आपकी जरा सी सावधानी ढेरों उपलब्धियों की सौगात दिला सकती है, आजमा कर देखें

Edited By ,Updated: 17 Aug, 2016 01:10 PM

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भवन निर्माण की वैदिक विधि को वास्तुशास्त्र की संज्ञा दी गई है। जीवन के विभिन्न पहलू जैसे-सुख, समृद्धि, पारिवारिक उल्लास, उन्नति एवं विकास के निए

भवन निर्माण की वैदिक विधि को वास्तुशास्त्र की संज्ञा दी गई है। जीवन के विभिन्न पहलू जैसे-सुख, समृद्धि, पारिवारिक उल्लास, उन्नति एवं विकास के निए अवसर जिन राहों से गुजर कर आप तक पहुंच पाते हैं वे राहें महत्वपूर्ण तो हैं ही, मानव शरीर की पांचों ज्ञानेंद्रियों में जो महत्ता हमारे मुख की है वही महत्ता किसी भी भवन के मुख्य द्वार की होती है।
  
पौराणिक भारतीय संस्कृति व परम्परानुसार इसे कलश, नारियल व पुष्प, अशोक, केले के पत्र से या स्वस्तिक आदि से अथवा उनके चित्रों से सुसज्जित करने की प्रथा है। मुख्य द्वार चार भुजाओं की चौखट वाला होना अनिवार्य है। इसे दहलीज भी कहते हैं। यह भवन में निवास करने वाले सदस्यों में शुभ एवं उत्तम संस्कार का संगरक्षक व पोषक है। 
 
वास्तु शास्त्र के अनुसार घर के मुख्य द्वार की स्थिति का सीधा संबंध उस घर में रहने वाले लोगों की सामाजिक, मानसिक और आर्थिक स्थिति से होता है। यह वास्तु दोषों से मुक्त हो, तो घर में सुख-समृद्धि, ऋद्धि-सिद्धि रहती है सभी प्रकार के मंगल कार्यों में वृद्धि होती है और परिवार के लोगों में आपसी सामंजस्य बना रहता है। इसलिए घर का मुख्य द्वार वास्तु दोष से मुक्त होना अत्यंत आवश्यक है। यदि इसमें कोई दोष हो तो इसे तुरंत वास्तु उपायों के द्वारा ठीक कर लेना चाहिए। 
 
जिस प्रकार मनुष्य के शरीर में रोग के प्रविष्ट करने का मुख्य मार्ग मुख है उसी प्रकार किसी भी प्रकार की समस्या के भवन में प्रवेश का सरल मार्ग भवन का प्रवेश द्वार ही है। इसलिए इसका वास्तु शास्त्र में विशेष महत्व है। गृह के मुख्य द्वार को शास्त्र में गृहमुख माना गया है। यह परिवार व गृहस्वामी की शालीनता, समृद्धि व विद्वता दर्शाता है। इसलिए मुख्य द्वार को हमेशा अन्य द्वारों की अपेक्षा प्रधान वृहद व सुसज्जित रख्रे की प्रथा रही है। किसी भी घर में प्रवेश द्वार का विशेष महत्व है। प्रवेश द्वार की स्थिति वास्तु सम्मत होती है तो उसमें रहने वालों का स्वास्थ्य, समृद्धि सब कुछ ठीक रहता है और अगर यह गलत हो तो कई परेशानियों का सामना करना पड़ जाता है।
 
तो क्यों न वास्तु का ख्याल रख कर अपने जीवन में सुख-समृद्धि लाएं। मुख्य द्वार से प्रकाश एवं वायु को रोकने वाली किसी भी प्रतिरोध को ‘द्वारवेध’ कहा जाता है अर्थात मुख्य द्वार के सामने बिजली, टैलीफोन का खम्भा, वृक्ष, पानी की टंकी, मंदिर, कुआं आदि को ‘द्वारवेध’ कहते हैं। भवन की ऊंचाई से दो गुना या अधिक दूरी पर होने वाले प्रतिरोध द्वारवेध नहीं होते हैं। द्वारवेध निम्र भागों में वर्गीकृत किए जा सकते हैं।
 
स्तंभ वेध : मुख्य द्वार के सामने टैलीफोन, बिजली का खम्भा, डी.पी. आदि होने से रहवासियों के मध्य विचारों में भिन्नता व मतभेद रहता है जो उनके विकास में बाधक बनता है।
 
स्वरवेध : द्वार के खुलने बंद होने में आने वाली चरमराती ध्वनि स्वरवेध कहलाती है जिसके कारण आकस्मिक अप्रिय घटनाओं को प्रोत्साहन मिलता है।
 
घर या आफिस में यदि हम खुशहाली लाना चाहते हैं तो सबसे पहले उसके मुख्य द्वार की दिशा और दशा ठीक करें। वास्तु शास्त्र में मुख्य द्वार की सही दिशा के कई लाभ बताए गए हैं। जरा-सी सावधानी व्यक्ति को ढेरों उपलब्धियों की सौगात दिला सकती है। मानव शरीर की पांचों ज्ञानेंद्रियों में से जो महत्ता हमारे मुख की है, वही महत्ता किसी भी भवन के मुख्य प्रवेश द्वार की होती है। साधारणत: किसी भी भवन में मुख्य रूप से एक या दो द्वार मुख्य द्वारों की  श्रेणी में होते हैं जिनमें से प्रथम मुख्य द्वार से हम भवन की चारदीवारों में प्रवेश करते हैं। द्वितीय से हम भवन में प्रवेश करते हैं। भवन के मुख्य द्वार का हमारे जीवन से एक घनिष्ठ संबंध है।
  
आजकल बहुमंजिला इमारतों अथवा फ्लैट या अपार्टमैंट सिस्टम ने आवास की समस्या को काफी हद तक हल कर दिया है। भवन के मुख्य द्वार के सामने कई तरह की नकारात्मक ऊर्जाएं भी विद्यमान हो सकती हैं जिन्हें हम द्वार बेध कहते हैं। प्राय: सभी द्वार बेध भवन को नकारात्मक ऊर्जा देते हैं, जैसे-घर का ‘टी जंक्शन’ पर होना या कोई बिजली का खम्भा प्रवेश द्वार के बीचों-बीच होना, सामने के भवन में बने हुए नुकीले कोने, जो आपके द्वार की ओर चुभने जैसी अनुभूति देते हों आदि।
 
 
इन सबको वास्तु में शूल अथवा विषबाण की संज्ञा दी जाती है और ये भवन की आर्थिक समृद्धि पर विपरीत प्रभाव डालते हैं व घर में सदस्यों के पारस्परिक सौहार्द में कमी कर सकते हैं। ऐसे नकरातमक प्रभाव से बचने के लिए आपको चाहिए कि उन विषबाणों को मार्ग के सामने से हटाने का प्रयास करें। यदि किन्हीं कारणों से इनको हटाना संभव न हो तो अपने मुख्य द्वार का ही स्थान थोड़ा बदल देना चाहिए। जहां तक मुख्य द्वार का संबंध है तो इस विषय को लेकर कई तरह की भ्रांतियां फैल चुकी हैं, क्योंकि ऐसे भवनों में कोई एक या दो मुख्य द्वार न होकर अनेक द्वार होते हैं परंतु अपने फ्लैट में अंदर आने वाला आपका दरवाजा ही आपका मुख्य द्वार होगा। जिस भवन को जिस दिशा से सर्वाधिक प्राकृतिक ऊर्जाएं जैसे प्रकाश, वायु, सूर्य की किरणें आदि प्राप्त होंगी, उस भवन का मुख भी उसी ओर माना जाएगा। ऐसे में मुख्य द्वार की भूमिका न्यून महत्व रखती है। 
 
* मुख्य द्वार के सामने कोई पेड़, दीवार, खंभा, कीचड़, हैंडपम्प या मंदिर की छाया नहीं होनी चाहिए।
 
* घर के मुख्य द्वार की चौड़ाई उसकी ऊंचाई से आधी होनी चाहिए। 
 
* घर का मुख्य दरवाजा छोटा और पीछे का दरवाजा बड़ा होना आर्थिक परेशानी का द्योतक है।
 
* घर का मुख्य द्वार घर के बीचों बीच न होकर दाईं या बाईं ओर स्थित होना चाहिए। यह परिवार में कलह आर्थिक परेशानी और रोग का द्योतक है।
 
* मुख्य द्वार खोलते ही सामने सीढ़ी नहीं होनी चाहिए।
 
* दरवाजा हमेशा अंदर की ओर खुलना चाहिए और दरवाजा खोलते और बंद करते समय किसी प्रकार की चरमराहट की आवाज नहीं होनी चाहिए।  

—दयानंद शास्त्री 

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