नागालैंड में महिलाओं के अधिकारों पर डाका

Edited By ,Updated: 17 Feb, 2017 12:19 AM

robbed of the rights of women in nagaland

अभी हाल ही में नागालैंड में एक हिंसक घटनाक्रम के बाद महिलाओं को उनके

अभी हाल ही में नागालैंड में एक हिंसक घटनाक्रम के बाद महिलाओं को उनके संवैधानिक अधिकार से वंचित कर दिया गया। यह हक उन्हें दशकों के संघर्ष और सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद प्राप्त हुआ था। आश्चर्य की बात यह रही कि महिला अधिकारों के हनन की इतनी बड़ी घटना को लेकर न समाज में कोई प्रतिक्रिया दिखी और न ही राजनीतिक दलों ने इसका संज्ञान लिया। जो महिलाएं किसी कालेज में छात्राओं के जींस पहनने पर रोक के निर्णय का विरोध करने सड़कों पर उतर जाती थीं वे भी नागालैंड में महिला अधिकारों की हत्या का तमाशा चुपचाप देखती रहीं। जो स्वयंसेवी संगठन और समाजसेवी तमिलनाडु के पारम्परिक खेल जल्लीकट्टू का गला फाड़कर विरोध करते हैं, उनकी नागालैंड के मामले में आवाज तक नहीं निकली। आखिर कौन जिम्मेदार है मानवाधिकारों की हत्या और उस पर इस चुप्पी का। 

देश के शहरी स्थानीय निकायों में समान ढांचा प्रदान करने हेतु वर्ष 1992 में संसद में नगरपालिका से संबंधित संवैधानिक अनुच्छेद में 74वां संशोधन लाया गया, जो 1 जून, 1993 को लागू कर दिया गया। इसका एक प्रावधान महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करने से संबंधित है। संसद में पारित होने के 13 वर्ष बाद 2006 में नागालैंड विधानसभा में सर्वप्रथम नगरपालिका विधेयक (पहला संशोधन) लाया गया, जिसमें 33 प्रतिशत महिला आरक्षण का प्रावधान था। उस समय भी जनजातीय संगठनों ने संविधान के अनुच्छेद 371(ए) के अंतर्गत नागालैंड को मिले अधिकारों के हनन का हवाला देकर इसे प्रदेश में लागू नहीं होने दिया। 

जब 18 वर्ष बाद भी इस मामले में कुछ नहीं हुआ तो नागालैंड में महिला अधिकारों की लड़ाई लड़ रही ‘नागालैंड मदर्स एसोसिएशन’ ने आरक्षण को लेकर 26 जून, 2011 में गुवाहाटी उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। तब अदालत की एकल पीठ ने सरकार को निर्देशित किया कि वह 20 जनवरी, 2012 से पहले प्रदेश नगरपालिका विधेयक के तहत निकाय चुनाव सम्पन्न कराए। किन्तु तत्कालीन प्रदेश सरकार ने उक्त निर्णय को चुनौती दी और उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने एकल पीठ के फैसले पर रोक लगा दी। 

22 सितंबर 2012 में ‘नागा होहो’ सहित सभी प्रमुख जनजातीय संगठनों के दबाव में विधानसभा ने महिला आरक्षण विरोधी प्रस्ताव पारित कर दिया, जिसमें संविधान के अनुच्छेद 371 (ए) की रक्षा की दुहाई दी गई। तब नागालैंड मदर्स एसोसिएशन ने इसके खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया, जहां अप्रैल 2016 में उसके पक्ष में फैसला आया। 

नागालैंड की वर्तमान जेलियांग सरकार, जिसमें भाजपा भी शामिल है, ने 24 नवंबर 2016 को विधानसभा में संविधान-सम्मत नागालैंड नगरपालिका विधेयक (तीसरा संशोधन) पारित किया और 2012 के पुराने महिला आरक्षण विरोधी प्रस्ताव को रद्द कर दिया। जैसे ही प्रदेश सरकार ने 33 प्रतिशत महिला आरक्षण के साथ शहरी निकाय चुनाव 1 फरवरी 2017 को कराने की घोषणा की, एकाएक ‘नागा होहो’ सहित सभी प्रमुख जनजातीय संगठनों ने इसका उग्र विरोध शुरू कर दिया। इन संगठनों के ङ्क्षहसक प्रदर्शन, तोड़-फोड़ और सरकारी कार्यालयों में आगजनी आदि से निपटने के लिए हुई पुलिस की गोलीबारी में 2 व्यक्तियों की मौत हो गई। तत्पश्चात राज्यपाल पी.बी. आचार्य ने गत 9 फरवरी को शहरी निकाय चुनाव को रद्द कर दिया। 

दिसंबर 1963 को नागालैंड भारत के 16वें राज्य के रूप में स्थापित हुआ। 5 दशक के कालखंड में प्रादेशिक राजनीति में महिलाओं की स्थिति कितनी नगण्य है, उसका अनुमान यहां की 60 सदस्यीय विधानसभा से लग जाता है, जहां आज तक एक भी महिला विधायक निर्वाचित होकर नहीं पहुंची है। रानो एम. शाइयिजा एकमात्र अपवाद हैं, जिन्हें वर्ष 1977 में लोकसभा जाने का अवसर मिला था। 

नागालैंड की स्थिति क्या है? पूर्वोत्तर भारत में नागालैंड ईसाई बहुल प्रांत है। यहां गिरजाघर महत्वपूर्ण संस्थान के रूप में स्थापित है और सार्वजनिक विमर्शमें उसकी भूमिका किसी से छिपी नहीं है। यह किसी संयोग से कम नहीं कि नागालैंड में ईसाई जनसंख्या में वृद्धि और भारत के खिलाफ  विद्रोह की शुरूआत 1940-50 के दशक में एक साथ हुई। सन् 1826 में असम पर कब्जा करने के बाद अंग्रेजों ने नागा हिल्स पर अपना आधिपत्य स्थापित किया और इस क्षेत्र की सांस्कृतिक एकता को खंडित करने के लिए गिरजाघरों का उपयोग किया। भय और प्रलोभन के माध्यम से नागाओं के मतांतरण के लिए अमरीकी-यूरोपीय ईसाई मिशनरियों व गिरजाघरों को खुली छूट दी। 

फरवरी 1928 में साइमन कमीशन के गठन के कुछ वर्ष बाद ही यहां अलगाववाद के बीज रोपित किए गए। नागा हिल्स के डिप्टी कमिश्नर चाल्र्स पासे ने वर्ष 1946 में नागा हिल्स जिला परिषद को भंग कर नागा राष्ट्रीय परिषद (एन.सी.सी.) का गठन किया, जिसकी कमान कुख्यात अनगामी जापु फिजो को दे दी गई। फिजो ने पाकिस्तान के जन्म के समय (14 अगस्त,1947) नागालैंड को स्वतंत्र देश घोषित कर दिया और मार्च 1952 में नागा संघीय सरकार व संघीय सेना का गठन कर लिया। हालांकि यह कुत्सित योजना विफल हो गई, किन्तु यहां अलगाववाद की जड़ें निरन्तर गहरी होती चली गईं। 

1941 में जहां नागालैंड की कुल जनसंख्या में ईसाइयों की आबादी केवल 9 अर्थात लगभग शून्य प्रतिशत थी, वह स्वतंत्रता के बाद वर्ष 1951 में बढ़कर एकाएक 46.05 प्रतिशत और 2011 में 88 प्रतिशत हो गई। नवीनतम जनगणना के अनुसार नागालैंड की कुल आबादी 19.8 लाख में 17.1 लाख अनुसूचित जनजाति से संबंधित हैं, जिसमें 16.8 लाख लोग अर्थात् 98.2 प्रतिशत ईसाई मतावलंबी हैं जबकि शेष 2.67 लाख गैर-जनजातीय लोगों में भी 22.1 प्रतिशत ईसाई अनुयायी हैं। 

महिलाओं के प्रति उदासीनता नागालैंड जैसे छोटे राज्य तक सीमित नहीं है। विश्व के सबसे पुराने लोकतंत्र और ईसाई बहुल अमरीका में लंबे संघर्ष के बाद महिलाओं को संविधान लिखे जाने (1787) के 133 वर्ष बाद 1920 में वोट देने का अधिकार प्राप्त हुआ। ब्रिटेन का संविधान 16वीं शताब्दी पूर्व से सक्रिय है किन्तु वहां भी महिलाओं को वोट देने का अधिकार वर्ष 1928 में प्राप्त हुआ। फ्रांस का संविधान 1791 में लिखा गया लेकिन महिलाओं को वोट का अधिकार 153 वर्ष बाद 1944 में मिला। स्विट्जरलैंड में भी सन् 1874 में संविधान बनने के बाद महिलाओं को वर्ष 1971 में वोट देने का अधिकार प्राप्त हुआ। 

क्या यह सत्य नहीं कि नागालैंड में महिला आरक्षणका विरोध और अमरीका, ब्रिटेन जैसे सम्पन्न देशों मेंमहिलाओं को वोट का अधिकार देने में कई वर्षों का विलंब ईसाई मत, उसके दर्शन और संबंधित वांग्मय से प्रेरित है? आज भी अधिकतर ईसाई बहुल क्षेत्रों की राजनीति और संस्कृति गिरजाघरों द्वारा प्रभावित रहती है। नागालैंड की हालिया घटना उसी की ताॢकक परिणति है। 

यह किसी विडम्बना से कम नहीं कि देश के एक राज्य में महिला आरक्षण का उग्र विरोध होता है। किन्तु उसके खिलाफ  कोई भी तथाकथित मानवाधिकार संगठन, स्वयंसेवी संस्था या सामाजिक कार्यकत्र्ता सड़क पर नहीं उतरता। क्या उनकी इस चुप्पी का कारण नागालैंड की ईसाई बहुल जनसांख्यिकी है? या गिरजाघरों के गुप्त एजैंडे को भारत में प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से आगे बढ़ाने का दायित्व।   

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!