शास्त्रों के अनुसार पूजा के समय न पहनें Stitched clothes

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 03 Apr, 2020 12:42 PM

do not wear stitched clothes during worship

सनातन धर्म में कोई भी धार्मिक कार्य करते समय पुरुष धोती और महिलाएं साड़ी धारण करती हैं क्योंकि यह वस्त्र सिले नहीं होते। माना जाता है की सिले हुए वस्त्र

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

सनातन धर्म में कोई भी धार्मिक कार्य करते समय पुरुष धोती और महिलाएं साड़ी धारण करती हैं क्योंकि यह वस्त्र सिले नहीं होते। माना जाता है की सिले हुए वस्त्र अशुद्ध होते हैं और उनमें बंधन अनुभव होता है। पूजा-पाठ करते समय ध्यान इधर-उधर भटके नहीं इसलिए बंधन रहित वस्त्रों का चयन किया जाता है।

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हिंदू धर्म में जितने भी देवी-देवता हैं उनके चित्रों पर दृष्टिपात करें तो पाएंगे की वो कभी तन ढंकने को सीले वस्त्रों का इस्तेमाल नहीं करते थे। यहां तक की प्राचीन काल में भी पुरूष धोती और महिलाएं साड़ी धारण करती थी। धार्मिक कार्यों में बैठते समय सूती साड़ी अथवा सूती धोती को ही धारण करना चाहिए यह शास्त्र सम्मत है। इसी से देवी-देवताओं की पूर्ण कृपा प्राप्त होती है।  

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ज्योतिष की मानें तो जब किसी भी वस्त्र पर सुई का इस्तेमाल हो जाता है तो उस पर राहू और शनि का प्रभाव पड़ जाता है। जिससे की बुध अशुभ हो जाता है।

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कीनिया के एक पादरी का कहना था महिलाएं जब चर्च में आएं तो अंतःवस्त्र न पहनें। क्योंकि इससे महिलाएं बंधन अनुभव करती हैं।

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इस्लाम के नियमों अनुसार जो मुस्लमान हज यात्र पर मक्का में इबादत के लिए जाते हैं। उन्हें ईबादत करने से पूर्व बिना सिला हुआ सफेद कपड़ा धारण करना होता है। यह कपड़ा उनके लिए बहुत पूजनिय होता है उसे 'एहराम' कहा जाता है।

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