आपदाओं की साढ़ेसाती जारी भारी वर्षा और बाढ़ ने देश में मचाई तबाही जानमाल का भारी नुक्सान

Edited By ,Updated: 14 Jul, 2023 05:14 AM

seven and a half years of disasters continue

हम बार बार यह लिखते आ रहे हैं कि विश्व के हालात देखते हुए लोगों का कहना ठीक लगता है कि प्रकृति नाराज है और विश्व पर साढ़ेसाती का माहौल है।

हम बार बार यह लिखते आ रहे हैं कि विश्व के हालात देखते हुए लोगों का कहना ठीक लगता है कि प्रकृति नाराज है और विश्व पर साढ़ेसाती का माहौल है। कोई दिन ऐसा नहीं गुजरता, जब दुनिया के किसी न किसी कोने में भूकंप न आ रहे हों। इस समय जहां देश के विभिन्न राज्यों दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मध्य प्रदेश, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र आदि में वर्षा और बाढ़ ने तबाही मचा रखी है, वहीं अमरीका, रूस और चीन आदि देशों के भी अनेक हिस्से भारी वर्षा और बाढ़ की चपेट में हैं।

उफनती नदियों के कारण तटबंध टूट रहे हैं और मकान गिर रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप पंजाब में कम से कम 14, उत्तर प्रदेश में 34, उत्तराखंड में 18, हरियाणा में 16 व हिमाचल प्रदेश में 91 लोगों की जान जा चुकी है। हरियाणा के हथिनी बैराज से पानी छोडऩे से वीरवार सुबह पिछले 45 वर्ष का रिकार्ड तोड़ कर दिल्ली में यमुना नदी का जल स्तर 205.33 मीटर के खतरे के निशान को पार करके 208.65 मीटर तक पहुंच जाने से जहां राजधानी के बड़े इलाकों में पानी भर गया वहीं आसपास के सैंकड़ों गांव भी डूब गए हैं।

यहां तक कि पानी भर जाने के कारण कुछ श्मशानघाट भी बंद करने पड़े हैं। दिल्ली के 3 वाटर प्लांट भी बंद कर देने से कई इलाकों में 2-3 दिनों तक पानी की सप्लाई ठप्प रहने की आशंका पैदा हो गई है। देश के विभाजन से पूर्व वर्षा का फालतू पानी पाकिस्तान की ओर निकल जाता था। सरकार ने पाकिस्तान को पानी जाने से रोकने के लिए बांध बनाकर पानी तो बचा लिया लेकिन वर्षा के मौसम में जल स्तर बढऩे पर ही बांधों का पानी छोडऩे से बाढ़ का खतरा बढ़ गया है।

वर्षा में डैम का पानी छोडऩे से हुए नुक्सान का नवीनतम उदाहरण हथिनी बैराज से यमुना नदी में छोड़ा गया पानी है, जो दिल्ली तथा आसपास के इलाकों में तबाही लाने का कारण बना, जबकि पंजाब में भाखड़ा-ब्यास प्रबंधन बोर्ड द्वारा 13 जुलाई को भाखड़ा डैम से पानी छोडऩे का निर्णय 3 दिनों के लिए स्थगित करने से पंजाब के अनेक भागों में बाढ़ से विनाश का खतरा किसी सीमा तक टल गया है।

अवैध निर्माणों और वनों तथा पहाड़ों के कटान आदि के कारण पानी के बहाव को रोकने वाले अवरोध हट जाने के कारण भी बाढ़ से होने वाली तबाही में वृद्धि हुई है। दूसरी ओर पहाड़ों से पानी आना बंद हो जाने के कारण भूमिगत पानी का स्तर नीचे चला गया। जहां पहले 30-40 फुट पर ही पानी आ जाता था, वहीं अब कुछ स्थानों पर पानी 700 फुट तक नीचे चला गया है। नगर पालिकाओं को ट्यूबवैल भी 500 से 700 फुट गहराई में लगाने पड़ रहे हैं।

पंजाब, दिल्ली, हरियाणा आदि में भूमिगत जल स्तर अत्यधिक गिर जाने के कारण राज्य के अनेक हिस्से ‘डार्क जोन’ में चले गए हैं, जिनमें मुख्यमंत्री भगवंत मान का जिला संगरूर भी शामिल है। यदि बांध न बनते तो पाकिस्तान को पानी तो अवश्य चला जाता, परंतु इस क्षेत्र का भूमिगत जलस्तर ठीक रहता। आज जिस प्रकार भूमिगत जलस्तर नीचे जा रहा है उसे देख कर मन में प्रश्न पैदा होता है कि अगले कुछ वर्षों के बाद क्या होगा? यहीं पर बस नहीं, अनेक स्थानों पर नदी-नालों में उद्योगों का विषैला पानी छोडऩे से वहां पानी पीने योग्य नहीं रहा।

अत: यदि बाढ़ आने से पहले ही बांधों से फालतू पानी नियमित अंतराल पर छोड़ दिया जाए तो इस विनाश से काफी सीमा तक बचा जा सकता है। जल प्रलय से बचने के लिए यह मापदंड तय करना जरूरी है कि डैमों में कितना पानी भरने के बाद फालतू पानी बहा दिया जाए। इस बार की वर्षा के दौरान मौसम विज्ञानियों के गलत सिद्ध हुए मौसम सम्बन्धी पूर्वानुमानों ने भी इस समस्या को बढ़ाया है। अत: मौसम विज्ञानियों को मौसम के सटीक पूर्वानुमानों के विषय में भी सोचना चाहिए।

देश में आई बाढ़ से तबाही ने हमारे 30 जुलाई, 2020 के सम्पादकीय की पुष्टिï कर दी है जिसमें हमने लिखा था कि‘‘सरकार द्वारा इतने बड़े पैमाने पर आपदा प्रबंधन टीमें तैनात करने के बावजूद इतनी तबाही से स्पष्टï है कि हमारी आपदा प्रबंधन प्रणाली किसी सीमा तक विफल रही है।’’ एक बार फिर देश में आई बाढ़ ने प्राकृतिक आपदाओं से निपटने की हमारी अधूरी तैयारियों की पोल खोल दी है। वर्तमान संकट से देश में बड़ी संख्या में मौतों के अलावा अरबों रुपए की सम्पत्ति तबाह हो गई है और जनजीवन अस्तव्यस्त होकर रह गया है, जो प्रकृति से छेड़छाड़ का ही परिणाम है। -विजय कुमार 

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