आज भी हैं हनुमान जी जीवित जानें, कब तक रहेंगे उनके शरीर में प्राण

Edited By ,Updated: 30 Nov, 2015 02:55 PM

hanuman religious story

शास्त्रों में हनुमान जी के जन्म को लेकर अलग-अलग मत हैं। एक मतानुसार हनुमान जी के जन्म की तिथि कार्तिक कृष्ण पूर्णिमा अर्थात दीपावली को मानते हैं तो दूसरे मतानुसार

शास्त्रों में हनुमान जी के जन्म को लेकर अलग-अलग मत हैं। एक मतानुसार हनुमान  जी के जन्म की तिथि कार्तिक कृष्ण पूर्णिमा अर्थात दीपावली को मानते हैं तो दूसरे मतानुसार हनुमान जी का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को हुआ था। उत्तर भारत में हनुमान जी का जन्मोत्सव चैत्र माह की पूर्णिमा को ही मनाया जाता है। हनुमान कलयुग के जन देवता हैं। ऐसी धारणा है कि वह आज भी अपने निष्ठावान भक्तों को दर्शन देते रहते हैं। 

हनुमान जी को राम भक्ति से मिला वरदान: एकादश रुद्रावतार हनुमान जी प्रभु श्री राम के अनन्य भक्त हैं। इसका प्रमाण यह है कि लंका विजय पश्चात हनुमान जी ने प्रभु श्री राम से सदा निश्छल भक्ति की याचना की थी। प्रभु श्री राम ने उन्हें अपने हृदय से लगा कर कहा था," हे कपि श्रेष्ठ ऐसा ही होगा, संसार में मेरी कथा जब तक प्रचलित रहेगी, तब तक आपके शरीर में भी प्राण रहेंगे तथा आपकी कीर्ति भी अमिट रहेगी। आपने मुझ पर जो उपकार किया है, उसे मैं चुकता नहीं कर सकता।"

रामचरितमानस का उल्लेख: भगवान श्रीराम द्वारा चिरकाल तक जीवित रहने का आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद हनुमान जी ने प्रभु श्री राम से कहा, “हे प्रभु जब तक इस संसार में आपकी पावन कथा का प्रचार होता रहेगा, तब तक मैं आपकी आज्ञा का पालन करते हुए इस पृथ्वी पर जीवित रहूंगा।"

रामचरित मानस में भी ये उल्लेख मिलता है कि प्रभु श्री राम ने हनुमान जी को ऐसा ही आशीष दिया था। रामचरितमानस के अनुसार श्री राम ने हनुमान जी से कहा था, “हे हनुमान तुम्हारी तुलना में कोई भी उपकारी देवता, मनुष्य अथवा मुनि भी शरीरधारी पृथ्वी पर विचरित नहीं है।"

श्रीराम के वचन सुनकर और उनके प्रसन्न मुख तथा पुलकित अंगों को देखकर हनुमान हर्षित हो जाते हैं और प्रेम में विकल होकर श्री राम के चरणों में गिर पड़ते हैं। हनुमान को उठाकर श्रीराम हृदय से लगा लेते हैं और अत्यंत निकट बैठा लेते है। फिर हनुमान कहते हैं कि हे नाथ, मुझे अत्यंत सुख देने वाली अपनी निश्छल भक्ति कृपा करके वरदान में दीजिए। हनुमान की अत्यंत सरल वाणी सुनकर, तब प्रभु श्री रामचंद्र 'एवमस्तु' कहकर उन्हें आशीष देते हैं।

माता सीता से भी मिला अमृत्व का वरदान: जनक नंदनी माता सीता ने भी हनुमान जी को अमृत्व का वरदान दिया है। अशोक वाटिका में भक्ति, प्रताप, तेज और बल से सनी हुई हनुमान की वाणी सुनकर माता सीता के मन में संतोष हुआ था। माता सीता ने हनुमान जी को श्री राम का प्रिय जानकर उन्हें आशीर्वाद देते हुए ये कहा था “हे पुत्र! भविष्य में तुम बल और शील के निधान होगे। हे पुत्र, तुम सैदेव अजर, अमर और गुणों का खजाना बने रहोगे। श्री रघुनाथ तुम पर कृपा करें।"

भगवान राम ने दिया वरदान: रामचरित्र मानस में ऐसा वर्णित है कि एक बार हनुमान जी प्रभु श्री राम की सेवा में प्रस्तुत थे। भगवान राम ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर कहा, “हनुमान मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूं जो चाहो वर मांग लो। जो वर देवताओं को भी दुर्लभ होता है वह मैं तुम्हें अवश्य दूंगा”। 

हनुमान भगवान के चरणों पर गिर पड़े और कहा “हे प्रभु, आपके नाम स्मरण करने पर मेरा मन तृप्त नहीं होता है। अत: मेरी मनोकामना यही है कि जब तक आपका नाम इस ब्रह्मांड में रहे तब तक मेरा शरीर भी इस धरा पर विद्यामान रहे”। 

इस पर श्रीराम ने कहा, “ऐसा ही होगा हनुमान। आप जीवन मुक्त हो कर संसार में सुखपूर्वक रहें”।

आचार्य कमल नंदलाल

ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com

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