जस्टिस रमन्ना के महत्वपूर्ण सुझाव न्याय प्रणाली की त्रुटियों बारे

Edited By Updated: 17 May, 2022 04:13 AM

important suggestions of justice ramanna about the flaws of the justice

न्यायालयों में लम्बे समय से चली आ रही जजों तथा अन्य स्टाफ की कमी के साथ-साथ अदालतों में बुनियादी ढांचे के अभाव के चलते आम आदमी को न्याय मिलने में विलम्ब हो रहा है। इसी पृष्ठभूमि

न्यायालयों में लम्बे समय से चली आ रही जजों तथा अन्य स्टाफ की कमी के साथ-साथ अदालतों में बुनियादी ढांचे के अभाव के चलते आम आदमी को न्याय मिलने में विलम्ब हो रहा है। इसी पृष्ठभूमि में भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन.वी. रमन्ना देश की न्याय प्रणाली में व्याप्त विभिन्न त्रुटियों पर अपनी चिंता व्यक्त कर चुके हैं। 

* 15 अगस्त, 2021 को उन्होंने कहा, ‘‘ऐसा लगता है कि नए कानून बनाते समय संसद में गुणवत्तापूर्ण बहस का अभाव है। अतीत में सदनों में होने वाली बहसें बहुत बुद्धिमत्तापूर्ण और रचनात्मक हुआ करती थीं और संसद द्वारा बनाए जाने वाले नए कानूनों पर बहस होती थी परंतु अब वह स्थिति नहीं रही। इस कारण हम कानूनों में कई त्रुटियां और अस्पष्टता देखते हैं।’’ 

‘‘यह स्थिति सरकार के लिए बड़ी संख्या में मुकद्दमेबाजी, असुविधा और नुक्सान के साथ-साथ जनता को असुुविधा पैदा कर रही है। सदनों में बुद्धिजीवी व वकीलों जैसे पेशेवर न होने पर ऐसा ही होता है।’’
* 30 अप्रैल, 2022 को न्यायमूर्ति रमन्ना ने देश के हाईकोर्टों के मुख्य न्यायाधीशों और मुख्यमंत्रियों के संयुक्त सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने बड़ी बात कही कि, ‘‘हमारी सरकार ही सबसे बड़ी मुकद्दमेबाज है और कई बार सरकार ही मामलों को जानबूझ कर अटकाती है।’’

* और अब 14 मई को श्रीनगर में जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट के नए परिसर की आधारशिला रखने के बाद श्री रमन्ना ने न्यायाधीशों और वकीलों को संबोधित करते हुए कहा :

‘‘स्वस्थ लोकतंत्र के लिए यह जरूरी है कि लोग महसूस करें कि उनके अधिकारों और सम्मान को मान्यता देकर उनकी रक्षा की गई है। पीड़ित को न्याय से इंकार करने पर अंतत: अराजकता फैलेगी। इससे बचने के लिए अनुकूल वातावरण बनाने की आवश्यकता है क्योंकि ‘वादी’ (पीड़ित पक्ष) अक्सर अत्यधिक मनोवैज्ञानिक दबाव में होते हैं।’’ 
‘‘भारत में न्याय प्रदान करने की प्रणाली बहुत जटिल और महंगी है। एक स्वस्थ लोकतंत्र में सुचारू ढंग से कामकाज के लिए आवश्यक है कि लोगों को यह महसूस हो कि उनके अधिकार व सम्मान सुरक्षित हैं एवं उन्हें सरकार की मान्यता प्राप्त है।’’ 

‘‘विवादों का तेजी से शीघ्र निपटारा स्वस्थ लोकतंत्र की पहचान है तथा न्याय से इंकार करना अंतत: देश को अराजकता की ओर ही ले जाएगा। लोग स्वयं ही अतिरिक्त न्याय तंत्र की तलाश करने लगेंगे जिससे जल्द ही न्यायपालिका अस्थिर हो जाएगी।’’
‘‘शांति तभी कायम होगी जब लोगों की गरिमा और अधिकारों को मान्यता देकर उनकी रक्षा की जाएगी। भारत में अदालतों के पास संविधान की आकांक्षाओं को बनाए रखने का संवैधानिक दायित्व है। यह खेद की बात है कि स्वतंत्रता के बाद आधुनिक भारत की बढ़ती आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आधारभूत न्यायिक ढांचे में बदलाव नहीं किया गया।’’ 

‘‘न्यायपालिका को अपने काम में पैदा चुनौतियों के साथ संवैधानिक तरीकों द्वारा तेजी से निपटने के उपाय तलाश करने चाहिएं।’’
‘‘जिला अदालतें न्याय प्रदान करने वाली प्रणाली की बुनियाद हैं लेकिन हमारे देश के बुनियादी न्यायिक ढांचे की हालत संतोषजनक स्तर से कोसों दूर है। अदालतें किराए की इमारतों से दयनीय परिस्थितियों में काम कर रही हैं।’’

‘‘देश में इस समय 4.8 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं जबकि जिला अदालतों में 22 प्रतिशत पद खाली पड़े हैं। अत: जजों की कमी दूर करने के लिए तेजी से कदम उठाने तथा सभी जजों के लिए सुरक्षा और आवास की व्यवस्था करने की भी आवश्यकता है।’’ न्यायमूर्ति एन.वी. रमन्ना के उक्त विचारों के दृष्टिगत केंद्र सरकार को इस ओर तुरंत ध्यान देकर उनके द्वारा बताई गई त्रुटियों को तुरंत दूर करना चाहिए ताकि लोगों को लम्बी और जटिल न्याय प्रणाली से मुक्ति और शीघ्र ‘न्याय’ मिले। 

अदालतों पर मुकद्दमों के भारी बोझ के चलते न्याय मिलने में विलंब को देखते हुए ही लोगों ने कई मामलों में स्वयं कानून हाथ में लेना शुरू कर दिया है और इसीलिए जहां अदालत में पेशी भुगतने आए आरोपियों पर हमले शुरू कर दिए हैं, वहीं अदालतों के बाहर मात्र संदेह के आधार पर ही लोगों को पकड़ कर बिना सच्चाई जाने पीट-पीट कर मार डालने तक के समाचार आने लगे हैं।—विजय कुमार    

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