जो प्रभु को श्रद्धा प्यार से अर्पित करता है वही वो स्वीकार करते हैं : कृष्ण विज

Edited By ,Updated: 28 Mar, 2015 08:56 AM

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श्रीराम शरणम् आश्रम 17 लिंक रोड द्वारा साईं दास स्कूल ग्राऊंड में आयोजित रामायण ज्ञान यज्ञ के दौरान श्री कृष्ण विज ने कहा कि जब श्रीराम की जंगल में भ्रमण करते-करते ऋषि अगस्त मुनि से मुलाकात होती है इस दौरान अगस्त मुनि प्रभु श्रीराम को पंचवटी नामक...

श्रीराम शरणम् आश्रम 17 लिंक रोड द्वारा साईं दास स्कूल ग्राऊंड में आयोजित रामायण ज्ञान यज्ञ के दौरान श्री कृष्ण विज ने कहा कि जब श्रीराम की जंगल में भ्रमण करते-करते ऋषि अगस्त मुनि से मुलाकात होती है इस दौरान अगस्त मुनि प्रभु श्रीराम को पंचवटी नामक स्थान बताते हैं जहां पर प्रभु श्रीराम कुटिया बनाकर रहना शुरू कर देते हैं। 

इसी बीच एक दिन एक सुंदर नारी राम के पास आती है और अपना परिचय देती है। श्री कृष्ण विज कथा के माध्यम से बताते हैं कि लक्ष्मण जी उक्त राक्षसी की नाक काट देते हैं। वह रोती-रोती खरदूषण के पास जाती है व सारी व्यथा सुनाती है। खरदूषण गुस्से में राम को मारने आते हैं परंतु राम के हाथों मारे जाते हैं। तब शूर्पनखा अपने भाई रावण के पास जाकर अपनी बात बताती है। 

कथा में सीता हरन होने के उपरांत श्रीराम वनों में सीता को खोजते हैं। श्री कृष्ण विज ने जटायु का रावण से युद्ध, रावण द्वारा अशोक वाटिका में सीता जी को बंदी बनाना तथा श्रीराम जी द्वारा जटायु की अंत्येष्टि की कथा सुनाई। इसके उपरांत किष्किंधा कांड में शबरी का चरित्र सुनाया। 

उन्होंने कहा कि मतंग ऋषि अपना शरीर छोड़ रहे थे तब शबरी ने उनसे प्रार्थना की कि जब आपके रहते मेरी यह दुर्दशा है तो आपके चले जाने के बाद मेरा क्या होगा। तब मतंग ऋषि ने कहा कि तुम यहीं रहो और प्रभु श्री राम का इंतजार करो। प्रभु श्रीराम उन सभी ज्ञानियों को छोड़कर तुम्हारे पास आएंगे जिन्हें अपने ज्ञान का घमंड है।

कथा प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए श्री कृष्ण विज ने कहा कि जब प्रभु श्रीराम शबरी के आश्रम में पहुंचे तो शबरी ने उनके स्वागत में उन्हें बैठने का स्थान दिया। उन्होंने कहा कि शबरी प्रभु श्रीराम को पाकर बहुत खुश थी और अपने प्रेम में उन्हें अपने जूठे बेर तक खिला दिए। 

श्री कृष्ण विज ने कहा कि प्रभु प्यार के भूखे हैं। श्रद्धा प्यार से उन्हें जो भी अर्पित करता है उसे स्वीकार करते हैं। कथा के दौरान श्रीमती रेखा विज ने रामायण की चौपाइयों का पाठ किया। कथा का विश्राम सर्व शक्ति मते परमात्मने श्री रामाय नम: से हुआ।

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