बुजुर्ग अब हो रहे हैं ‘घोर उपेक्षा के शिकार’

Edited By ,Updated: 21 Jun, 2016 02:01 AM

the elders are grossly neglected

जीवन के तीन पड़ावों-बचपन, जवानी और बुढ़ापे में से बुढ़ापा सर्वाधिक कष्टकारी है। इस अवस्था में व्यक्ति को कई रोग घेर लेते हैं और उस समय जब उसे सहारे की सबसे अधिक जरूरत होती है,

जीवन के तीन पड़ावों-बचपन, जवानी और बुढ़ापे में से बुढ़ापा सर्वाधिक कष्टकारी है। इस अवस्था में व्यक्ति को कई रोग घेर लेते हैं और उस समय जब उसे सहारे की सबसे अधिक जरूरत होती है, अधिकांशत: संतानों की उपेक्षा के कारण वह अपने आप को सर्वाधिक असहाय, अकेला और लाचार पाता है।

 
हाल ही में दिल्ली में रहने वाली 85 वर्षीय एक बूढ़ी माता का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ जिसमें उसकी 60 वर्षीय बेटी उसे बेरहमी से बुरी तरह से पीटती दिखाई दे रही है।
 
इसी सिलसिले में ‘हैल्पएज इंडिया’ नामक एन.जी.ओ. द्वारा हाल ही में करवाए एक अध्ययन में यह पीड़ादायक खुलासा हुआ है कि देश में प्रत्येक 5 बुजुर्गों में से 1 बुजुर्ग को अपने ही घर में किसी न किसी रूप में अपने बच्चों के हाथों दुव्र्यवहार और अपमान का शिकार होना पड़ रहा है।
 
बुजुर्गों के हितों की रक्षा करने के लिए कानून होने पर भी दुव्र्यवहार के शिकार बुजुर्ग अपने बच्चों के विरुद्ध पुलिस या अदालत में इसलिए शिकायत दर्ज नहीं करवाते क्योंकि इससे परिवार की बदनामी होगी और वे चुपचाप जुल्म सहते रहते हैं। दिल्ली में ऐसे बुजुर्गों की संख्या 92 प्रतिशत और चेन्नई में 64 प्रतिशत है। 
 
इसी प्रकार अध्ययन में यह तथ्य भी उजागर हुआ कि संतानों द्वारा अपने बुजुर्गों का उत्पीडऩ़ अनुमान से कहीं ज्यादा है और इस मामले में ज्यादातर बेटे, बेटियां और 61 प्रतिशत मामलों में बहुएं ही जिम्मेदार निकलीं। 53.2 प्रतिशत मामलों में सम्पत्ति तथा विरासत के अधिकार को लेकर उनसे दुव्र्यवहार किया जाता है। 
 
दिल्ली के 77.6 प्रतिशत युवाओं का मानना है कि बुजुर्ग अपनी इच्छा के अनुसार पैसा खर्च नहीं कर पाते जबकि 51 प्रतिशत का कहना है कि उन्होंने अपनी आंखों के सामने अपने बुजुर्गों से दुव्र्यवहार होते देखा है।
 
एन.जी.ओज को आने वाले फोनों में से ज्यादातर सम्पत्ति और रुपए-पैसे से संबंधित ही होते हैं और खास बात यह है कि अधिकांश फोन पीड़ित बुजुर्गों द्वारा नहीं बल्कि उनके शुभचिंतकों या पड़ोसियों द्वारा किए जाते हैं। 
 
अधिकांश बुजुर्ग स्वयं इस डर से फोन नहीं करते कि उनके बच्चे उनसे ऐसा करने का बदला लेंगे। हमारे सामने ऐसी बेटियों के मामले भी आए जिन्होंने अपनी माताओं को उनके अंतिम वर्षों में पीड़ित किया।
 
संतानों द्वारा बुजुर्गों को घर से निकाल देने की शिकायतें भी आम हैं। ‘हैल्पएज’ को प्रति मास अनेक कालें ऐसे बुजुर्गों की तरफ से आती हैं जिन्हें उनके परिजनों ने घर से बेघर करके सड़कों पर भटकने के लिए छोड़ दिया है। 
 
संयोगवश यदि कुछ भले लोगों की नजर ऐसे किसी बुजुर्ग पर पड़ जाती है तो वे उसकी मदद करने के लिए ‘हैल्पएज’ को फोन कर देते हैं जिन्हें अस्थायी तौर पर ‘ओल्ड एज होम’ में ठहरा कर उनके परिवार के सदस्यों को तलाश करने की कोशिश की जाती है। 
 
बुजुर्गों की देखभाल के लिए कार्यरत ‘एज वैल फाऊंडेशन’ के संस्थापक ‘हिमांशू रथ’ का कहना है कि पारिवारिक दुव्र्यवहार से बुजुर्गों को संरक्षण देने वाला ‘सीनियर सिटीजन्स एक्ट-2007’ मौजूद होने के बावजूद ज्यादातर बुजुर्गों को इसकी जानकारी नहीं है और न ही वे यह जानते हैं कि अपना अधिकार पाने के लिए वे क्या कर सकते हैं और इस कानून के लागू होने के बाद से अब तक बहुत कम लोगों ने ही इसका इस्तेमाल किया है। 
 
उल्लेखनीय है कि इस कानून के अंतर्गत दोषी को 3 मास कैद की भी व्यवस्था है। अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ बुजुर्ग अपने परिजनों द्वारा भरण-पोषण की मांग कर सकते हैं तथा नि:संतान बुजुर्ग अपने उन रिश्तेदारों पर भरण-पोषण का दावा भी कर सकते हैं जिन्होंने उनकी सम्पत्ति पर कब्जा कर रखा हो या जो उन्हें विरासत में मिलने वाली हो। 
 
इस कानून के अंतर्गत पीड़ित बुजुर्ग के लिए भोजन, कपड़ा, आवास, चिकित्सा और गुजारे के लिए अधिकतम 10,000 रुपए प्रति मास गुजारा राशि भी प्राप्त कर सकने तक का प्रावधान है।
 
बहरहाल इस संबंध में जो सांत्वनादायक बात सामने आई, वह यह है कि अपने माता-पिता द्वारा परिवार के बुजुर्गों से किए जाने वाले दुव्र्यवहार के संबंध में बताने के लिए अब कहीं-कहीं उनके पोते-पोतियां ही आगे आने लगे हैं। 
 
हमारे लिए यह महसूस करना बहुत जरूरी है कि एक दिन हमें भी बूढ़े होना है और तब हमारे साथ हमारे बच्चे भी वैसा ही व्यवहार करेंगे जो हम अपने बुजुर्गों से कर रहे हैं। अत: जितनी जल्दी हम अपने भीतर बुजुर्गों के सम्मान के संस्कार पैदा कर लेंगे उतना ही अच्छा होगा। 
 

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