हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव ‘लोकतंत्र जिंदाबाद’

Edited By ,Updated: 25 Oct, 2019 12:15 AM

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अभी कुछ महीने पहले मई में हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा की बड़ी विजय और उसके बाद केंद्र सरकार द्वारा धारा-370 समाप्त करने जैसे बड़े पगों को देखते हुए महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनावों में भी भाजपा की बड़ी विजय की उम्मीद थी। 21 अक्तूबर को मतदान के बाद...

अभी कुछ महीने पहले मई में हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा की बड़ी विजय और उसके बाद केंद्र सरकार द्वारा धारा-370 समाप्त करने जैसे बड़े पगों को देखते हुए महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनावों में भी भाजपा की बड़ी विजय की उम्मीद थी। 21 अक्तूबर को मतदान के बाद अधिकांश एग्जिट पोल में भी ऐसी ही भविष्यवाणी की गई थी पर इस बार मतदाताओं ने अपना मन नहीं खोला व एग्जिट पोल के अनुमान काफी हद तक झुठला दिए। 

90 सीटों वाली हरियाणा विधानसभा में पिछली बार भाजपा ने 47 और कांग्रेस ने 15 सीटें जीती थीं परंतु इस बार भाजपा मात्र 40 पर ही सिमट गई जबकि कांग्रेस ने बड़ा उलटफेर कर 31 सीटें जीत लीं। यहां कांग्रेस को पुनर्जीवित करने में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डïा ने बड़ी भूमिका निभाई। बेशक कांग्रेस ने मेहनत की है परंतु अभी इसे और मेहनत करने की जरूरत है। जाट मतदाताओं की पार्टी से नाराजगी, स्थानीय मुद्दों की उपेक्षा और टिकट के वास्तविक दावेदारों की उपेक्षा कर पैराशूट उम्मीदवारों को टिकट देना भाजपा को कम सीटें मिलने की मुख्य वजह रही। 

परंतु भाजपा एवं कांग्रेस दोनों में से किसी को भी स्पष्टï बहुमत न मिलने के कारण इन चुनावों में मात्र 10 मास पूर्व अस्तित्व में आई दुष्यंत चौटाला द्वारा गठित जननायक जनता पार्टी (जजपा) 10 सीटें जीत कर किंग मेकर की भूमिका में आ गई है तथा दुष्यंत के भाजपा के साथ जाने के संकेत मिल रहे हैं। महाराष्टï्र में पिछले चुनावों में भाजपा ने 288 सदस्यीय सदन में 122, शिवसेना ने 63, कांग्रेस ने 42 और राकांपा ने 41 सीटें जीती थीं परंतु इस बार भाजपा को 105, शिवसेना को 56, कांग्रेस को 44 और राकांपा को 54 सीटें मिल रही हैं। यहां प्रचंड बहुमत की आशा लगाए बैठी भाजपा पिछले चुनावों में जीती सीटों से 17 सीटें नीचे खिसक गई है वहीं शिवसेना ने भी कुछ सीटें गंवा दी हैं। 

हो सकता है कि पिछली बार की अपेक्षा इस बार शिवसेना द्वारा अधिक महत्वाकांक्षाएं पाल लेने के कारण संभवत: शिवसेना ने भाजपा उम्मीदवारों को पूरा सहयोग न दिया हो जिस कारण भाजपा की सीटों में कमी आ गई। भाजपा की सीटें घटनेे का एक कारण भाजपा का अति आत्मविश्वास तथा स्थानीय मुद्दों की उपेक्षा करना भी रहा। हरियाणा की भांति ही भाजपा ने महाराष्ट्र में राज्य में बाढ़ से हुई तबाही, बेरोजगारी, सड़कों के गड्ढों और किसानों की समस्याओं जैसे स्थानीय मुद्दों को भुला दिया। राज्य में पैराशूट उम्मीदवार उतारने का भी भाजपा को घाटा पड़ा। 

हालांकि भाजपा-शिवसेना गठबंधन ने बहुमत का आंकड़ा तो प्राप्त कर लिया है परंतु भाजपा के मुकाबले कम सीटें गंवाने के कारण अपनी बेहतर स्थिति को देखते हुए शिवसेना नेता संजय राऊत ने भाजपा को याद दिलाते हुए कहा है कि हम 50-50 के फार्मूले पर सहमत हुए हैं अर्थात अढ़ाई साल भाजपा और अढ़ाई साल शिवसेना सरकार चलाएगी। कांग्रेस और राकांपा गठबंधन को पिछली बार के मुकाबले अधिक सीटें मिल रही हैं जिसकी उन्होंने उम्मीद भी नहीं की थी। इसमें राकांपा नेता शरद पवार द्वारा चलाए गए जोरदार अभियान का मुख्य योगदान रहा है। 

कुल मिला कर जी.एस.टी., आर्थिक मंदी, बेरोजगारी, महंगाई और बढ़ते अपराध जैसे मुद्दे भी भाजपा पर भारी पड़े जिनके कारण मतदाताओं में निराशा बढ़ी और वोट प्रतिशत गिरा। जहां मई में हुए लोकसभा चुनावों में महाराष्ट्र में 63.4 प्रतिशत तक और हरियाणा में 70.34 प्रतिशत तक वोट पड़े वहीं इस बार दोनों राज्यों में क्रमश: 63 प्रतिशत और 61 प्रतिशत वोट पड़े। भाजपा को सोचना चाहिए कि मतदान के प्रतिशत में आखिर यह गिरावट क्यों आई? निश्चित ही ये चुनाव परिणाम भाजपा के लिए एक चेतावनी हैं। भाजपा की तमाम उपलब्धियों के बावजूद आज देश में असहजता का माहौल है, पार्टी पर लोगों का विश्वास थोड़ा खिसका है जिसका परिणाम भाजपा की सीटों में कमी के रूप में सामने आया है। 

भाजपा की सीटें पिछली बार की तुलना में कम आने के चलते हो सकता है कि शिवसेना आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाने की मांग पर अड़ जाए और यह भी संभावना बन सकती है कि भाजपा के यह मांग स्वीकार न करने पर शिवसेना कांग्रेस और राकांपा गठबंधन के साथ हाथ मिला ले और कांग्रेस, राकांपा तथा शिवसेना का गठबंधन सरकार बना ले। उपरोक्त घटनाक्रम से देश में लोकतंत्र को मजबूती मिलेगी। इससे जहां भाजपा सजग होगी वहीं विपक्षी दलों को भी प्रोत्साहन मिला है जो पहले काफी हतोत्साहित हो गए थे और अब वे भी लोकतांत्रिक प्रक्रिया में अधिक जोर-शोर से हिस्सा लेंगे।

जहां तक उपचुनावों का सवाल है, भाजपा ने हिमाचल में धर्मशाला और पच्छाद की दोनों सीटों पर कब्जा कायम रखा है और पंजाब में हुए चार उपचुनावों में शिअद ने ‘आप’ से दाखा सीट छीन ली जबकि कांग्रेस ने शिअद से जलालाबाद सीट और भाजपा से फगवाड़ा सीट छीन ली तथा मुकेरियां में अपनी सीट पर कब्जा कायम रखा है।—विजय कुमार

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