लोकसभा चुनावों से पहले निर्वाचन आयोग की राजनीतिक दलों को सलाह

Edited By ,Updated: 04 Mar, 2024 04:31 AM

election commission s advice to political parties before lok sabha elections

शीघ्र ही होने जा रहे लोकसभा चुनावों से पूर्व इस समय एक ओर देश में कांग्रेस नेताओं ने जाति गणना की चर्चा छेड़ रखी है तो दूसरी ओर भाजपा ने राम मंदिर को मुख्य मुद्दा बनाया है।

शीघ्र ही होने जा रहे लोकसभा चुनावों से पूर्व इस समय एक ओर देश में कांग्रेस नेताओं ने जाति गणना की चर्चा छेड़ रखी है तो दूसरी ओर भाजपा ने राम मंदिर को मुख्य मुद्दा बनाया है, ऐसे में निर्वाचन आयोग ने 1 मार्च को सभी राजनीतिक दलों के लिए एडवाइजरी जारी करके उन्हें सिर्फ मुद्दों तक ही सीमित रहने की सलाह दी है। निर्वाचन आयोग ने सभी राजनीतिक दलों को अपनी चुनावी रैलियों में निकट भविष्य में लागू की जाने वाली आदर्श आचार संहिता के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष उल्लंघन पर कड़ी कार्रवाई की चेतावनी देते हुए तथ्यहीन बयान देकर मतदाताओं को गुमराह करने से मना करते हुए कहा है कि चुनावी भाषणों में कोई ऐसी बात न कही जाए जिससे जनभावनाएं भड़कती हों।

इस एडवाइजरी के अनुसार राजनीतिक दलों, उम्मीदवारों और उनके स्टार प्रचारकों को जाति, धर्म या भाषा के आधार पर मतदाताओं से कोई अपील न करने की ताकीद की गई है। इसमें यह भी कहा गया है कि अतीत में नोटिस प्राप्त कर चुके स्टार प्रचारकों तथा उम्मीदवारों को आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन की पुनरावृत्ति पर कड़ी कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा। एडवाइजरी में कहा गया है कि कोई भी पार्टी मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा या किसी अन्य धर्मस्थल या किसी धार्मिक प्रतीक का चुनाव प्रचार के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकती और न ही इसे अपने प्रचार अभियान के एजैंडे में शामिल कर सकती है।

निर्वाचन आयोग के अनुसार, ‘‘मतदाताओं की जाति या साम्प्रदायिक भावनाओं के आधार पर कोई भी अपील नहीं की जानी चाहिए। ऐसी कोई भी गतिविधि न की जाए जिससे विभिन्न जाति, सम्प्रदायों और धर्मों के लोगों के बीच मतभेद बढ़े तथा घृणा एवं तनाव पैदा हो। भक्त और भगवान के बीच संबंधों का उपहास उड़ाने वाली तथा भगवान के कोप जैसी बातें भी न की जाएं। देवी-देवताओं की ङ्क्षनदा करने से भी मनाही की गई है।’’ निर्वाचन आयोग ने यह परामर्श भी जारी किया है कि विभिन्न राजनीतिक दलों एवं उनके नेताओं को मतदाताओं को बदनाम या गुमराह करने के उद्देश्य से न ही झूठे बयान देने चाहिएं और न ही गलत बातें कहनी चाहिएं।

बिना पुष्टि किए दूसरी पार्टियों या उनके नेताओं की आलोचना करने से भी बचा जाए। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ तथ्यों के साथ अपनी बात को सही तरीके से रखना होता है। निर्वाचन आयोग ने राजनीतिक दलों के नेताओं से यह भी अनुरोध किया है कि वे प्रतिद्वंद्वी समूहों पर निजी आक्षेप करने, उन पर कीचड़ उछालने तथा आपत्तिजनक टिप्पणियां करने से संकोच करें। प्रतिद्वंद्वियों को नीचा दिखाने के लिए अपमानजनक हमले करने की भी मनाही की गई है।

राजनीतिक दल और उम्मीदवार न ही कोई ऐसी बात कहें और न ही कोई ऐसा काम करें जिससे महिलाओं के सम्मान और गरिमा को ठेस पहुंचती हो। मीडिया में भ्रामक और तथ्यों की सत्यता की जांच किए बिना विज्ञापन देने से भी मना किया गया है। आयोग ने चुनाव प्रचार के गिरते स्तर पर ङ्क्षचता व्यक्त करते हुए कहा है कि पिछले कुछ चुनावों के दौरान राजनीतिक दल मुद्दों की बजाय एक-दूसरे के विरुद्ध गलत बयानबाजी और समाज में द्वेष फैलाने के लिए भड़काऊ बयानबाजी करते आ रहे थे। यह ठीक परम्परा नहीं है।

अब तक का इतिहास गवाह रहा है कि राजनीतिक दल चुनावों के अवसर पर न सिर्फ मतदाताओं को लुभाने के लिए तरह-तरह के प्रलोभन और उपहार देते हैं, वहीं मर्यादा की सीमा लांघ कर प्रतिद्वंद्वी दलों और उनके नेताओं पर कीचड़ उछालने से भी संकोच नहीं करते। इससे समाज के विभिन्न वर्गों में अनावश्यक कटुता पैदा होती है। जहां तक निर्वाचन आयोग द्वारा जारी की गई एडवाइजरी का सम्बन्ध है वैसे तो ये सारी बातें हमारे संविधान में पहले ही दर्ज हैं और हर बार निर्वाचन आयोग भी इस आशय की एडवाइजरी जारी करता आया है, परंतु पिछले अनुभव गवाह हैं कि हमारे देश में कई जगह चुनावों पर ङ्क्षहसा होती है और वे सब बुराइयां देखने को मिलती हैं जिनका उल्लेख निर्वाचन आयोग ने अपनी एडवाइजरी में किया है।

तो क्या वर्तमान निर्वाचन आयोग में इतना साहस है कि वह तटस्थ रह कर चुनावों के दौरान विभिन्न पक्षों द्वारा की जाने वाली अनियमितताओं पर नजर रख कर इसका उल्लंघन करने वालों को दंड दे पाएगा और अपने इन परामर्शों को लागू करवा पाएगा, या निर्वाचन आयोग की यह एडवाइजरी एक नसीहत बन कर रह जाएगी? 

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