चुनाव का शोर, दलबदली का जोर नाराज नेता खोल रहे अपनों की ही पोल

Edited By ,Updated: 21 Jan, 2022 07:07 AM

the emphasis of defection angry leaders are opening their own poles

19 जनवरी को जहां समाजवादी पार्टी (सपा) के संरक्षक मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू ‘अपर्णा यादव’ ने अपनी पारिवारिक राजनीतिक पार्टी छोड़ कर भाजपा का दामन थाम लिया तो अगले ही दिन 20

19 जनवरी को जहां समाजवादी पार्टी (सपा) के संरक्षक मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू ‘अपर्णा यादव’ ने अपनी पारिवारिक राजनीतिक पार्टी छोड़ कर भाजपा का दामन थाम लिया तो अगले ही दिन 20 जनवरी को ‘मुलायम सिंह यादव’ के सांढू व पूर्व विधायक ‘प्रमोद गुप्ता’ भी भाजपा में शामिल हो गए। 

इस अवसर पर ‘अपर्णा यादव’ की भांति ही ‘प्रमोद गुप्ता’ ने अनेक आरोप लगाए और कहा कि ‘‘सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने नेता जी (‘मुलायम सिंह यादव’) को बंधक बना कर रखा है तथा किसी को उनसे मिलने नहीं दिया जा रहा है। उनकी तबीयत अच्छी नहीं है और अब सपा में गुंडों तथा माफियाओं को शामिल किया जा रहा है।’’ 

कांग्रेस का भी लगभग यही हाल है। गत माह पार्टी की महासचिव प्रियंका गांधी ने प्रदेश की महिलाओं को आगे लाने के लिए ‘मैं लड़की हूं लड़ सकती हूं’ नामक अभियान आरंभ करके प्रदेश महिला कांग्रेस की उपाध्यक्ष ‘डा. प्रियंका मौर्या’ को इसकी पोस्टर गर्ल बनाया था। पार्टी ने इसके अंतर्गत बड़ी सं या में महिलाओं को टिकट दिए परंतु ‘प्रियंका मौर्या’ को ही टिकट नहीं दिया, जो सरोजिनी नगर लखनऊ से चुनाव लडऩे की इच्छुक थी। इससे नाराज होकर हाल ही में ‘प्रियंका मौर्या’ ने अपनी ही पार्टी पर महिला विरोधी होने का आरोप लगाते हुए कहा था कि कांग्रेस नेतृत्व द्वारा सभी टिकट पहले से तय हैं, केवल दिखावे के लिए स्क्रीनिंग की जा रही है। 

उक्त आरोप लगाने के बाद ही उसने कांग्रेस को अलविदा कह कर 20 जनवरी को भाजपा का दामन थाम लिया और कहा, ‘‘पार्टी ने अपने प्रचार के लिए मेरे नाम और मेरे 10 लाख फालोअर्स का इस्तेमाल किया। मुझे मैराथन के लिए लड़कियों व बैठकों में लोगों को लाने और कार्यकत्र्ताओं को कांग्रेस में शामिल करवाने के लिए कहा।’’ ‘‘मुझसे सारे काम करवाए गए। टिकट पाने के लिए मुझसे सारी प्रक्रियाएं पूरी करने को कहा गया लेकिन जब समय आया तो मुझे टिकट से वंचित करके किसी पुरुष उ मीदवार को दे दिया गया क्योंकि मैं एक ओ.बी.सी. (अन्य पिछड़ा वर्ग) लड़की हूं और रिश्वत नहीं दे सकती थी।’’ 

दल बदली के इस रुझान के पीछे जहां चुनाव लडऩे के इच्छुक लोगों की सत्ता लोलुपता है, वहीं किसी सीमा तक लगभग सभी राजनीतिक दलों के शीर्ष नेतृत्व द्वारा अपने कार्यकत्र्ताओं की उपेक्षा और उनकी बात को न सुनना भी इसका एक बड़ा कारण है। अत: जब तक इस तरह का रुझान जारी रहेगा, पार्टियों के असंतुष्ï नेता दल-बदली भी करते रहेंगे और अपनी ही पार्टी के नेतृत्व की पोल भी खोलते रहेंगे।—विजय कुमार 

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