Edited By ,Updated: 18 Jun, 2023 04:43 AM
941 में स्थापित केंद्रीय जांच ब्यूरो (सी.बी.आई.), जो भारत सरकार की प्रमुख जांच एजैंसी है और इसकी सेवाएं गंभीर आपराधिक एवं महत्वपूर्ण मामलों की जांच के लिए ली जाती हैं। परंतु समय-समय पर इसकी भूमिका और निष्पक्षता तथा विभिन्न मामलों में किसी निष्कर्ष...
1941 में स्थापित केंद्रीय जांच ब्यूरो (सी.बी.आई.), जो भारत सरकार की प्रमुख जांच एजैंसी है और इसकी सेवाएं गंभीर आपराधिक एवं महत्वपूर्ण मामलों की जांच के लिए ली जाती हैं। परंतु समय-समय पर इसकी भूमिका और निष्पक्षता तथा विभिन्न मामलों में किसी निष्कर्ष पर पहुंचने और आरोप पत्र दाखिल करने में असाधारण देरी के चलते इसकी कारगुजारी पर सवाल उठते रहे हैं।
इसका नवीनतम उदाहरण हाल ही में सामने आया, जब सी.बी.आई. ने 2006-07 में सरकारी प्रतिबंध के बावजूद 250 करोड़ रुपए मूल्य की 60,000 मीट्रिक टन दालों के निर्यात से जुड़े घोटाले में पहली बार मामला दर्ज होने के लगभग 17 वर्ष बाद एक विशेष अदालत में आरोप पत्र दाखिल किया।मामला दर्ज होने के समय विरोधी दलों ने आरोप लगाया था कि देश में दालों की बढ़ती कीमतों को काबू करने के लिए तत्कालीन यू.पी.ए. सरकार के आदेशों का उल्लंघन करके दालों का निर्यात किया गया।
इस आरोप पत्र में सी.बी.आई. ने ‘जैटकिंग कम्पनी’ और उसके मालिकों श्याम सुंदर जैन, नरेश कुमार जैन और प्रशांत सेठी का नाम शामिल किया है। आरोप है कि इन्होंने ‘कुक आइलैंड्स बैंक’ द्वारा पिछली तारीख में जारी ऋण पत्र में हेराफेरी की और संयुक्त अरब अमीरात की कुछ कम्पनियों की मिलीभगत से दाल निर्यात करके सरकार के प्रतिबंध का उल्लंघन किया।
सी.बी.आई. ने इस मामले में आरोपियों पर भ्रष्टाचार निरोधक कानून के प्रावधानों के अलावा भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के अंतर्गत आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी और जालसाजी के आरोप लगाए हैं।इतने गंभीर मामले पर आरोप पत्र दाखिल करने में इतनी अधिक देरी से जहां न्याय प्रक्रिया बाधित हुई है वहीं इससे सी.बी.आई. की प्रतिष्ठïा को भी भारी आघात लगा है।—विजय कुमार