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सावन के दूसरे सोमवार: करें बैजनाथ धाम के Live दर्शन

Edited By Punjab Kesari,Updated: 24 Jul, 2017 02:31 PM

धौलाधार के आंचल में राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर समुद्र तल से 1000 मीटर की ऊंचाई पर भगवान शिव की बैजनाथ नगरी स्थित है। बैजनाथ स्थित ऐतिहासिक शिव मन्दिर की विश्व मानचित्र पर

धौलाधार के आंचल में राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर समुद्र तल से 1000 मीटर की ऊंचाई पर भगवान शिव की बैजनाथ नगरी स्थित है। बैजनाथ स्थित ऐतिहासिक शिव मन्दिर की विश्व मानचित्र पर अपनी एक अलग ही पहचान है। जिला कांगड़ा के बैजनाथ में स्थित प्राचीन शिव मंदिर उत्तरी भारत का आदिकाल से एक तीर्थ स्थल माना जाता है। इस मंदिर में स्थित अर्धनारीश्वर शिवलिंग देश के विख्यात एवं प्राचीन ज्योतिर्लिंग में से एक है। जिसका इतिहास लंकाधिपति रावण से जुड़ा है।


यूं तो वर्ष भर प्रदेश के देश-विदेश से हजारों की संख्या में पर्यटक इस प्राचीन मंदिर में विद्यमान प्राचीन शिवलिंग के दर्शन के साथ-साथ इस क्षेत्र की प्राकृतिक सौदर्य की छटा का भरपूर आनंद लेते हैं परन्तु शिवरात्रि एवं श्रवण मास में यह नगरी बम-बम भोले के उदघोष से शिवमयी बन जाती है।


नौंवी शताब्दी में इस मन्दिर का निर्माण दो व्यापारी भाईयों ने करवाया था। लंकापति रावण की तपोस्थली के रूप में बैजनाथ मन्दिर में अचम्भित करने वाली दो बातें है एक तो यह कि बैजनाथ कस्बे में लगभग 700 व्यापारिक संस्थान है परन्तु कस्बे में कोई भी सुनार की दुकान नहीं है। ऐसा कहा जाता है कि यहां सोने की दुकान करने वाले का सोना काला पड़ जाता है। दूसरी यह कि यहां दशहरा नहीं मनाया जाता और जो रावण का पुतला जलाता है उस व्यक्ति पर घोर विपति आन पड़ती है।


शिवनगरी बैजनाथ में आज भी लंकेश्वर रावण की पूजा होती है। बैजनाथ-पपरोला के मध्य निर्जन स्थान पर रावणेश्वर महादेव मंदिर स्थित है। जनश्रुति के अनुसार शिवलिंग के साथ रावण के पदचिन्ह भी मौजूद हैं। मान्यता है कि रावण ने यहां घोर तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया था। शिवनगरी बैजनाथ को लंकापति रावण की तपस्थली के रूप में भी जाना जाता है। 

 
यह ऐतिहासिक शिव मंदिर प्राचीन शिल्प एवं वास्तुकला का अनूठा व बेजोड़ नमूना है जिसके भीतर भगवान शिव का शिवलिंग अर्धनारीश्वर के रूप में विराजमान है तथा मंदिर के द्वार पर कलात्मक रूप से बनी नंदी बैल की मृर्ति शिल्प कला का एक विशेष नमूना है श्रद्वालु शिंवलिंग को पंचामृत से स्नान करवा कर उस पर बिल पत्र, फूल, भांग, धतूरा इत्यादि अर्पित कर शिव भगवान को प्रसन्न करके अपने कष्टों एवं पापों का निवारण कर पुण्य कमाते है, जबकि श्रवण के दौरान पड़ने वाले हर सोमवार को मंदिर में मेला लगता है।


एक जनश्रुति के अनुसार द्वापर युग में पांडवों द्वारा अज्ञात वास के दौरान इस भव्य मंदिर का निर्माण करवाया गया था, परन्तु वह पूर्ण नहीें हो पाया था स्थानीय लोगों के अनूुसार इस मंदिर का शेष निर्माण कार्य आहूक एवं मनूक नाम के दो व्यापारियों ने पूर्ण किया था और तब से लेकर अब तक यह स्थान शिवधाम के नाम से उत्तरी भारत में विख्यात है। 


उन्होंने बताया कि राम रावण युद्व के दौरान रावण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए कैलाश पर्वत पर तपस्या की थी और भगवान शिव को लंका चलने का वर मांगा ताकि युद्व में विजय प्राप्त की जा सके। शिव भगवान ने प्रसन्न होकर रावण के साथ लंका एक पिंडी के रूप चलनें का वचन दिया और साथ में यह शर्त रखी कि वह इस पिंडी को कहीं जमीन पर रखकर सीधा इसे लंका पहुंचाएं।


रावण शिव की इस अलौकिक पिंडी को लेकर लंका की ओर रवाना हुए रास्ते में कीेरग्राम ( बैजनाथ) नामक स्थान पर रावण को लधुशंका लगी उन्होंने वहां खड़े व्यक्ति को थोडी देर के लिए पिंडी सौंप दी। लघुशंका से निवृत होकर रावण ने देखा कि जिस व्यक्ति के हाथ में वह पिंडी दी थी वह लुप्त हो चुके हैं ओर पिंडी जमीन में स्थापित हो चुकी थी रावण ने स्थापित पिंडी को उठाने का काफी प्रयास किया परन्तु उठा नहीं पाए। उन्होंने इस स्थल पर घोर तपस्या की और अपने दस सिर की आहुतियां हवनकुंड में डाली तपस्या से प्रसन्न होकर रूद्र महादेव ने रावण के सभी सिर फिर से स्थापित कर दिए।

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