छोटे-छोटे कामों के लिए अदालत की शरण लेने की मजबूरी सिस्टम में गड़बड़ का संकेत

Edited By Updated: 10 Sep, 2021 03:30 AM

compulsion to take refuge in court for small tasks indicates a mess in

आज देश में कुछ ऐसी स्थिति बन गई है कि सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों के एक वर्ग में बढ़ रही कत्र्तव्य विमुखता के कारण लोगों को अपने छोटे-छोटे कामों के लिए भी न्यायपालिका अथवा

आज देश में कुछ ऐसी स्थिति बन गई है कि सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों के एक वर्ग में बढ़ रही कत्र्तव्य विमुखता के कारण लोगों को अपने छोटे-छोटे कामों के लिए भी न्यायपालिका अथवा मीडिया की शरण में जाने के लिए विवश होना पड़ रहा है।  इसका एक प्रमाण 6 सितम्बर को मिला जब सुप्रीम कोर्ट ने ट्रेन लेट होने के कारण एक शिकायतकत्र्ता यात्री की फ्लाइट छूटने पर ‘जिला उपभोक्ता फोरम’ और फिर ‘राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग’ द्वारा उसे 35,000 रुपए हर्जाना देने का आदेश बहाल रखा तथा रेलवे को उसे यह रकम देने को कहा। 

रेलवे ने इस आदेश को सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दी थी जिसे सुप्रीमकोर्ट ने न सिर्फ अस्वीकार कर दिया बल्कि यह कठोर टिप्पणी भी की कि ‘‘रेलवे को अपना कामकाज ठीक करना होगा। यात्री इसकी दया पर नहीं रह सकते।’’  ऐसा ही एक अन्य उदाहरण 8 सितम्बर को बाम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस ए.जे. कथावाला तथा जस्टिस मिलिंद जाधव की खंडपीठ ने भिवंडी के कांबे गांव के निवासियों की दायर की हुई याचिका पर सुनवाई के दौरान पेश किया। गांव वालों ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि ‘‘नगर पालिका के साथ व्यवस्था के तहत गांव को पानी की आपूर्ति करने वाली कम्पनी आम लोगों के इलाके में तो महीने में केवल 2 बार ही पानी की आपूर्ति कर रही है परंतु स्थानीय नेताओं व टैंकर लॉबी वालों तक अवैध रूप से पानी पहुंचा रही है।’’ 

इस पर जजों ने आदेश दिया कि ‘‘मौजूदा हालात के मद्देनजर कम से कम कुछ घंटों के लिए रोजाना पेयजल आपूर्ति की जानी चाहिए।’’  इसके साथ ही उन्होंने यह कठोर टिप्पणी करते हुए कहा, ‘‘नियमित पेयजल आपूर्ति पाना लोगों का मौलिक अधिकार है लेकिन आजादी के 75 वर्ष बाद भी लोगों को इसके लिए अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ रहा है।’’ 

कुछ समय पूर्व मध्य प्रदेश के पूर्व लोकायुक्त और सुप्रीमकोर्ट के अवकाश प्राप्त जस्टिस पी.पी. नावेलकर ने ऐसी स्थिति को चिंताजनक बताते हुए कहा था कि ‘‘यह देखना होगा कि लोग इतनी बड़ी संख्या में कोर्ट में क्यों जा रहे हैं। सरकार को चाहिए कि वह अपने सिस्टम की खामी भी सुधारे ताकि लोगों को छोटी-छोटी बातों के निपटारे के लिए कोर्ट की शरण न लेनी पड़े।’’ 

इस बात में तो कोई शक ही नहीं है कि छोटी-छोटी बातों के लिए लोगों के न्यायपालिका की शरण में जाने से अदालतों पर मुकद्दमों का अनावश्यक बोझ बढ़ता है और लोगों को न्याय मिलने में देरी इसकी बदनामी का कारण बनती है। लिहाजा सब कुछ न्यायपालिका पर छोडऩे की प्रवृत्ति त्याग कर सरकार को अपना सिस्टम तुरंत सुधारने की सख्त जरूरत है।—विजय कुमार

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