‘राजनीतिक दलों में तेज हो रहा’ ‘दलबदली का खेल’

Edited By ,Updated: 03 Aug, 2021 06:27 AM

game of defection   intensifying in political parties

कुछ वर्षों से देश की सभी राजनीतिक पार्टियों में दल-बदली का रुझान बढ़ गया है, जो मात्र लगभग तीन सप्ताह के निम्र उदाहरणों

कुछ वर्षों से देश की सभी राजनीतिक पार्टियों में दल-बदली का रुझान बढ़ गया है, जो मात्र लगभग तीन सप्ताह के निम्र उदाहरणों से स्पष्ट है :

* 7 जुलाई को महाराष्ट्र में उत्तर भारतीयों के प्रमुख नेता और राज्य के पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष कृपा शंकर सिंह भाजपा में शामिल हो गए।
* 9 जुलाई को तेलगू देशम पार्टी की तेलंगाना इकाई के अध्यक्ष एल. रमण ने पार्टी से त्यागपत्र देकर तेलंगाना राष्ट्र समिति का दामन थाम लिया।
* 26 जुलाई को मणिपुर कांग्रेस के 3 सदस्य थागजाम श्याम, मु य आयोजक ओकराम इबोहानवी, पार्टी के पूर्व सलाहकार सेंजयम मंगोलजाओ तथा अन्य नेता पार्टी को अलविदा कह कर शिवसेना में चले गए। 

* 30 जुलाई को कर्नाटक के पूर्व मु यमंत्री एस. बंगारप्पा के पुत्र और जनता दल (एस) के नेता मधु बंगारप्पा कांग्रेस में शामिल हो गए।
* 30 जुलाई को असम में कांग्रेस के विधायक सुशांत बोरगोहेन ने पार्टी से त्यागपत्र दे दिया और 2 अगस्त को भाजपा से जुड़ गए।  
* 1 अगस्त को कांग्रेस की मणिपुर इकाई के पूर्व अध्यक्ष गोविनदास कोंथूजाम  ने भाजपा में शामिल होने की घोषणा करते हुए कहा कि राहुल गांधी सहित पार्टी के वरिष्ठï नेताओं से मुलाकात कर पाना भी कठिन है। 

* 1 अगस्त को उत्तर प्रदेश बसपा के वरिष्ठ नेता तथा पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सुखदेव राजभर ने ‘बसपा को अपने मिशन से भटकी हुई पार्टी’ बताते हुए अपने बेटे कमलाकांत को सपा नेता अखिलेश यादव के हवाले करने का ऐलान किया।
* 2 अगस्त को सांसद सुनील मंडल पाला बदल कर तृणमूल कांग्रेस में लौट आए और कहा कि मैं तृणमूल कांग्रेस का सांसद हूं और इसी में रहूंगा। वह विधानसभा चुनावों से पूर्व तृणमूल कांग्रेस छोड़ भाजपा में चले गए थे। 

ये तो दलबदली के चंद उदाहरण मात्र हैं। अपनी मूल पाॢटयां छोड़ कर दूसरी पाॢटयों में जाने वाले अधिकांश नेताओं ने मूल पार्टी से अपने मोहभंग का कारण पार्टी के उच्च नेतृत्व द्वारा उनकी उपेक्षा और अपनी बात न सुनना आदि बताया है जिससे न सिर्फ राजनीतिक दलों में लोकतंत्र का क्षरण हो रहा है बल्कि दल-बदल को भी बढ़ावा मिल रहा है। चूंकि मूल पार्टी में उपेक्षा होने के कारण ही कोई व्यक्ति दूसरी पार्टी में जाता है अत: इसे रोकने के लिए सरकार को ऐसा कानून बनाना चाहिए कि एक पार्टी छोड़ कर दूसरी पार्टी में शामिल होने वाला कोई भी राजनीतिज्ञ एक निश्चित अवधि तक चुनाव भी न लड़ सके।—विजय कुमार 

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