मानसिक रोगी होते हैं बच्चों से ‘दुष्कर्म’ करने वाले

Edited By ,Updated: 25 Jul, 2015 12:41 AM

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यह एक डरावनी कहानी है लेकिन है बिल्कुल सच्ची, जिसकी नई-नई परतें ये शब्द लिखे जाने तक भी खुलती जा रही थीं। यह कहानी उन खौफनाक बातों के बारे में है

(किरण बेदी): यह एक डरावनी कहानी है लेकिन है बिल्कुल सच्ची, जिसकी नई-नई परतें ये शब्द लिखे जाने तक भी खुलती जा रही थीं। यह कहानी उन खौफनाक बातों के बारे में है जो हमारे गुमशुदा बच्चों के साथ अवघटित हो सकती हैं।

इन्हीं डरावनी संभावनाओं के चलते यह अत्यंत जरूरी है कि बच्चों को गलियों-कूचों पर साजिशी ढंग से घूमते यौन-पिपासुओं और अन्य अपराधियों के चंगुल से बचाया जाए। सबसे जघन्य अपराधों के शिकार मुख्य तौर पर गरीब लोगों के बच्चे ही होते हैं, वे भी 10 वर्ष से कम आयु के बच्चे जो अपने घरों के आसपास दुनिया से बेखबर खेल रहे होते हैं। ये गरीबबच्चे चंद-एक मिठाई के टुकड़ों, टॉफियों या अन्य आकर्षणों के झांसे में आकर इन अपराधियों के शिकार होते हैं।
 
जो लोग दिहाड़ीदार मजदूरों के रूप में काम करते हैं और कार्यस्थल या सड़कों के किनारे ही सोते हैं मुख्य तौर पर उन्हीं के बच्चे ऐसे अपराधियों के चंगुल में फंसते हैं। मुझे ये शब्द लिखने के लिए तब मजबूर होना पड़ा जब एक नए बाल यौनाचारी की करतूतों के बारे में मीडिया में पढ़ा। 
 
बहुत पुरानी बात नहीं जब नोएडा के एक गांव निठारी में इसी प्रकार का एक खौफनाक प्रकरण अवघटित हुआ था जब अनेक बच्चे गुम हो गए और उनकी हड्डियां अपराधियों के घर के बाहर गंदे नाले में से बरामद की गईं। इन दुष्कर्म को अंजाम देने वाला हत्यारा इंसानी मांस खाने का शौकीन था जो इस समय जेल में बंद है और अभी तक सजा-ए-मौत का इंतजार कर रहा है। अपने पाठकों की जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से मैंने इन अपराधों का विश्लेषण करने का फैसला किया ताकि संभवत: इन पर अंकुश लगाया जा सके।
 
लेकिन यह कहानी उन लोगों को पढ़ कर सुनाने की जरूरत है जिन पर ऐसे अपराधों का साया मंडराता रहता है परन्तु वे लेशमात्र भी सजग नहीं होते कि आम लोगों के बीच सड़कों पर घूमते रक्तपिपासु और यौन पिपासु दैत्य बच्चों के साथ दुराचार करके अपनी हवस पूरी करने के लिए उनके मासूमों को किसी भी समय चुरा कर ले जा सकते हैं।
 
मैं यहां संदर्भ के लिए एक मामला पेश करती हूं। अपराधी रविन्द्र कुमार जो इस समय 24 वर्ष का, 5 फुट 5 इंच कद का मर्द है, उसने पूछताछ के दौरान पुलिस को बताया कि बलात्कार और हत्या का पहला अपराध उसने 17 वर्ष की आयु में किया था। जब इस मामले में वह सजा से बच निकला तो उसका हौसला बढ़ गया। वह दिन-रात ऐसे बच्चों की तलाश करता रहता जिन्हें वह अपना शिकार बना सकता था। वह जिंदा बच्चों के साथ या उनकी हत्या करने के बाद दुष्कर्म करता था और यह सिलसिला गत 7 वर्ष से भी अधिक समय से जारी है। उसने खुलासा किया कि वह अपने दोस्तों के साथ बैठकर शराब और नशीले पदार्थों का सेवन करता था, पोर्न फिल्में देखता था और उसके बाद दुष्कर्म करने के लिए बच्चों को ढूंढने निकल पड़ता था।
 
अपनी हवस पूरी करने के लिए वह लाल बत्ती क्षेत्र में जाने की क्षमता नहीं रखता था क्योंकि उसके पास पैसे नहीं होते थे इसलिए मुफ्त में ‘मजा’ लेने के लिए वह बच्चों को उठा कर ले जाता था। उसने बताया कि चकला घरों में बड़ी आयु की महिलाएं ही उपलब्ध होती हैं जबकि उसे अवयस्कों के साथ दुष्कर्म करके ही तृप्ति मिलती है। 
 
अपना शिकार ढूंढने के लिए वह कालोनियों में इधर-उधर घूमता रहता, शौचालयों के गिर्द मंडराता रहता या घरों के बाहर खेल रहे बच्चों को मिठाइयों का लालच देता और उन्हें अपने साथ ले जाता। जो बच्चे उसके जाल में फंसने से इंकार करते उन्हें वह जबरदस्ती उठा लेता और उनका मुंह बंद करके दूर किसी सुनसान स्थान पर ले जाता। वहां वह उनका गला घोंट कर सदा के लिए उनका मुंह बंद कर देता और फिर उनकी लाश के साथ दुष्कर्म करता। अपनी हवस पूरी करने के बाद मुर्दा बच्चों को गंदी नाली या किसी गड्ढे में फैंक कर चल देता। फिर वह कई महीने तक उस इलाके से दूर रहता ताकि  पकड़ा न जाए।
 
उसने पुलिस को यह भी बताया कि उसे ऐसा करने का विचार एक हिन्दी फिल्म देखने के बाद आया था। इस फिल्म में अभिनेता बिल्कुल ऐसी ही करतूत करता है। वर्तमान में इस आरोपी को पुलिस उन सभी स्थानों पर ले जा रही है जहां उसने अपनी हवस मिटाने के लिए बच्चों को उठाया था। अब तक का आंकड़ा बहुत रौंगटे खड़ा करने वाला है। ऊपर से दिन-ब-दिन इसमें वृद्धि हो रही है।
 
सितम की बात यह है कि एक ऐसे मामले में उसने अपनी संलिप्तता का इकबाल किया है जिसमें मर चुकी बच्ची का पिता जेल भुगत रहा है। इलाके की पुलिस ने पिता को ही हत्या का दोषी मान लिया था। स्पष्ट है कि पुलिस की जांच-पड़ताल खानापूॢत और जालसाजी पर आधारित है क्योंकि असली अपराधी बलात्कारी तो अब पकड़ा गया है जिसने यह माना है कि उसने बच्ची के साथ दुष्कर्म किया था और उसकी लाश फैंक दी थी।
 
उपरोक्त तथ्यों के मद्देनजर मेरे मन में  यह जानने की जिज्ञासा पैदा हुई कि आखिर ऐसी आपराधिक प्रवृति की शुरूआत कैसे होती है क्योंकि जो व्यक्ति अपनी हवस बच्चों के साथ पूरी करते हैं, चाहे वे जिंदा हों या मुर्दा, ऐसे व्यक्ति गंभीर मानसिक रोगों के शिकार होते हैं। अपराधी रविन्द्र कुमार के मामले का मैंने पुलिस अधिकारियों के साथ मिलकर विश्लेषण किया तो मुझे पता चला कि उम्मीद के अनुसार उसकी मां उसके अपराधी होने से इंकार कर रही है और कहती है कि उसके बेटे को दुर्भावनावश फंसाया गया है।
 
लेकिन यह मां इस बात का खुलासा नहीं करती कि उसे अपने बेटे के क्रियाकलापों के बारे में कोई जानकारी नहीं। न ही वह यह जानती है कि वह कई-कई दिनों तक घर से बाहर क्यों रहता था। ऐसे में वह यह भी नहीं जान सकती कि उसका बेटा बच्चों के साथ दुष्कर्म करता था। उसका एक अन्य बेटा पिटाई किए जाने पर घर से भाग गया था।
 
बदायूं (यू.पी.) से संबंधित रविन्द्र का पिता प्लम्बर का काम करता है जिसने रोजगार की तलाश में अपना गांव गंजद्वारा छोड़कर दिल्ली का रुख किया था। उसे भी ऐसी कोई जानकारी नहीं कि उसका बेटा क्या कुछ करता था। वह तो अपने 6 बच्चों को संभालने की क्षमता ही नहीं रखता। उसे अभी भी यह पता नहीं कि शेष 5 बच्चे क्या कमाई करते हैं और क्या वे अपने भाई की करतूतों से अवगत थे। अब तक की तफ्तीश से यह खुलासा हुआ है कि अपराधी का कम से कम एक भाई उसके कुकृत्यों से वाकिफ था। यह परिवार न केवल गरीब है बल्कि बेरोजगार भी है और इसके बच्चे गलियों में आवारागर्दी करते हुए बुरी आदतों वाले ऐसे लोगों की संगति में बड़े हुए हैं जो शराब पीते, पोर्न फिल्में देखते, बलात्कार और लूटपाट करते हैं।
 
इस पूरे मामले में पुलिस और अदालतों की भूमिका पर भी टिप्पणी होनी चाहिए। रविन्द्र कुमार को गत वर्ष पुलिस ने ऐसे ही अपराध में गिरफ्तार किया था लेकिन तब उसके पूर्व अपराधों का खुलासा नहीं हुआ था और उसे केवल इसलिए जमानत मिल गई कि जिस बच्चे के साथ दुष्कर्म किया था वह किसी न किसी तरह जिंदा बच गया था। ऐसे मामलों में  मुस्तैदी न दिखाने के लिए पुलिस, अदालतें और अभियोजक हमारी आलोचना और गुस्से से बच नहीं सकते। इस मामले में पुलिस ने न तो पर्याप्त तफ्तीश की थी और न ही अभियोजक ने उसको जमानत दिए जाने के विरुद्ध ठोस सबूत पेश किए थे। उन्होंने बस यही समझ लिया कि यह अनेक आपराधिक मामलों में से एक मामला मात्र है।
 
माता-पिता बेशक गरीब हों परन्तु उनका कत्र्तव्य बनता है कि वे अपने बच्चों के क्रियाकलापों की जानकारी रखें, खास तौर पर अपने बेटों की क्योंकि बिगड़े हुए बेटे अपने माता-पिता को जेल की हवा भी खिला सकते हैं। 

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