Edited By ,Updated: 02 Sep, 2023 04:12 AM
वर्षों से घोर कुप्रबंधन की शिकार हमारी जेलें आज क्रियात्मक रूप से अपराधियों द्वारा अपनी अवैध गतिविधियां चलाने का ‘सरकारी हैडक्वार्टर’ बन गई हैं और इनमें पिछले 5 वर्षों में कैदियों की संख्या काफी बढ़ गई है।
हमारी जेलों में क्षमता से कहीं
वर्षों से घोर कुप्रबंधन की शिकार हमारी जेलें आज क्रियात्मक रूप से अपराधियों द्वारा अपनी अवैध गतिविधियां चलाने का ‘सरकारी हैडक्वार्टर’ बन गई हैं और इनमें पिछले 5 वर्षों में कैदियों की संख्या काफी बढ़ गई है।
हमारी जेलों में क्षमता से कहीं अधिक कैदी भरे हुए हैं और इनमें विचाराधीन कैदियों की संख्या दोषी कैदियों से कहीं अधिक (77 प्रतिशत) है। जेल सुधारों बारे सुप्रीमकोर्ट द्वारा गठित न्यायमूॢत (अवकाश प्राप्त) अमिताव राय की अध्यक्षता वाली समिति के अनुसार भारत की कुल 1341 जेलों में कैदियों की संख्या क्षमता की तुलना में 122 प्रतिशत है।
समिति ने यह भी कहा है कि ‘‘देश की जेलों में कैदियों के रहने की जगह की स्थिति ‘दयनीय’ है। जेलों में कैदियों की भीड़ की समस्या सुलझाने के लिए इनके मामलों की त्वरित सुनवाई एक प्रभावी साधन बन सकती है। जेलों में बंदियों के रहने की स्थिति मॉडल जेल मैनुअल 2016 के अंतर्गत बताई गई स्थितियों के अनुरूप नहीं है और इस पर तुरंत ध्यान देना चाहिए।’’
समिति के अनुसार, ‘‘देश की जेलों में 2017 से 2021 के बीच हुई 817 अप्राकृतिक मौतों का एक प्रमुख कारण आत्महत्या है। इनमें से 660 आत्महत्याएं थीं और इस अवधि में उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 101 आत्महत्याएं दर्ज की गईं, जिन्हें रोकने के लिए आत्महत्या रोधी बैरकें बनाने की जरूरत है।’’
देश की स्वतंत्रता के समय हमारी जनसंख्या 33 करोड़ थी जो अब बढ़कर 140 करोड़ हो चुकी है और उसी अनुपात में देश में अपराध भी बढऩे के कारण अधिक जेलों की आवश्यकता पैदा हुई है क्योंकि हमारी जेलें अपराधियों के जमावड़े के कारण सुधारघर की बजाय बिगाड़घर बन कर रह गई हैं। अत: अमिताव राय समिति के सुझाव के अनुसार जेलों में भीड़ घटाने के लिए उनमें बंद कैदियों के केसों के निपटारे में तेजी लाने के अलावा नई जेलें बनाने की भी तुरंत जरूरत है।—विजय कुमार