न्याय प्रणाली की गरिमा की रक्षा करना ‘बार और बैंच’ का कर्तव्य

Edited By Punjab Kesari,Updated: 16 Nov, 2017 12:58 AM

protection of the dignity of justice bar and band

भारतके मुख्य न्यायाधीश सहित उच्च न्यायपालिका से संबंधित ताजा विवाद ने देश के इस सबसे सम्मानित संस्थान को बहुत क्षति पहुंचाई है। इस विवाद से न्यायपालिका (बैंच) और बार (वकीलों के संगठन) के बीच विरोध खुले में आ गया है। लोकतंत्र के 3 स्तंभों- विधायिका,...

भारत के मुख्य न्यायाधीश सहित उच्च न्यायपालिका से संबंधित ताजा विवाद ने देश के इस सबसे सम्मानित संस्थान को बहुत क्षति पहुंचाई है। इस विवाद से न्यायपालिका (बैंच) और बार (वकीलों के संगठन) के बीच विरोध खुले में आ गया है। लोकतंत्र के 3 स्तंभों- विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका में से न्यायपालिका ही एक ऐसा संस्थान है जो सचमुच में इंसाफ की आखिरी आशा की गारंटी देता है।

न्यायपालिका ही संविधान की रक्षक और दूसरे दोनों स्तंभों पर न केवल अंकुश लगाए रखती है बल्कि उनके बीच संतुलन भी स्थापित करती है। न्यायपालिका की ऐसी उच्च हैैसियत के कारण ही देश में न्यायालय की अवमानना का कानून मौजूद है। यह कानून इस बात की गारंटी बनता है कि न्यायपालिका उच्च सिंहासन पर आसीन रहे और उन्हें दंडित कर सके जो इसे नीचा दिखाने का प्रयास करते हैं। इसका अभिप्राय: यह है कि कोई भी व्यक्ति न्यायालय के फैसले की आलोचना कर सकता है लेकिन किसी न्यायमूर्ति की नहीं।

लेकिन सुप्रीमकोर्ट में जो सार्वजनिक ड्रामा चल रहा है वह इस सर्वोच्च अदालत की गरिमा को चार चांद नहीं लगा रहा। सबसे बुरी बात तो यह है कि इस नाटक में वरिष्ठतम जज और वरिष्ठतम वकील शामिल हैं। यह सब कुछ लोगों की आंखों के सामने हो रहा है और निश्चय ही पहली बार नहीं हो रहा। मुद्दा यूं है कि सुप्रीमकोर्ट के दो जजों पर आधारित पीठ ने एक आदेश जारी किया था कि एक खास याचिका की सुनवाई 5 सदस्यीय पीठ द्वारा की जाएगी। यह उल्लेख विशेष रूप में किया गया था कि यह पीठ किन जजों पर आधारित होगी। बेशक मैं इस मामले की बारीकियों की ओर कुछ बाद में लौटूंगा, फिलहाल मुद्दा यह है कि क्या 5 जजों पर आधारित पीठ आगे किसी अन्य पीठ का गठन कर सकती है? 

जहां तक किसी भी पीठ में जजों की नियुक्ति का सवाल है इस मामले में यह एक निर्विवादित बात है कि भारत के मुख्य न्यायाधीश ही सर्वेसर्वा हैं। टकराव का मुद्दा यह है कि 2 जजों पर आधारित पीठ को किसी अन्य पीठ का गठन करने का अधिकार नहीं था क्योंकि यह केवल और केवल मुख्य न्यायाधीश के ही अधिकार क्षेत्र की बात है। आप इस उदाहरण से भली-भांति समझ जाएंगे कि यदि केन्द्रीय गृह मंत्री ही मंत्रिमंडल के अन्य सदस्यों को मंत्रालयों का आबंटन कर दें तो क्या होगा?

स्पष्ट तौर पर यह काम प्रधानमंत्री के विशेषाधिकार का मामला है। लेकिन ऐसा हुआ होता तो प्रधानमंत्री ने ऐसा कदम उठाने वाले मंत्री को सीधे-सीधे बाहर का रास्ता दिखा दिया होता जबकि न्यायाधीश ऐसा नहीं कर सकते। किसी न्यायमूर्ति को पदच्युत करना एक लंबी प्रक्रिया है जिसमें संसद के समक्ष महाभियोग लाना पड़ता है। हम सभी जानते हैं कि महाभियोग की प्रक्रिया कितनी पेचीदा होती है। शायद यही कारण है कि अभी तक किसी भी न्यायमूर्ति पर महाभियोग नहीं चलाया गया। 

अब इस मामले की विशिष्टताओं की ओर लौटते हैं। सर्वोच्च अदालत में एक याचिका दायर करके मांग की गई थी कि सी.बी.आई. द्वारा 5 अन्य लोगों के साथ गिरफ्तार किए गए ओडि़सा हाईकोर्ट के पूर्व न्यायमूर्ति आई.एम. कुदुसी के मामले में हाईकोर्ट द्वारा विशेष जांच दल (एस.आई.टी.) गठित किया जाए। सी.बी.आई. के अनुसार यह मामला कथित भ्रष्टाचार का था जिसमें लखनऊ का प्रसाद इंस्टीच्यूट ऑफ मैडीकल साइंसिस भी संलिप्त था और सरकार की काली सूची में डाले जाने के बाद यह संस्थान अदालतों से राहत हासिल करने का प्रयास कर रहा था। 

सी.बी.आई. द्वारा दायर एफ.आई.आर. के अनुसार कुदुसी व अन्य लोग सौदेबाजी में शामिल थे और अदालतों से अपने हक में आदेश सुनिश्चित करवा रहे थे। यह मैडीकल कालेज सरकार द्वारा नया दाखिला करने से 2 वर्षों के लिए प्रतिबंधित 46 मैडीकल कालेजों में से एक है। इसीलिए इसके प्रोमोटरों ने कुदुसी से सम्पर्क साधा था जिन्होंने सुप्रीमकोर्ट सहित प्रभावशाली लोगों को रिश्वतें देकर अदालतों से राहत हासिल करने का वायदा किया था। सुनवाई दौरान याचिकाकत्र्ताओं ने मांग की कि भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाले 3 जजों पर आधारित पीठ ही अतीत में प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट (जोकि लखनऊ मैडीकल कालेज का संचालन करता है) के मामले से निपटती आई है इसलिए न्याय का तकाजा है कि वह इस मामले में कोई प्रशासकीय या न्यायिक फैसला लेने से दूर रहे। 

न्यायमूर्ति चेलामेश्वर और न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर पर आधारित 2 जजों की पीठ ने यह निर्देश दिया था कि इस मामले की सुनवाई अदालत के 5 वरिष्ठ जजों पर आधारित संविधान पीठ द्वारा की जाए। इस पीठ ने स्पष्ट तौर पर खुद की संलिप्तता वाले मामले की खुद ही संबंधित जज द्वारा सुनवाई करने को अनुचित मानते हुए मुख्य न्यायाधीश के विशेषाधिकार को गच्चा देने का प्रयास किया। वैसे इस मामले में भारत के मुख्य न्यायाधीश एफ.आई.आर. में नामित नहीं थे और न ही उनकी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संलिप्तता का ही कोई उल्लेख था। 

पूरे प्रकरण ने देश के सर्वोच्च न्यायिक संस्थान को कमजोर किया है क्योंकि इससे कार्यपालिका द्वारा इस तरह हल्ला बोलने का रास्ता खुल गया है। किसी भी पंगेबाज जज को यदि सरकार किसी मामले में केवल सी.बी.आई. के माध्यम से नामित करके ही उसकी प्रतिष्ठा पर सवाल उठा देती है और उसे मजबूर करती है कि वह मामले से या इसके आरोपियों से संबंधित किसी मामले को हाथ में नहीं लेगा, तो सोचिए इसका क्या नतीजा होगा? सौभाग्य की बात है कि मुख्य न्यायाधीश द्वारा गठित 3 जजों के बैंच ने यह कहकर इस विवाद की समाप्ति करने का रास्ता अपनाया कि सी.बी.आई. की एफ.आई.आर. में सुप्रीमकोर्ट के किसी भी वर्तमान न्यायमूर्ति को नामित नहीं किया गया और अकेले मुख्य न्यायाधीश को ही खुद के विरुद्ध इस मामले में कोई आरोप होने की स्थिति में किसी पीठ की नियुक्ति करने या इसे मामला सौंपने का अधिकार है। 

अदालत ने कहा, ‘‘बेशक यह सत्य है कि कोई भी कानून से ऊपर नहीं, यानी न्यायपालिका के उच्च स्तरों पर तैनात कोई व्यक्ति भी कानून से ऊपर नहीं, तो भी पूरी न्याय व्यवस्था की प्रतिष्ठा की रक्षा करना बार और बैंच दोनों का ही कत्र्तव्य है।’’ उम्मीद की जानी चाहिए कि यह विवाद अब थम जाएगा लेकिन इसने ऐसे वक्त में न्यायपालिका की छवि को दागदार किया है जब जजों की नियुक्ति करने के तरीके तथा उनकी शक्तियों पर अंकुश लगाने के प्रयासों के लटकते आ रहे मामलों के मद्देनजर यह बहुत ही संवेदनशील स्थिति में से गुजर रही थी। यह लोकतंत्र के हित में ही है कि न्यायपालिका अपनी स्वयत्तता को बनाए रखे। फिर भी इसे अपनी ईमानदारी और गरिमा को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए आत्मावलोकन करने की भी जरूरत है।-विपिन पब्बी

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!