बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल व सेवा करने में हिमाचल प्रदेश के बच्चे सबसे आगे

Edited By ,Updated: 21 Apr, 2015 01:04 AM

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कोई जमाना था जब संतान अपनी मां के चरणों में स्वर्ग और पिता के चेहरे में भगवान देखती थी लेकिन आज समय बदल गया है। आमतौर पर ऐसा होता है

कोई जमाना था जब संतान अपनी मां के चरणों में स्वर्ग और पिता के चेहरे में भगवान देखती थी लेकिन आज समय बदल गया है। आमतौर पर ऐसा होता है कि बच्चे अपने नाम जायदाद लिखवा लेने के बाद बूढ़े माता-पिता की ओर से आंखें फेर लेते हैं और उन्हें जीवन की संध्या अत्यंत मजबूर हालात में बिताने के लिए बेसहारा छोड़ देते हैं।

कई मामलों में जिन बुजुर्गों को बच्चे अपने पास रखते भी हैं उनकी हैसियत भी घर में सिर्फ रोटी और कपड़े पर काम करने वाले 24 घंटे के बिना वेतन के नौकर जैसी हो कर रह जाती है और उन्हें पग-पग पर अपने बेटों ही नहीं बल्कि अपनी बहुओं तक से अपमान के घूंट पीने पड़ते हैं। इस कारण वे बुढ़ापा जनित अन्य रोगों के अलावा डिप्रैशन के शिकार भी हो रहे हैंं।
 
इसी सिलसिले में पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के एक रिटायर्ड पूर्व मुख्य न्यायाधीश श्री शांतिस्वरूप दीवान और उनकी पत्नी श्रीमती रोमिला तथा उनके बेटे के बीच कोठी के स्वामित्व को लेकर विवाद काफी चर्चा में रहा था। 
 
संतानों द्वारा बुजुर्गों की उपेक्षा का हाल यह है कि पिछले दिनों  इंदौर में एक कलियुगी बî अपने सास-ससुर को वश में करने के लिए किसी के कहने पर उन्हें चाय में अपना पेशाब मिला कर पिलाती रही। 
 
संतानों द्वारा परित्यक्त और उपेक्षित ऐसे ही बुजुर्गों की दुर्दशा से द्रवित होकर पूज्य पिता अमर शहीद लाला जगत नारायण जी ने ‘जीवन की संध्या’ नामक एक लम्बी लेखमाला लिखी थी। लाला जी के जीवन में तो वृद्धाश्रम नहीं खुले परन्तु उनके जाने के बाद उनकी प्रेरणा से उत्तरी भारत में अनेक वृद्धाश्रम खोले गए हैं। सबसे पहला वृद्धाश्रम हरिद्वार में स्वामी गीतानंद जी ने खोला था। 
 
वृद्ध माता-पिता की देखभाल और भरण-पोषण को कानूनी तौर पर संतानों का दायित्व बनाने का श्रेय हिमाचल सरकार को जाता है जिसने सन् 2002 में ‘वृद्ध माता-पिता एवं आश्रित भरण-पोषण कानून’ बनाया था जिसके अंतर्गत प्रदेश में संतानों द्वारा उपेक्षित माता-पिता अपनी संतानों के विरुद्ध संबंधित जिले के मैजिस्ट्रेट के पास शिकायत कर सकते हैं। 
 
हिमाचल सरकार द्वारा बनाए गए बुजुर्गों के भरण-पोषण संबंधी कानून के प्रभावी ढंग से लागू करने का ही परिणाम है कि शिमला में 17 अप्रैल को ‘युनाइटेड नेशंस फंड फॉर पापुलेशन एक्टीविटीज’ द्वारा आयोजित एक सैमीनार में पेश रिपोर्ट में कहा गया है कि : 
 
‘‘परम्पराओं का आदर करने वाले हिमाचल के लोग आज भी अपने बुजुर्गों का सम्मान करने में देश भर में अव्वल हैं तथा यह देश के उन शीर्ष 5 राज्यों में से एक है जहां 60 वर्ष से अधिक के लोगों की संख्या बढ़ी है।’’ 
 
रिपोर्ट के अनुसार यहां पुरुषों की औसत आयु 70.5 वर्ष है जबकि 60 वर्ष से अधिक आयु के बुजुर्गों के इसके बाद भी 18 वर्षों तक और महिलाओं के 20.8 वर्षों तक जीवित रहने की अपेक्षा की जाती है। 
 
प्रदेश में 60 वर्ष से अधिक आयु के प्रति 1000 पुरुषों पर 1062 बुजुर्ग महिलाएं हैं। प्रदेश में 60 वर्ष से अधिक आयु के 7 लाख से अधिक लोग हैं जो राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है।
 
यू.एन.एफ.पी.ए. के भारत स्थित उपप्रतिनिधि तोशीहीरो तनाका का कहना है कि ‘‘हिमाचल प्रदेश में 90 प्रतिशत बुजुर्ग अपने परिवारों द्वारा उपेक्षित नहीं हैं परन्तु बुजुर्गों की जनसंख्या में वृद्धि के कारण उनको बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं देने की आवश्यकता है। अनेक लोग अपने माता-पिता को अकेला छोड़ कर शहरी इलाकों में जा रहे हैं। इस कारण एक दिन वे अकेले रह जाएंगे। अत: उनकी देखभाल के लिए नई नीतियां बनाने की जरूरत है।’’
 
इसी संदर्भ में सैमीनार में हिमाचल के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने भी कहा कि ‘‘प्रदेश सरकार अब बुजुर्गों का जीवन स्तर ऊंचा उठाने व उन्हें आवास, भोजन, चिकित्सा, देखभाल आदि उपलब्ध करने हेतु नॉन प्रोफिट संगठनों के सहयोग से एक योजना बनाने के प्रस्ताव पर गंभीरता से सोच रही है।’’ 
 
यू.एन.एफ.पी.ए. द्वारा हिमाचल में बुुजुर्गों की स्थिति के संबंध में आकलन दूसरे राज्यों के लिए भी एक संदेश है कि जिन राज्यों में बुजुर्गों के भरण-पोषण के संबंध में कानून नहीं बनाए गए हैं, उन राज्यों की सरकारें भी बुजुर्गों के लिए ऐसे ही कानून बनाएं ताकि वे अपने जीवन की संध्या सुखपूर्वक बिता सकें। 

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