जवान बेटे की मृत्यु पर शोक न करने वाले पिता की बात सुनकर हो जाएंगे आप नतमस्तक

Edited By ,Updated: 03 Oct, 2015 03:08 PM

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एक महात्मा अहमदाबाद (गुजरात) में 25 वर्ष तक प्रतिदिन लगातार गीता की कथा करते रहे। उनके सत्संग में एक भक्त ने एक दिन का भी नागा नहीं किया।

एक महात्मा अहमदाबाद (गुजरात) में 25 वर्ष तक प्रतिदिन लगातार गीता की कथा करते रहे। उनके सत्संग में एक भक्त ने एक दिन का भी नागा नहीं किया। दूसरे सत्संगी तो छुट्टी कर लेते थे। वह भक्त सबसे पहले आता और बाद में जाता तथा ध्यानपूवर्क सुनता। एक दिन भक्त का जवान लड़का मर गया। वह संत्सग में न जा सका। प्रात: की बजाय वह रात के आठ बजे महात्मा जी के पास गया । उनकी कुटिया का द्वार अंदर से बंद था। भक्त ने दरवाजा खटखटाया।

अंदर से आवाज आई, "कौन?"

भक्त बोला,"केशव भाई बोल रहा हूं।"

महात्मा जी इस ढंग से बोले जैसे उन्हें कुछ मालूम ही न हो,"आज ये कैसा नागा डाला क्या बात है क्यों नहीं आए?"

उनका ख्याल था कि भक्त रो उठेगा परंतु भक्त बड़े स्वाभाविक ढंग से बोला, "महाराज जी, आज सत्संग में न आने की क्षमा चाहता हूं। हमारे घर एक मेहमान आया हुआ था उसे विदा करने में देर हो गई।"

महात्मा जी के नेत्रों से आंसू टपक पड़े। उसे गले लगा लिया और बोले, "उसे रोकने की कोशिश क्यों नहीं करी?"

भक्त बोला," रुका नहीं। हमने सोचा पच्चीस वर्ष के मेहमान को जरा धूम-धाम से विदा करें इसलिए देर लग गई।"

महात्मा बोल उठे,"तुम सफेद कपडो में सच्चे ज्ञानी हो। तुम्हारा जवान लड़का चला गया मगर तुम्हारी आंखो में आंसू तक नहीं मगर मैं यह न कर पाया।"

भक्त बोला,"स्वामी जी, आप ही ने तो कहा था कि संसार एक सराय है। जो भी आता

है एक न एक दिन उसे जाना पडता है।"

महात्मा बोले, "जवान लड़का था। कमाई करके आप को खिलाता।"

भक्त बोला,"हर आदमी का प्रबंध उसके साथ है। कोई किसी को खिलाता नहीं।"

जितने दिन तक संबंध रहा हम इकट्ठे रहे। कोई मनुष्य एेसा नहीं है जो संसार में प्रबंध साथ न लाया हो अत: चिंता व शोक का कोई कारण दिखता नहीं। 

श्री बी.एस. निष्किंचन जी महाराज

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