आध्यात्मिक शक्ति के पुंज थे डा. विश्वामित्र

Edited By ,Updated: 29 Jun, 2015 11:44 AM

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सदा हंसमुख चेहरा, राम नाम में रंगे पूर्ण संत जिनकी दृष्टि मात्र से साधक आनंदित हो जाते थे, ऐसी मनमोहक मूर्ति के स्वामी थे, पूज्नीय श्री प्रेम जी महाराज के परम शिष्य डा. विश्वामित्र.....

सदा हंसमुख चेहरा, राम नाम में रंगे पूर्ण संत जिनकी दृष्टि मात्र से साधक आनंदित हो जाते थे, ऐसी मनमोहक मूर्ति के स्वामी थे, पूज्नीय श्री प्रेम जी महाराज के परम शिष्य डा. विश्वामित्र ।इन्होंने आल इंडिया मैडीकल इंस्टीच्यूट, नई दिल्ली में 22 वर्षों तक सेवा की, भौतिक जीवन की निस्सारता एवं प्रभु प्रेम का आकर्षण आपको संसार से बांध नहीं पाया ।

ईश प्राप्ति को चाह में आपने ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए त्याग एवं वैराग्य वृत्ति को और प्रवृत किया तथा सब कुछ त्याग कर स्वेच्छा से सेवा निवृत्ति ले ली और मनाली जाकर एकांत वास में साढ़े पांच वर्ष तक साधना रत रहे । जहां आपकी आध्यात्मिक शक्तियों का पूर्णरूपेण विकास हुआ। इस अवधि में आपको कई आध्यात्मिक उपलब्धियां एवं अनुभूतियां हुईं । आप उच्चकोटि के विद्वान, महान कर्म योगी, श्रेष्ठतम संत एवं आध्यात्मिक शक्ति के पुंज बन कर उभरे।

श्री प्रेम जी महाराज के ब्रह्मलीन होने पर 9 दिसम्बर 1993 को इन्हें उत्तराधिकारी बनाया गया । तब से आपने राम नाम को जीवन का एकमात्र उद्देश्य मानकर, श्री स्वामी सत्यानंद जी महाराज द्वारा स्थापित आदर्श परम्पराओं का दृढ़तापूर्वक निर्वहन किया।इनकी अध्यक्षता में हर वर्ष भारत के विभिन्न प्रांतों में लगभग 30 साधना सत्संग 3 से 5 दिन की अवधि में लगाए जाते थे, जिनमें साधक सम्मिलित होकर सांसारिक बाधाओं से मुक्त होकर जीवन के असली सुख की प्राप्ति करते ।

श्री महाराज ने 2 जुलाई 2012 को श्री रामशरणम हरिद्वार में चल रहे साधना सत्संग के दौरान प्रात: काल में नीलधारा जाकर राम नाम का ध्यान लगाते हुए निर्वाण पद को प्राप्त किया, आज उनके सूक्ष्म संरक्षण में देश व विदेशों में बने लगभग 150 श्री रामशरणम् में नियम रूप से राम नाम के प्रचार हेतु कार्यक्रम चल रहे हैं।
—राम, शाम शोरी 

 

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