कुमार जी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में शामिल होने के लिए बधाई। 125 करोड़ लोग ईमानदारी का स्वागत तथा समर्थन करते हैं...समय की जरूरत भ्रष्टाचार के खिलाफ मिलकर लडऩे की है, राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठ कर देश के, विशेषकर बिहार के उज्ज्वल भविष्य के लिए।’’ यह सच है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तथा भाजपा ने काफी पहले षड्यंत्र रच लिया था। उन्हें विश्वास था कि बिहार में महागठबंधन के सत्ता में होने के कारण 2019 के लोकसभा चुनाव उनके लिए वास्तव में कठिन होंगे। लालू हिन्दी भाषी क्षेत्र में एक केन्द्रबिन्दू बन कर उभरेंगे। यहां तक कि इसका बुरा प्रभाव उत्तर प्रदेश में भी पड़ेगा। 

यदि एक बार उनकी योजना सिरे चढ़ गई तो ममता बनर्जी जैसी व्यक्ति भी कमजोर हो जाएंगी। वे महागठबंधन को तोडऩे की योजना पर काम कर रहे थे। ऐसा नहीं था कि लालू संघ तथा भाजपा के इरादों से वाकिफ नहीं थे। यही कारण है कि उन्होंने अपने बेटे तेजस्वी को आगे करते हुए उन्हें अपने उत्तराधिकारी के रूप में पेश किया। नीतीश तथा भाजपा द्वारा तेजस्वी पर अपने हमले बढ़ाने को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। नीतीश के पास जनसमर्थन नहीं है। न तो गैर-यादव ओ.बी.सीज तथा गरीब वर्ग उनके साथ है और न ही दलित उनमें विश्वास करते हैं। यह एक अन्य कारण है कि वह संघ तथा भाजपा के प्रिय हैं। वे जानते हैं कि नीतीश उनके नेतृत्व के लिए सम्भावित चुनौती नहीं हो सकते।     

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