भक्त के मन की इच्छा पूरी करने प्रकट हुए भगवान, आप भी करें दर्शन

Edited By ,Updated: 28 Jul, 2016 12:34 PM

radha vinod varindavan

श्रील लोकनाथ गोस्वामी जी, भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभुजी के साक्षात् शिष्य हैं। आप अक्सर व्रज-मण्डल का भ्रमण करते रहते थे व श्रीकृष्ण की लीला स्थलियों का दर्शन करते थे।

श्रील लोकनाथ गोस्वामी जी, भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभुजी के साक्षात् शिष्य हैं। आप अक्सर व्रज-मण्डल का भ्रमण करते रहते थे व श्रीकृष्ण की लीला स्थलियों का दर्शन करते थे। एक बार ऐसे ही आप व्रज-मण्डल का भ्रमण कर रहे थे। घूमते-घूमते आप व्रज-मण्डल के खदिर वन में आए। वहां छत्रवन के समीप उमराओ गांव है। वहां पर श्रीकिशोरी कुण्ड है। आपको वहां आकर बड़ा अच्छा लगा और आपको भगवान की लीलाओं का स्मरण हो आया। 

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कुछ दिन वहीं श्रीहरिनाम (हरे कृष्ण महामन्त्र) किया। वहां निर्जन स्थान पर भजन करते-करते अचानक आपके मन में इच्छा हुई की आप श्रीराधा-कृष्ण जी के विग्रहों (मूर्ति) की सेवा करें। जैसे ही इच्छा हुई, तत्क्षण, भगवान स्वयं वहां आए, आपको विग्रह (मूर्ति) दिए व कहा कि ये 'राधा-विनोद' हैं। इतना कह कर भगवान अदृश्य हो गये। 
 
आप विग्रहों को ऐसे अचानक आया देख कर हैरान रह गये। जब होश सम्भाला तो चिन्ता करने लगे कि इन विग्रहों को कौन दे गया है? तब श्रीराधा-विनोद जी के विग्रह हंसे व आप पर मधुर नजर डालते हुए बोले, "मैं इसी उमराओ गांव के किशोरी कुण्ड के किनारे रहता हूं। तुम्हारी व्यकुलता देखकर मैं स्वयं ही तुम्हारे पास आया हूं, मुझे और कौन लायेगा? अब मुझे भूख लगी है। शीघ्र भोजन खिलाओ।" 
 
यह सुनकर आप के दोनों नेत्रों से आंसु बहने लगे। तब आपने स्वयं खाना बनाकर, श्रीराधा-विनोद जी को परितृप्ति के साथ भोजन कराया व बाद में पुष्प शैया बनाकर उनको सुलाया। नये पत्तों द्वारा आपने ठाकुर को हवा की व मन लगाकर ठाकुर के चरणों की सेवा की। आपने मन और प्राण भगवान के चरणों में समर्पित कर दिए। 
 
श्रीलोकनाथ गोस्वामी जी द्वारा सेवित श्रीराधा-विनोद जी के विग्रह आजकल वृन्दावन के श्री गोकुलानन्द मन्दिर में सेवित होते हैं। 
 
(अखिल भारतीय श्रीचैतन्य गौड़ीय मठ द्वारा प्रकाशित तथा इस संस्था के वर्तमान आचार्य श्रील भक्ति बल्लभ तीर्थ गोस्वामी महाराज जी द्वारा रचित, 'श्रीगौरपार्षद एवं गौड़ीय वैष्णव-आचार्यों के संक्षिप्त चरितामृत' से) 
 
श्री चैतन्य गौड़िया मठ की ओर से 
श्री भक्ति विचार विष्णु जी महाराज
bhakti.vichar.vishnu@gmail.com

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