‘विश्व के अनेक देशों में’ ‘बगावत और अशांति’

Edited By Updated: 27 May, 2021 05:16 AM

rebellion and unrest  in many countries of the world

यदि फिलस्तीन तथा इसराईल के झगड़े को एक ओर रख भी दें तब भी विश्व के कम से कम चार देश इस समय अशांति और आंतरिक विद्रोह की चपेट में आए हुए हैं। इनमें भारत के तीन पड़ोसी देश पाकिस्तान, यांमार

यदि फिलस्तीन तथा इसराईल के झगड़े को एक ओर रख भी दें तब भी विश्व के कम से कम चार देश इस समय अशांति और आंतरिक विद्रोह की चपेट में आए हुए हैं। इनमें भारत के तीन पड़ोसी देश पाकिस्तान, यांमार और नेपाल के अलावा एक पश्चिम अफ्रीका का देश ‘माली’ और जुड़ गया है। 

पड़ोसी म्यांमार में सेना की तानाशाही से आजादी के लिए आंदोलन इन दिनों जोरों पर है। वहां सेना द्वारा 1 फरवरी के तख्ता पलट के बाद लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित नेता  ‘आंग-सान-सू-की’ समेत अन्य नेताओं को जेल में डालने के विरुद्ध चल रहे आंदोलन में 700 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। सड़कें युद्ध का मैदान बन गई हैं। हर दूसरे-तीसरे दिन प्रदर्शन हो रहे हैं, आंसू गैस छोड़़ी जा रही है और ङ्क्षहसा के थमने के कोई संकेत दिखाई नहीं दे रहे। भारी सं या में लोग पलायन करके पड़ोसी देशों को भाग रहे हैं। 

सेना ने देश की लोकप्रिय नेता ‘आंग-सान-सू-की’ का राजनीतिक करियर समाप्त करने के लिए उनकी पार्टी को भंग करने का इरादा कर लिया है। सैन्य दमन के विरुद्ध यांमार के साथ लगते देशों में रहने वाले लोगों ने भी प्रदर्शन शुरू कर दिए हैं तथा देश में गृहयुद्ध का खतरा पैदा हो गया है। उधर पड़ोसी देश पाकिस्तान में भी प्रधानमंत्री इमरान खान को बाहरी और अंदरूनी चुनौतियों से जूझना पड़ रहा है। उनकी पार्टी ‘तहरीक-ए-इन्साफ’ दोफाड़ हो गई है और सांसद जहांगीर ने संसद तथा पंजाब असैंबली के कुल 40 सदस्यों के साथ पार्टी के भीतर अपना एक अलग धड़ा बना लिया है। इससे संसद में इमरान की पार्टी के पास गुजारे लायक बहुमत ही बचा है और इमरान सरकार कभी भी सदन में धराशायी हो सकती है। 

इस बीच पाकिस्तान में चल रही राजनीतिक उठापटक के बीच अमरीका द्वारा अफगानिस्तान से अपने सैनिक वापस बुलाने के फैसले से पाकिस्तान के बलोचिस्तान प्रांत में अशांति बढऩे का खतरा पैदा हो गया है। भारत के अन्य पड़ोसी देश नेपाल में भी भारी विरोध का सामना कर रहे प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली की सिफारिश पर एकाएक 20 दिस बर, 2020 को राष्टï्रपति बिद्या देवी भंडारी द्वारा संसद भंग कर 30 अप्रैल और 10 मई को देश में चुनाव करवाने की घोषणा के विरुद्ध नेपाल में जन आक्रोश भड़क उठा है। 

बाद में सुप्रीम कोर्ट द्वारा उक्त आदेश रद्द करने और ओली द्वारा 10 मई को संसद में विश्वासमत प्राप्त करने में विफल रहने पर नए चुनाव करवाने की सिफारिश करने के बाद राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी द्वारा 22 मई को संसद भंग करने और इसी वर्ष 12 और 19  नव बर को मध्यावधि चुनाव कराने के आदेश के पश्चात देश का राजनीतिक माहौल और भी गर्म हो गया है। नेपाल की प्रमुख विपक्षी पार्टी ‘नेपाली कांग्रेस’ ने इस फैसले को असंवैधानिक बताते हुए इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है जिस पर कोर्ट 27 और 28 मई को सुनवाई करेगी। दूसरी ओर ‘नेपाली कांग्रेस’ के नेता शेर बहादुर देउबा भी सरकार बनाने के लिए सक्रिय हो गए हैं। 

इस बीच जहां प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए तरह-तरह की चालें चल रहे हैं वहीं उनके द्वारा पार्टी से निष्कासित नेता माधव कुमार नेपाल ने के.पी. शर्मा ओली पर गुंडों, माफिया और दलालों को संरक्षण देने का आरोप लगाया है। 

जहां म्यांमार, पाकिस्तान और नेपाल अशांति के शिकार हैं और वहां किसी भी समय कुछ भी हो सकता है, वहीं पश्चिम अफ्रीका के देश ‘माली’ में भी विद्रोह हो गया है और सेना ने अंतरिम सरकार के राष्ट्रपति ‘बाह दाव’, प्रधानमंत्री ‘मोक्टर यान’ तथा रक्षामंत्री ‘सोलेमन डोकोरे’ को हिरासत में ले लिया है। इन तीनों को राजधानी ‘बमाको’ के बाहर ‘काटी’ स्थित सैन्य मु यालय में रखा गया है।

दस महीने पहले बनी देश की अंतरिम सरकार के उपराष्ट्रपति कर्नल ‘असीमी गोइता’ ने विद्रोह की जि मेदारी लेते हुए कहा है कि इन लोगों ने सेना से परामर्श किए बिना सरकार में फेरबदल किया, इसलिए इन्हें गिर तार किया गया है। इस बारे राजनीतिक प्रेक्षकों का कहना है कि ‘माली’ के बड़े क्षेत्र पर ‘इस्लामिक स्टेट’ तथा ‘अल कायदा’ जैसे आतंकवादी गिरोहों का नियंत्रण होने के कारण इस देश के हालात और बिगड़ सकते हैं । 

कुल मिला कर उक्त चारों देश आज राजनीतिक उथल-पुथल की चपेट में आए हुए हैं। इस कशमकश में चाहे कोई भी जीतेे, इस तरह की घटनाओं से जहां देशों का विकास अवरुद्ध होता है वहीं अंत में सबसे ज्यादा हानि तो आम जनता की ही होती है और उसे ही सबसे ज्यादा कष्ट उठाने पड़ते हैं। अत: जिस प्रकार इसराईल तथा हमास के बीच 11 दिनों तक चला खूनी युद्ध जिसमें 243 लोग मारे गए, सैंकड़ों घायल हुए तथा अरबों रुपए की स पत्ति नष्टï हुई, अमरीका, मिस्र आदि मध्यस्थों द्वारा बनाए गए दबाव के चलते अभी थम गया है, उसी प्रकार विश्व के लोकतांत्रिक देशों को संयुक्त प्रयास द्वारा उक्त देशों को भी सही रास्ते पर आने के लिए राजी करना चाहिए ताकि वहां शांति बहाल हो।-विजय कुमार

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