क्यों गजेंद्र मोक्ष को मोक्ष का द्वार कहा जाता है ? जानिए भगवान विष्णु और गजेंद्र की अद्भुत कथा

Edited By Updated: 28 Dec, 2025 03:36 PM

gajendra moksha story

हिंदू धर्मग्रंथों में भगवान विष्णु की कृपा और भक्तवत्सलता की अनेक अद्भुत कथाएं वर्णित हैं, लेकिन गजेन्द्र मोक्ष की कथा सबसे करुण और प्रेरणादायक मानी जाती है।

Gajendra Moksha Story : हिंदू धर्मग्रंथों में भगवान विष्णु की कृपा और भक्तवत्सलता की अनेक अद्भुत कथाएं वर्णित हैं, लेकिन गजेन्द्र मोक्ष की कथा सबसे करुण और प्रेरणादायक मानी जाती है। यह कहानी एक ऐसे भक्त की है, जो संकट में पड़कर पूरे मन से भगवान विष्णु का स्मरण करता है और प्रभु स्वयं उसकी रक्षा के लिए दौड़े चले आते हैं। गजेन्द्र मोक्ष केवल एक कथा नहीं, बल्कि यह संदेश देती है कि सच्ची भक्ति के आगे कोई भी संकट टिक नहीं सकता। इसी प्रसंग से जुड़ी है गजेंद्र स्तुति, जिसका पाठ अत्यंत शक्तिशाली माना गया है। मान्यता है कि गजेंद्र स्तुति का श्रद्धा से पाठ करने से बड़े से बड़ा संकट भी टल जाता है और जीवन में शांति व विश्वास का संचार होता है। क्या आप जानते हैं कि आखिर गजेंद्र मोक्ष कथा कैसे उत्पन्न हुई और इसकी इतनी महिमा क्यों है। तो आइए जानते हैं इनकी कथा और महिमा के बारे में-

Gajendra Moksha Story

पौराणिक कथा के अनुसार गजेंद्र नामक एक विशाल हाथी वरुण देव द्वारा रचित ऋतुमत नाम के उपवन में निवास करता था। वह अत्यंत धर्मपरायण था और प्रतिदिन भगवान विष्णु की आराधना के लिए कमल पुष्प अर्पित किया करता था। एक दिन वह पूजा हेतु कमल तोड़ने के लिए समीप स्थित सरोवर में उतरा। तभी अचानक जल में छिपे एक शक्तिशाली मगरमच्छ ने उसके पैर को जकड़ लिया। गजेंद्र ने स्वयं को छुड़ाने के लिए भरसक प्रयास किए। उसके साथियों ने भी उसे बचाने की कोशिश की, किंतु मगरमच्छ की पकड़ इतनी मजबूत थी कि कोई भी प्रयास सफल नहीं हो सका। समय बीतने के साथ गजेंद्र की शक्ति क्षीण होने लगी। जब उसे यह आभास हुआ कि जीवन की अंतिम घड़ी समीप है, तब उसके झुंड ने भी उसे असहाय छोड़ दिया। अत्यंत पीड़ा और विवशता की अवस्था में गजेंद्र ने अंततः भगवान विष्णु का स्मरण किया। उसने अपनी सूंड में एक कमल धारण कर आकाश की ओर उठाया और प्रभु से रक्षा की प्रार्थना की। अपने भक्त की करुण पुकार सुनकर भगवान विष्णु तत्काल वैकुंठ से प्रकट हुए। जैसे ही गजेंद्र ने प्रभु के दर्शन किए, उसने श्रद्धा भाव से कमल अर्पित किया।

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भक्त की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से मगरमच्छ का अंत कर दिया और गजेंद्र को मुक्त किया। प्रभु के चरणों में नतमस्तक होकर गजेंद्र ने कृतज्ञता प्रकट की। तब भगवान विष्णु ने उसे उसके पूर्व जन्म का रहस्य बताया। वे पूर्व जन्म में  पांड्य देश का राजा इंद्रद्युम्न था, जो विष्णु जी का परम भक्त था। किंतु एक बार ऋषि अगस्त्य के प्रति अनजाने में हुए अपमान के कारण उसे हाथी योनि में जन्म लेने का श्राप मिला। हालांकि उसकी गहन भक्ति के कारण देवताओं की कृपा से उसे गजेंद्र के रूप में जन्म मिला, ताकि अंततः वह प्रभु की शरण में आकर मोक्ष प्राप्त कर सके। इस प्रकार भगवान विष्णु की कृपा से गजेंद्र को जीवन-मरण के बंधन से मुक्ति प्राप्त हुई और यह कथा भक्त और भगवान के अटूट संबंध का प्रतीक बन गई।

गजेंद्र स्तुति की महिमा 
मगरमच्छ के प्राणघातक संकट से स्वयं को बचाने के लिए गजेंद्र ने जो करुण पुकार भगवान विष्णु के समक्ष की थी, वही आगे चलकर विष्णु की स्तुति का एक अत्यंत प्रसिद्ध स्तोत्र बन गई, जिसे गजेंद्र स्तुति के नाम से जाना जाता है। समय के साथ इस स्तुति को विष्णु सहस्रनाम की परंपरा में प्रारंभिक और विशेष महत्व वाले स्रोत के रूप में स्थान मिला।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गुरुवार के दिन गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का नियमित पाठ करने से जीवन में भाग्य का साथ मिलता है और रुके हुए कार्यों में सफलता के योग बनते हैं। वहीं एकादशी तिथि पर इस स्तोत्र के जप को विशेष फलदायी माना गया है, जिससे साधक को अपनी इच्छाओं की पूर्ति का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसके अलावा कहा जाता है कि सत्यनारायण भगवान की कथा और पूजा संपन्न करने के पश्चात गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का पाठ अवश्य करना चाहिए। माना जाता है कि ऐसा करने से व्यक्ति पर भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है और साथ ही माता लक्ष्मी की अनुकंपा से घर में सुख, समृद्धि और वैभव का वास होता है।

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