कोयले के चलते बिजली संकट के मुहाने पर खड़ा भारत

Edited By Updated: 11 Oct, 2021 04:17 AM

india standing on the cusp of power crisis due to coal

लेबनान शनिवार को पूर्ण अंधकार में डूब गया क्योंकि वहां कोयले का भंडार समाप्त हो गया है परंतु यह तो एक छोटा सा देश है। भारत भी इस समय अभूतपूर्व बिजली संकट के मुहाने पर खड़ा है। इसकी वजह है देश में कोयले की कमी। भारत कोयले का

लेबनान शनिवार को पूर्ण अंधकार में डूब गया क्योंकि वहां कोयले का भंडार समाप्त हो गया है परंतु यह तो एक छोटा सा देश है। भारत भी इस समय अभूतपूर्व बिजली संकट के मुहाने पर खड़ा है। इसकी वजह है देश में कोयले की कमी। भारत कोयले का दूसरा सबसे बड़ा आयातक, उपभोक्ता तथा निर्माता है और इसके पास कोयले के विश्व के चौथे सबसे बड़े, अनुमानित 100 बिलियन टन कोयले के भंडार हैं। भारत में कोयले से चलने वाले अधिकांश बिजली संयंत्रों में आपूर्ति घट कर केवल कुछ ही दिनों के स्टाक के बराबर रह गई है। भारत के 135 कोयला संयंत्रों में से 108 को गंभीर रूप से कम स्टाक का सामना करना पड़ रहा था जिनमें से 28 में से केवल एक दिन की आपूर्ति थी। 

कोयले की कमी ने भारत के कुछ हिस्सों में संभावित ब्लैकआऊट की आशंकाओं को जन्म दिया है, जहां 70 प्रतिशत बिजली कोयले से उत्पन्न होती है। बिजली मंत्रालय ने एक बयान में कहा है कि बिजली संयंत्रों में कोयले की आपूर्ति औसतन 4 दिनों के स्टाक तक है। 

पंजाब, राजस्थान, दिल्ली तथा तमिलनाडु जैसे राज्यों पर जहां ब्लैकआऊट का खतरा मंडरा रहा है, वहीं झारखंड, बिहार तथा आंध्र प्रदेश भी इस संकट से प्रभावित होंगे जिसके चलते बड़े-बड़े शहरों में बिजली कट लगाए जा रहे हैं। जबकि वैश्विक कोयले की कीमतें 40 प्रतिशत तक बढ़ी हैं और भारत का आयात 2 वर्षों के निम्र स्तर पर है, भारत में अगस्त माह में बिजली का उपभोग पिछले साल की तुलना से 20 प्रतिशत के करीब बढ़ गया। भारत अब घरेलू आपूॢत पर ज्यादा निर्भर कर रहा है। भारत पहले इंडोनेशिया और दक्षिण अफ्रीका से कोयले का आयात करता था मगर अब वहां से ऐसा नहीं हो रहा। इस कोयला संकट के कई कारण हैं। पहला यह है कि कोविड-19  महामारी के दौरान कोयले का उत्पादन कम था और जैसे ही कोविड का प्रकोप कम हुआ तो मांग एकदम से बढ़ गई। 

दूसरा कारण यह है कि मानसून के दौरान भारत के पूर्वी तथा मध्य राज्य भयंकर बाढ़ की चपेट में आ गए जिससे कोयले की खानें तथा उसके परिवहन के मार्ग प्रभावित हो गए। वहीं तीसरी बात यह है कि सरकार के स्वामित्व वाली ‘कोल इंडिया’ जो विश्व में सबसे बड़ी कोल माइनर है, को अपनी पूरी क्षमता से कोयला निकालने की जरूरत है ताकि कोयले की इस मांग की पूर्ति कर सकें। 

हालांकि 2016 से दिउ पूरी तरह से सोलर हो चुका है, वहीं चंडीगढ़ तथा अन्य बहुत से शहर सौर ऊर्जा को अपनाने की कोशिश में हैं। हालांकि प्रशासन इसे लागू नहीं कर पा रहा क्योंकि उसके लिए बहुत महंगी तकनीक चाहिए। मगर दिक्कत यह है कि रात्रि के समय सौर ऊर्जा को संरक्षित नहीं किया जा सकता। वहीं सरकार कोयला संकट को मानसून के दौरान कोयला खानों में पानी के भरने से आपूर्ति कम होना बता रही है। कोयला क्षेत्र में रोजगार की अपार संभावनाएं हैं और इस पर नौकरियों की निर्भरता बहुत ज्यादा है। हम कोयले का विकल्प ढूंढ नहीं पा रहे। 

ऐसा नहीं है कि भारत ही इस समस्या से जूझ रहा है, ब्रिटेन और चीन जैसे देश भी बिजली की आपूॢत की कमी से प्रभावित हैं। ऐसे में भारत को कोयले पर ही नहीं सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा तथा प्राकृतिक गैस को अपनाने की जरूरत है। क्योंकि इस समय नदियों और जलाशयों में भारी बारिश के चलते पानी भरा हुआ है और डैमों में भी पर्याप्त पानी है। इसलिए हाईड्रोइलैक्ट्रीसिटी कोयले की जगह एक अच्छा विकल्प हो सकता है जोकि अधिक ऊर्जा पैदा कर सकता है। देश में पैट्रोल तथा डीजल की कीमतें पहले से ही आसमान को छू रही हैं अगर कोयले की कीमतें भी बढ़ती रहीं तो देश के लिए एक नया आॢथक संकट पैदा हो जाएगा। जी-20 देशों की बैठक ग्लासगो में इस माह के अंत में होने वाली है जिसमें कोयला ऊर्जा से संबंधित मुद्दे गर्माने वाले हैं। इसमें प्रदूषण कम करने के लिए भारत पर दबाव डाला जा सकता है ताकि कोयले का इस्तेमाल कम से कम किया जा सके।  

Related Story

    IPL
    Royal Challengers Bengaluru

    190/9

    20.0

    Punjab Kings

    184/7

    20.0

    Royal Challengers Bengaluru win by 6 runs

    RR 9.50
    img title
    img title

    Be on the top of everything happening around the world.

    Try Premium Service.

    Subscribe Now!