चाणक्य नीति: ऐसे लोगों को जूतों से कुचल दो अन्यथा वो कर देंगे आपका नाश

Edited By ,Updated: 29 Aug, 2015 09:55 AM

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दुष्टों और कांटों को दूर करने के दो ही उपाय हैं या तो जूतों से उनका मुंह कुचल दिया जाए अथवा उन्हें दूर से ही त्याग दें। आचार्य चाणक्य कहते हैं की- खलानां कंटकानां च द्विविधैव प्रतिक्रिया। उपानान्मुखभंगो वा दूरतो वा विसर्जनम्।।

दुष्टों और कांटों को दूर करने के दो ही उपाय हैं या तो जूतों से उनका मुंह कुचल दिया जाए अथवा उन्हें दूर से ही त्याग दें।

आचार्य चाणक्य कहते हैं की-

खलानां कंटकानां च द्विविधैव प्रतिक्रिया।

उपानान्मुखभंगो वा दूरतो वा विसर्जनम्।।

व्याख्या : दुष्टों और कांटों से बचने के दो ही उपाय हैं, जूतों से उन्हें कुचल डालना व उनसे दूर रहना। भाव यह कि दुष्ट और कांटे सदैव कष्ट ही पहुंचाने वाले होते हैं। इनसे बचकर रहना ही ठीक रहता है। यदि इनसे सामना हो ही जाए तो इन्हें जूतों से कुचल डालना चाहिए।

सच बात यह है कि जिन लोगों की प्रवृत्ति दुष्ट है, उनको दूर से त्याग देना चाहिए। आजकल के समय में दुष्ट लोगों को न केवल समाज का उच्च वर्ग ही समर्थन देता है बल्कि सामान्य लोग भी उनसे लडऩे से डरते हैं। फिर आजकल नियम भी ऐसे हैं कि हिंसा करना परेशानी का कारण हो सकता है, इसलिए अच्छा यही है कि दुष्टों को दूर से ही नमस्कार कर चलते बनें। उनके साथ आत्मीय संबंध बनाकर अपनी सुरक्षा का विचार करना निहायत बेवकूफी है।

महाकवि तुलसीदास ने रामचरित मानस को पूर्ण करने के लिए दुष्टों से भी प्रार्थना की थी। इससे सबक यही निकलता है कि जहां तक हो सके दुष्ट लोगों से दूरी बना लें। जहां तक उनको जूते मारने वाली बात है तो आजकल अर्थ के सारे स्रोत दुष्ट के पास भी वैसे ही हैं जैसे सज्जनों के पास। यह जूता मारना दंड नीति का परिचायक है जिसका उपयोग अपने से कमजोर व्यक्ति पर किया जाता है। चूंकि आजकल दुष्ट न केवल धनार्जन बड़ी मात्रा में कर लेते हैं बल्कि समाज भी उनको सम्मान देता है, इसलिए उनसे दूर रहना ही अपनी सुरक्षा का सबसे बढिय़ा उपाय है। वैसे देखा जाए तो आजकल दुष्ट ही दुष्ट से लड़कर नष्ट भी हो जाते हैं। 

इस पूरे विश्व की हालत ऐसी है कि सज्जन के पास इसके अलावा कोई उपाय नहीं है कि वह दुष्टों से दूर रहकर अहंकारवश होने वाले उनके संघर्षों को देखे।  

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