पश्चिम बंगाल पंचायत चुनावों में बमबारी, आगजनी, तोडफ़ोड़ और लूटमार

Edited By ,Updated: 09 Jul, 2023 04:06 AM

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हिंसा पश्चिम बंगाल में चुनावों का अभिन्न अंग बन चुकी है। वहां 2013 के पंचायत चुनावों में हुई ङ्क्षहसा में कम से कम 80 लोग तथा 2018 के चुनावों में 13 लोग मारे गए थे। अब 8 जुलाई को हुए पंचायत चुनावों के लिए मतदान से पहले इस वर्ष 27 लोग मारे गए जबकि...

हिंसा पश्चिम बंगाल में चुनावों का अभिन्न अंग बन चुकी है। वहां 2013 के पंचायत चुनावों में हुई हिंसा में कम से कम 80 लोग तथा 2018 के चुनावों में 13 लोग मारे गए थे। अब 8 जुलाई को हुए पंचायत चुनावों के लिए मतदान से पहले इस वर्ष 27 लोग मारे गए जबकि मतदान के दौरान हुई झड़पों में 18 लोग मारे गए हैं। इस दौरान हिंसक झड़पों में अनेक मतदान केंद्रों पर मत पेटियां नष्ट की गईं तो कहीं बूथ लूट लिए गए। कहीं फर्जी मतदान से नाराज मतदाताओं ने मतपत्रों में आग लगा दी तो कहीं मत पेटी में पानी डाले जाने आदि के कारण मतदान रोकना पड़ा। 

कई जगह मतदान केंद्रों तथा उनके आसपास बम फैंके गए, पथराव किया गया तथा विभिन्न दलों के कार्यकत्र्ताओं ने मतदान केंद्रों में जबरदस्ती घुसने की कोशिश की। मतदान के लिए आए लोगों को भगाने, धमकाने, उन पर हमला करने तथा मतदान केंद्रों पर कब्जा करने के भी समाचार हैं। अनेक स्थानों पर लोगों ने मतदान का बहिष्कार किया। 

आरोप है कि कई जगह तृणमूल कांग्रेस के कार्यकत्र्ताओं ने 7-8 जुलाई की दरम्यानी रात को ही बोगस वोट डलवा दिए। बताया जाता है कि कुछ मतदान केंद्रों पर तृणमूल कांग्रेस के लोग थैलों में भर कर बम लाए थे। 24 परगना जिले के दौरे पर निकले राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस का कहना है कि गुंडों ने लोगों को मतदान केंद्रों पर जाने नहीं दिया। कुछ राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार राज्य में पंचायतों को मिलने वाले 2 करोड़ रुपए के फंड पर कब्जा करने का लोभ भी चुनाव जीतने के लिए हिंसा का एक कारण हो सकता है, जिसके वितरण में अनियमितताओं बारे कैग ने आपत्ति की थी। 

इन चुनावों के दौरान हिंसा में अन्य हथियारों के अलावा हथगोलों (ग्रेनेडों) और देसी बमों का खुल कर इस्तेमाल किया गया। कुछ लोगों ने तो बाकायदा बमों की सप्लाई का धंधा शुरू कर रखा था। पूरे राज्य में हजारोंं देसी बम अवैध निर्माताओं द्वारा विभिन्न दलों के लोगों को भेजे गए। राज्य की 42 संसदीय सीटों की बड़ी संख्या ग्रामीण इलाकों में होने के कारण इन चुनावों के जरिए सभी पाॢटयों ने 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले अपने बूथ स्तर के संगठन की क्षमता को जांचने की कोशिश की है, जिन्हें राज्य में लोकसभा चुनावों का सैमीफाइनल माना जा रहा है।  राज्य की लगभग 65 प्रतिशत जनसंख्या इन चुनावों से जुड़ी हुई है। तृणमूल कांग्रेस और भाजपा में कड़ा मुकाबला है जबकि वाम मोर्चा व कांग्रेस भी इन चुनावों में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रही थीं। 

इस हिंसा ने हमारे चुनावी प्रबंधन पर भी सवालिया निशान लगा दिए हैं। बेशक हम अपनी चुनावी मशीनरी विश्व में बेहतरीन होने का दावा करते हैं और इलैक्ट्रोनिक वोटिंग मशीनों से मतदान करवाते हैं जो दुनिया के बहुत कम देशों के पास ही हैं, इसके बावजूद यदि इस प्रकार हिंसा होगी तो फिर कौन मतदान करने जाएगा, यह सबसे बड़ा सवाल है। इस हिंसा के लिए सभी एक-दूसरे पर दोषारोपण कर रहे हैं। सभी दलों ने इस ङ्क्षहसा की ङ्क्षनदा की है जबकि भाजपा ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की है। 

बहरहाल, केंद्रीय सुरक्षा बलों तथा राज्य पुलिस के 1.35 लाख जवान तैनात होने के बावजूद इतने बड़े पैमाने पर हिंसा सुरक्षा प्रणाली पर प्रश्न खड़े करती है। उल्लेखनीय है कि जब सुप्रीम कोर्ट ने राज्य में केंद्रीय बलों की तैनाती के आदेश दिए थे तो राज्य सरकार ने इसका विरोध किया था। किसी समय कला और संस्कृति का केंद्र कहलाने वाला पश्चिम बंगाल आज अपराधों और ङ्क्षहसा का केंद्र बन गया है। लोकतंत्र के सबसे निचले पायदान के चुनाव में यदि इतनी ङ्क्षहसा हो रही है तो आगे लोकसभा के चुनावों में क्या होगा?—विजय कुमार 
 

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