अदालतों की सुस्त रफ्तार न्याय के लिए वर्षों करना पड़ता इंतजार

Edited By ,Updated: 11 Jul, 2023 06:28 AM

slow pace of courts had to wait years for justice

13 अप्रैल, 2016 को पूर्व राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी ने कहा था कि ‘‘देर से मिलने वाला न्याय, न्याय न मिलने के बराबर है।

13 अप्रैल, 2016 को पूर्व राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी ने कहा था कि ‘‘देर से मिलने वाला न्याय, न्याय न मिलने के बराबर है।’’ देर से मिले न्याय के 4 ताजा उदाहरण निम्न में दर्ज हैं :

  • 36 वर्ष पूर्व 28 अक्तूबर, 1987 को कानपुर में ससुराल पक्ष द्वारा पीट कर घर से निकाल दिए जाने के बाद एक महिला ने फांसी लगाकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली थी। अब 7 जुलाई, 2023 को कानपुर की अदालत ने उक्त मामले में मृतका के पति को 7 वर्ष तथा देवर को 5 वर्ष कैद की सजा सुनाने के अलावा 20-20 हजार रुपए जुर्माने की सजा दी है।
  • 27 वर्ष पूर्व 21 मई, 1996 को लाजपत नगर, दिल्ली में हुए बम विस्फोट, जिसमें 13 लोगों की मौत व 38 अन्य घायल हुए थे, के 4 दोषियों को अब 6 जुलाई, 2023 को सुप्रीमकोर्ट ने आजीवन कैद की सजा सुनाई है। 
  • 23 वर्ष पूर्व 20 मार्च, 2000 को मुंगेर में होली के दिन उधार पान न देने पर 5 आरोपियों ने एक पनवाड़ी की हत्या कर दी थी जिन्हें 16 जून, 2023 को मुंगेर की एक अदालत ने उम्र कैद की सजा सुनाई। 
  • 22 वर्ष पूर्व 1 सितम्बर, 2001 को मथुरा में एक दलित की हत्या करने वाले 2 व्यक्तियों को वहां की विशेष एस.सी./एस.टी. अदालत ने 7 जुलाई, 2023 को उम्र कैद तथा 20-20 हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई। 

स्पष्टत: देश में छोटी-बड़ी अदालतों में लम्बे समय से चली आ रही जजों की कमी भी इस विलम्ब का बड़ा कारण है, जिसके परिणामस्वरूप कई पीड़ितों की तो न्याय की प्रतीक्षा में मौत भी हो जाती है। अत: इसके लिए जहां अदालतों में जजों की कमी यथाशीघ्र दूर करने की आवश्यकता है, वहीं अदालतों में न्याय प्रक्रिया को चुस्त और तेज करने की भी जरूरत है, ताकि पीड़ितों को जल्द न्याय मिले। -विजय कुमार

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