रिश्वत मामले में ओडिशा हाईकोर्ट के पूर्व जज पर सी.बी.आई. द्वारा भ्रष्टाचार के आरोप

Edited By Punjab Kesari,Updated: 23 Sep, 2017 02:12 AM

cbis former judge of odisha high court allegations of corruption by

मैडीकल काऊंसिल ऑफ इंडिया (एम.सी.आई.) द्वारा एक मैडीकल कॉलेज पर लगाई पाबंदी के मामले को कथित तौर पर ....

मैडीकल काऊंसिल ऑफ इंडिया (एम.सी.आई.) द्वारा एक मैडीकल कॉलेज पर लगाई पाबंदी के मामले को कथित तौर पर रफा-दफा करवाने के आरोप में ओडिशा हाईकोर्ट के एक पूर्व जज इशरत मसरूर कुद्दुसी और 1 महिला सहित 5 लोगों की सी.बी.आई. द्वारा भ्रष्टाचार के मामले में गिरफ्तारियों के बाद खुलासा हुआ है कि किस तरह आपसी मिलीभगत से मैडीकल कॉलेजों में दाखिलों में गड़बड़ हो रही थी। 

सी.बी.आई. द्वारा भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के अंतर्गत दर्ज  इस मामले में जिन अन्य लोगों के नाम शामिल किए गए हैं उनमें दिल्ली की भावना पांडे, भुवनेश्वर के विश्वनाथ अग्रवाल, बी.पी. यादव, पलाश यादव तथा सुधीर गिरि शामिल हैं। पलाश लखनऊ में ‘प्रसाद इंस्टीच्यूट ऑफ मैडीकल साइंस’ कालेज चलाता है। कुद्दुसी पर आरोप है कि मध्यस्थ पांडे की मदद से उसने न केवल निजी मैडीकल कॉलेज के अधिकारियों को सलाह दी बल्कि सुप्रीम कोर्ट में उनके मामले का उनके पक्ष में निपटारा कराने का भरोसा भी दिया। 

प्रसाद इंस्टीच्यूट उन 46 कॉलेजों में से एक है जिन पर सरकार ने मूलभूत सुविधाओं की कमी तथा आवश्यक मानदंडों की पूर्ति न करने के चलते आगामी एक या दो वर्ष के लिए दाखिलों पर पाबंदी लगाई हुई थी। इस संस्थान के संचालकों बी.पी. यादव और पलाश यादव ने इस पाबंदी को वर्ष के शुरू में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। 1 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि वह नए सिरे से मामले में सारे रिकॉर्ड पर गौर करे। सरकार ने संस्थान को सुनवाई का एक मौका भी दिया और 10 अगस्त 2017 को फिर से उसके विरुद्ध निर्णय किया कि वह दो वर्ष 2017-18 और 2018-19 के लिए नए छात्रों को दाखिला नहीं दे सकता। साथ ही एम.सी.आई. को 2 करोड़ रुपए की उसकी बैंक गारंटी कैश कराने का अधिकार भी दे दिया। 

सी.बी.आई. के अनुसार इसके बाद बी.पी. यादव ने मेरठ के वैंकटेश्वर मैडीकल कॉलेज के सुधीर गिरि द्वारा पूर्व जज कुद्दुसी और पांडे से सम्पर्क करके मामले को अपने पक्ष में सुलझाने की आपराधिक साजिश रची। जज कुद्दुसी की सलाह पर ही अगस्त, 2017 में सुप्रीम कोर्ट से याचिका वापस ले कर इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक नई याचिका दायर की गई। आश्चर्यजनक रूप से इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि याचिकाकत्र्ताओं के संस्थान में दाखिलों पर 31 अगस्त, 2017 तक पाबंदी न लगाई जाए। इस तरह इलाहाबाद हाईकोर्ट से मामला रफा-दफा करवा दिया गया। 

इस गोरखधंधे का पता चलने पर एफ.आई.आर. दर्ज करने के साथ ही सी.बी.आई. की टीमों ने दिल्ली, भुवनेश्वर और लखनऊ में छापे मारे जिनमें एक हवाला डीलर के ठिकाने भी शामिल थे। अग्रवाल को दिल्ली में हवाला डीलर रामदेव सारस्वत से 1 करोड़ रुपए रिश्वत के रूप में लेते हुए पकड़ा गया। सी.बी.आई. का कहना है कि बी.पी. यादव ने जज कुद्दुसी और पांडे से मदद मांगी थी जिन्होंने उसे भरोसा दिलाया कि वे अपने संपर्कों के जरिए सुप्रीम कोर्ट न्यायालय में मामले को सुलझवा देंगे। अग्रवाल का दावा था कि वरिष्ठ अधिकारियों से उसके करीबी सम्पर्क हैं और आश्वासन दिया कि वह इस मामले को उनके पक्ष में हल करवा देगा। बदले में नौकरशाहों की जेब गर्म करने के लिए उसने भारी-भरकम रकम की मांग की थी। 

एम.सी.आई. ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में विशेष याचिका दायर कर दी है। अब इलाहाबाद हाईकोर्ट के दो वर्तमान जज भी मैडीकल कॉलेज को दाखिला करने की स्वीकृति देने को लेकर सुप्रीम कोर्ट की जांच के दायरे में आ गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज एस.एन. शुक्ला और वीरेंद्र कुमार की भूमिका की जांच के निर्देश भी दिए हैं, जिन्होंने प्राइवेट मैडीकल कॉलेज में दाखिले की इजाजत दे दी जबकि शीर्ष अदालत ने पहले ही किसी भी हाईकोर्ट को ऐसा न करने का स्पष्ट आदेश दिया था। 

जैसा कि हम अक्सर लिखते रहते हैं आज जबकि कार्यपालिका और विधायिका निष्क्रिय हो चुकी हैं केवल न्यायपालिका और मीडिया ही जनहित से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर केंद्र और राज्य सरकारों को झिंझोड़ रहे हैं परंतु अब न्यायपालिका में भी कभी-कभी कोई ऐसा मामला सामने आ जाता है जिसे तत्काल रोकने और दोषियों पर कार्रवाई करने की जरूरत है ताकि न्यायपालिका में ऐसी त्रुटियां अपने पैर न पसार सकें।—विजय कुमार 

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